संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)
लखनऊ में गोमती
गोमती नदी लखनऊ में सबसे पहले गऊघाट में प्रवेश करती है और वहीं वाटर वर्क्स है इसलिए गंदा पानी आने पर तुरंत नमूना कर लिया जाता है।
जल संस्थान के रिकॉर्ड में पिछले दस सालों में ऊपर से काला पानी आने की निम्नलिखित तिथियां अंकित हैं।
वर्ष 1979, 2 अगस्त तथा सितंबर वर्ष 1980 व 7 जनवरी, 15 जनवरी से 25 जनवरी तक और 7 फरवरी। वर्ष 1981, 27 नवंबर, 1 से 5 दिसम्बर। वर्ष 1982, 18 से 20 फरवरी। वर्ष 1983, 5 जनवरी, 20 जनवरी, 5 फरवरी और 9 मार्च। वर्ष 1986, 29 दिसम्बर तथा 30 दिसम्बर। वर्ष 1987, 5 जनवरी। 1988, 2 जनवरी। वर्ष 1989, 1 व 2 जनवरी, 14 जनवरी तथा 7 फरवरी।
इन तिथियों में ऊपर से आने वाली जहरीली गंदगी तथा लखनऊ के औद्योगिक और शहरी कचरे को मिलाकर यहां गोमती का पानी इतना खराब हो जाता है कि मछलियां ऑक्सीजन के अभाव मे तड़पकर मर जाती हैं। यह पानी जानवरों और आदमियों के भी किसी काम का नहीं रहता।
प्रदूषण बोर्ड ने 25 जनवरी, 1988 को आयुक्त लखनऊ मंडल को भेजी गयी एक रिपोर्ट में कहा था कि गोमती जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाली समस्त चीनी मिलों की शीरा भंडारण हेतु पक्के टैंक बनवाने का निर्देश दिया जाय। बोर्ड ने आबकारी विभाग से अपेक्षा की थी कि वह चीनी मिलों को अपना खराब शीरा फेंकने की अनुमति देने से पहले उससे परामर्श कर लें। यह शीरा नदी की जान ले लेता है।
लखनऊ में गोमती की हालत अक्टूबर से फरवरी तक तो ऊपर से चीनी मिलों की गंदगी से खराब रहती है और उसके बाद गर्मी में पानी की कमी की वजह से। बरसात के प्रारंभ में शहर की गंदगी और खेतों से कीड़े मार दवाइयों का जहर नदी में आ जाता है। अगस्त-सितम्बर में पानी कुछ साफ होने पर नीचे से मछलियां आती हैं, पर अक्टूबर से उनका मरना शुरू हो जाता है। इस तरह बाराबंकी से लखनऊ तक गोमती में दो आना ही मछली बची हैं। मछली का जिन्दा रहना, नदी के साफ होने और उनका मरना भी नदी की मौत की निशानी है। जब नदी मरती है तो उसके किनारे और आश्रित लोगों का जीवन भी कष्टकारक हो ही जाता है।
लखनऊ शहर की गंदगी चूंकि गऊघाट से गोमती में गिरनी शुरू होती है, इसलिए इसके ऊपर पानी अपेक्षाकृत साफ रहता है।
गोमती नदी पहले गऊघाट वाटरवर्क्स के नीचे से होकर बहती थी, पर पिछले कुछ सालों में उसकी धारा लगभग एक फर्लांग दूर चली गयी है। अब नदी से बंबा घर तक पानी लाने के लिए एक कच्ची चैनल खोदकर लायी गयी है। इधर काफी दिनों से ठाकुरगंज का गंदा नाला अपना सारा मलमूत्र और शहरी कचड़ा इसी चैनल में डाल रहा है और यह गंदगी वाटरवर्क्स से नगर के पेयजल का हिस्सा बन जाती है। इस नाले में दौलतगंज, नगरिया, मुसाहिबगंज और ठाकुरगंज मुहल्लों का मलजल आता है। इन मुहल्लों में पहले मकान कम थे और पानी की आपूर्ति भी कम थी। हाल के वर्षों में नयी कालोनियां और आबादी बढ़ने के साथ पानी की सप्लाई बढ़ी है, जिससे ठाकुरगंज का प्रायः सूखा रहने वाला नाला अब ढेर सारी गंदगी लेकर बहता है। राधाग्राम (डेयरी वालों के लिए) पूरी होने पर यह नाला हैदर कैनाल की शक्ल ले लेगा।
पम्पिंग स्टेशन कर्मचारियों का कहना है कि इस नाले की वजह से इतनी गंदगी और बदबू आती है कि यहां पर पानी पीने की कौन कहे, नहाने का भी जी नहीं करता। सीतापुर, हरदोई, शाहजहाँपुर, खीरी आदि की मिलों की गंदगी जब ऊपर से आ जाती है, तब तो पानी काला या लाल ही हो जाता है। गोमती से वाटरवर्क्स के लिए प्रतिदिन लगभग चार करोड़ गैलन पानी लिया जाता है। यहां वाटरवर्क्स की चैनल में पानी आता रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए बारह कि०मी० नीचे भैंसाकुंड के पास एक नया बैराज 1980 में बनाया गया है। एक तो 42 हजार गैलन प्रति मिनट पानी वाटर वर्क्स के लिए पंप करने से गोमती का जलस्तर घटता है, दूसरे शहर की सारी गंदगी इस बैराज के कारण जमा रहती है और फिर पलटकर वाटरवर्क्स पहुंचती है। अगर बैराज 12 कि0मी0 नीचे बनाने के बजाय गऊघाट के पास बनता तो आज गोमती नदी के लखनऊ में ठहरी हुई झील का जो रूप धारण कर रखा है, वह न होता और शहर की गंदगी बहकर निकलती रहती। ऊपर से गंदगी आने पर भी बैराज के गेट तुरंत खोलकर निकाला जा सकता था, जबकि अभी पंपिंग स्टेशन पर काला पानी दिखने के बाद भी बैराज खुलवाने में एक-दो दिन लग जाते हैं, तब तक यह पेयजल प्रदूषित करती रहती है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह बैराज जहां बनाया गया है वहीं भैंसाकुड श्मशान घाट होने से जले अधजले शव तथा राख भी नदी में डाली जाती है। पिछले कुछ सालों से बना विद्युत शवदाह गृह एक तो खराब रहता है, दूसरे अभी तमाम लोग दाह संस्कार के परम्परागत तरीके अपनाना ही ज्यादा उचित समझते हैं। गोमती के किनारे एक दूसरा मरघटा मोहिनीपुरवा और खुनखुनजी कोठी के बीच में भी है।
प्रदूषण निदेशालय, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल निगम के अधिकारियों ने बातचीत में स्वीकार किया कि बैराज डाउन स्ट्रीम में बनाना गलत हुआ, लखनऊ में गोमती पानी के प्रदूषण, घुलित ऑक्सीजन कम होने और मछलियों के मरने का यह एक बड़ा कारण है। गंदा पानी ठहरा रहने से मच्छर के अलावा भूमिगत जल भी प्रदूषित होकर अनेक बीमारियां पैदा कर रही है।
यह शोधपत्र 9 भागों में है -
1 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)
2 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)
3 - संदर्भ गंगा : गोमती की सहायक सरायन, पेरई, कठना, भैंसा नदी में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)
4 - संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)
5 - संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)
6 - संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)
7 - संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7)
8 - संदर्भ गंगा : गोमती में बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और उन्नाव का प्रदूषण (भाग 8)
9 - संदर्भ गंगा : गोमती में प्रदूषण का दुष्परिणाम (भाग 9)