गोमती में जगह-जगह मिलते हैं नाले
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संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)

गोमती नदी में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई के औद्योगिक प्रदूषण का गहराता संकट। जानें कैसे चीनी और शराब कारखानों की गंदगी नदी को कर रही है बर्बाद।
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लखनऊ से पहले गोमती में सीधे गिरने वाली गन्दगी

भैंसा, गोन, सरायन, पेरई, कठना आदि नदियां खीरी, सीतापुर, शाहजहाँपुर आदि जिलों से जो औद्योगिक कचड़ा गोमती में लाती हैं, उसके अलावा खुद गोमती नदी में लखनऊ से पहले काफी गंदगी गिरती है। गोमती का यह प्रदूषण उसके उद्गम जनपद पीलीभीत से ही प्रारंभ हो जाता है।

एलएच शुगर फैक्ट्रीज, पीलीभीत की गंदगी नाला से होते हुए बंद्रा गांव के पास गोमती में गिरती है।

पीलीभीत जिले की आरएस महाजन इण्डस्ट्रीज और पीलीभीत स्ट्रा बोर्ड लि० की गंदगी भी गोमती में आकर गिरती है। किसान सहकारी चीनी मिल पूरनपुर अपनी गंदगी बरुआ नाला के जरिये गोमती में गिराती है।

मोहम्मदी से गोला की ओर आगे बढ़ने पर गोमती नदी का पुल पड़ता है। यहां नदी में सीवार व अन्य घास-पतवार खूब उग आयी है। पुल के बगल में ही श्मशान घाट स्थित है। यहां पुल के पास ही तीन लाशें सड़ती मिलीं। आसपास जानवर चरा रहे लोगों ने बताया कि गरीब लोग लकड़ी के अभाव में केवल मुखाग्नि देकर लाश नदी में डाल देते हैं। कुछ लोग अधजली लाशें डालते हैं तथा पुलिस के लोग लावारिश लाशें यूं ही नदी में डाल देते हैं।

साजिद अली ने बताया कि नदी में मछलियां समाप्त प्राय हैं। साजिद अली के अनुसार पिछले साल सुंदरी घाट से लेकर हरेरापुर के पास तक गोमती में एक साथ बड़ी तादाद में मछलियां मरी थीं।

हरदोई जिले के पिहानी तथा संडीला कस्बों और संडीला औद्योगिक केन्द्र की गंदगी भी गोमती में आकर गिरती है। संडीला की गंदगी बेता नाला होकर गोमती में आती हैं। यहां से आगे कठना और सरायन नदियों की गंदगी भी मिल जाने से पानी काफी प्रदूषित हो जाता है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि गोमती में सीधे अथवा उसकी सहायक नदियों के जरिये लखनऊ से पहले आने वाले हानिकारक उत्प्रवाह में मुख्य रूप से चीनी और शराब कारखाने और सीतापुर नगरपालिका का मलजल है। चीनी कारखाने चूंकि सर्दियों में ही मुख्य रूप से चलते हैं और ताजे उत्प्रवाह के अलावा कभी-कभी पुराना शीरा भी नदी में उड़ेल देते है, इसलिए कई बार अचानक प्रदूषण बहुत बढ़ जाता है। यह भी देखा गया है कि ये कारखाने प्रायः शाम पांच बजे के बाद अथवा छुट्टी के दिन अपना कचड़ा डालते हैं ताकि कोई जांच-पड़ताल भी न हो सके। दूसरी चालाकी यह होती है कि पानी का नमूना लेने के लिए निर्धारित समय से बाद अपनी गंदगी नदी में डालते हैं।

मछुवारे और धोबी आदि नदी का पानी काला अथवा लाल होते ही समझ जाते हैं कि हरगाँव, गोला, महोली या किसी अन्य मिल ने अपनी गंदगी भारी मात्रा में गिरा दी है।

यह शोधपत्र 9 भागों में है -

1 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)

2 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)

3 - संदर्भ गंगा : गोमती की सहायक सरायन, पेरई, कठना, भैंसा नदी में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)

4 - संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)

5 - संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)

6 - संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)

7 - संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7) 

8 - संदर्भ गंगा : गोमती में बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और उन्नाव का प्रदूषण (भाग 8)

9 - संदर्भ गंगा : गोमती में प्रदूषण का दुष्परिणाम (भाग 9)

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