संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7)
लखनऊ में गोमती प्रदूषण की गंभीरता बढ़ाने का एक बड़ा कारण गोमती बैराज है जो सिंचाई विभाग की शारदा नहर परियोजना खण्ड-दो के अधीन है। इस बैराज का उद्देश्य ऊपर की धारा में 12 कि०मी० दूर स्थित गऊघाट वाटर वर्क्स के लिए न्यूनतम जलस्तर कायम रखना है। पंपिग स्टेशन जलस्तर (समुद्र तल से) न्यूनतम 345 फुट रहना चाहिए। बैराज बंद रहने और चैनल की खुदाई करते रहने पर जलस्तर 374 फुट के आसपास रहता है और बैराज खोल देने पर 341 फुट हो जाता है, जिससे पंप चल नहीं सकते। पंप न चलने पर नगर की पेयजल आपूर्ति ठप होने से जनरोष उत्पन्न हो जायेगा। इसलिए जल संस्थान पेयजल सप्लाई ठप होने के बजाय दूषित पानी लेकर जितना संभव हो, साफ करके पिलाना ज्यादा बेहतर समझता है।
गोमती बैराज के कर्मचारियों का कहना है कि दसों गेट एक घंटे उठाने पर जलस्तर दो तीन मीटर कम हो जाता है।
यह बैराज 1980 में चालू हुआ है। उससे पहले पेपर मिल के पास पुराना बैराज था। नये बैराज के फाटक ऊपर से नीचे गिराये जाते हैं, तो नदी का बहाव थमकर उसे झील और कभी-कभी तालाब की शक्ल दे देता है। पहले जो बैराज था उसके फाटक नीचे से लगे थे, इसलिए एक निश्चित सीमा से ऊपर का पानी अपने आप बहता रहता था। मछुवारों का कहना है कि पुराने बैराज के समय में हालत इतनी खराब नहीं थी। जल संस्थान के कर्मचारी तकनीकि अधिकारी कहते हैं कि नया बैराज गऊघाट के पास बनता तो भी बहाव बना रहता और यह हालत न होती।
मौजूदा बैराज के संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बार-बार यह सुझाव देता है कि फाटक रोज एक घंटे खोल दिया जाय, ताकि गंदगी बहकर निकल जाय। लेकिन कभी-कभी तो एक पखवारे तक भी इसे नहीं खोला जाता। 6 जून, 1988 को बोर्ड के वैज्ञानिक अधिकारी ने अधिशासी अभियंता, शारदा नहर खंड-2 से कहा था कि लगभग पन्द्रह दिनों से बैराज एक बार भी नहीं खोला गया, जबकि हफ्ते में कम से कम दो बार एक-एक घंटे जरूर खोलना चाहिए।
उससे दो रोज पहले आयुक्त लखनऊ मंडल सचिव पर्यावरण को अवगत करा चुके थे कि गऊघाट को छोड़ पूरे लखनऊ में गोमती अत्यधिक प्रदूषित है, जिससे मछलियों के स्वास्थ्य के साथ ही मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।
7 जून, को पर्यावरण निदेशक ने अधिशासी अभियंता को अत्यंत कड़े शब्दों में पत्र लिखा, "जनहित में आप तुरन्त बैराज के फाटकों को खुलवाने की व्यवस्था करें ताकि गोमती नदी के प्रदूषण की सांद्रता कम हो सके। निदेशक ने यह चेतावनी भी दी कि बैराज के फाटकों को न खोले जाने की स्थिति में जो क्षति होगी उसकी पूर्ण जिम्मेदारी आपके विभाग के संबंधित अधिकारी की होगी।
कहने का तात्पर्य यह कि 14 से 21 मई तक जल परीक्षण के उपरांत 1 जून से 7 जून 88 तक लगातार प्रयास के बाद भी प्रदूषण बोर्ड और पर्यावरण विभाग बैराज नहीं खुलवा सका, जबकि नदी भयंकर रूप से प्रदूषित थी और घुलित आक्सीजन शून्य हो चुकी थी।
शारदा नहर के अधिशासी अभियंता का प्रदूषण बोर्ड को स्पष्ट जवाब रहता है कि बैराज का उद्देश्य जल संस्थान के लिए पानी का स्तर बनाये रखना है, इसलिए जब भी उसे खुलवाना हो वह सीधे जल संस्थान से सम्पर्क करें।
विभिन्न विभागों के दृष्टिकोण में अंतर तथा तालमेल में कमी का एक और उदाहरण है। 15 से 29 फरवरी, 1988 के बीच घुलित आक्सीजन समाप्त प्रायः थी। आयुक्त लखनऊ मण्डल ने प्रशासक, नगर महापालिका को जो पदेन जल संस्थान के अध्यक्ष होते हैं, आदेश दिया था घुलित आक्सीजन की मात्रा 5 पर पहुंचते ही गोमती बैराज के फाटक खोल दिये जाया करें, जिससे पानी का प्रवाह ठीक हो जाने पर आक्सीजन की मात्रा भी ठीक हो जाये। 10 मार्च को विशेष सचिव, पर्यावरण ने भी आयुक्त लखनऊ को लिखा कि मलजल के नालों के उत्प्रवाह के निस्तारण के सम्बन्ध में स्थिति पूर्ववत् है। सीवेज निस्तारण में कोई सुधार नहीं है। बैराज बंद रहने से प्रवाह शून्य रहता है। गोमती नदी की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए सीवेज निस्तारण की योजना पर प्रभावी ढंग से कार्यवाही ही जाय। यह सब लिखा-पढ़ी प्रदूषण बोर्ड के वैज्ञानिक अधिकारी की चिट्ठियों के आधार पर हो रही थी।
26 अप्रैल, 1988 को जल संस्थान के महाप्रबन्धक ने इससे असहमति जताते हुए लिखा-"नगर की जल आपूर्ति बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि बैराज केवल एक घंटे खोला जाय और वह भी तीन-चार दिन बाद। जिस दिन बैराज एक घंटे के लिए खोला जाता है तो प्रातः की जलपूर्ति प्रभावित हो जाती है। प्रतिदिन तीन-चार घंटे बैराज खोलना ग्रीष्म ऋतु में व्यावहारिक नहीं है। एक घंटे के लिए भी बैराज खोलने के उपरांत जलस्तर को पुनः पूर्वस्तर पर पहुंचने में लगभग 16 से 20 घंटे लगते हैं।" इस तरह जल संस्थान के महाप्रबंधक ने कहा कि बोर्ड के वैज्ञानिक अधिकारी का सुझाव व्यावहारिक नहीं है।
इस तरह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण निदेशालय, आयुक्त लखनऊ मण्डल, प्रशासक महापालिका, जलसंस्थान, सिंचाई विभाग आदि में कोई तालमेल न होने का नतीजा है कि शहर में प्रदूषण नौकरशाही की फाइलें समान गति से मोटी होती रहती हैं।
बैराज के नीचे शहर का सबसे बड़ा गंदा नाला हैदर कैनाल कई किलोमीटर दूर से गंदगी ढोता हुआ गोमती में गिरता है। यह गंदा नाला राजभवन, राजभवन कालोनी, पार्करोड कालोनी, और मंत्रियों तथा अधिकारियों की कालोनी के बीच से होकर गुजरता है। उसकी सड़ांध और बदबू को देखते हुए विकास प्राधिकरण ने इसके सुधार की परियोजना का ऐलान किया था, किंतु कोई फर्क नही पड़ा। कुछ दूर आगे चलकर कुकरैल नाला भी गोमती में गिरता है। यह भी कुछ इलाकों की गंदगी लाता है।
इस तरह पीलीभीत, शाहजहाँपुर, हरदोई, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ की गंदगी पार करके गोमती जब लखनऊ के बाद देहाती क्षेत्र में पहुंचती है तो किनारे के गांवों को और भी भयंकर दुष्परिणाम झेलना पड़ता है। गोमती का यह पानी न तो खेती किसानी लायक बचता है, न जानवरों या आदमियों के नहाने अथवा पीने लायक। नदी की वजह से कुओं और हैंडपंप का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो गया है, जो तरह-तरह की बीमारियों को जन्म देता है।
यह गंदगी भी यदि निरंतर बहे तो बहाव में कुछ किलोमीटर चलकर पानी थोड़ा साफ हो जाता है। पर जब कई-कई रोज में बैराज अचानक खोला जाता है तो उसके तेज बहाव में गंदगी बड़ी दूर तक बिना साफ हुए चली जाती है। इस तरह अचानक पानी खोले जाने से गांवों की उपजाऊ जमीन भी कटती जा रही है। इस गंदगी का असर बाराबंकी जिले के गांवों तक रहता है। इतनी दूरी में जो कुछ असर कम होता है पर रेठ नदी फिर से प्रदूषण बढ़ा देती है।
यह शोधपत्र 9 भागों में है -
1 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)
2 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)
3 - संदर्भ गंगा : गोमती की सहायक सरायन, पेरई, कठना, भैंसा नदी में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)
4 - संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)
5 - संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)
6 - संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)
7 - संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7)
8 - संदर्भ गंगा : गोमती में बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और उन्नाव का प्रदूषण (भाग 8)
9 - संदर्भ गंगा : गोमती में प्रदूषण का दुष्परिणाम (भाग 9)