गोमती में,प्रदूषण का जाल बन चुका है।
गोमती में,प्रदूषण का जाल बन चुका है।

संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)

गोमती नदी का प्रदूषण: सीतापुर के उद्योगों का कचरा और सरकारी निष्क्रियता। पढ़ें, कैसे गोन और सरायन नदियों के जरिये गोमती में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इसके गंभीर परिणाम।
Published on
5 min read

कई परियोजनाएं और गोमती प्रदूषण साथ-साथ लंबे समय से चल रहे हैं। चूंकि गोमती के पानी का प्रदूषण आंखों से देखकर ही पता चल जाता है, इसलिए जांच की निरर्थकता अलग बात है, लेकिन यह परियोजना अपने आप में अधूरी भी है। न तो इसमें रेठ नदी द्वारा बाराबंकी जिले की गंदगी गिराने की बात शामिल है और न सई नदी द्वारा हरदोई तथा उन्नाव जिलों से गंदगी ढोकर लाने की।

बहरहाल, कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि सन् 1961 से आज तक गोमती का प्रदूषण रोकने के लिए कई अध्ययन जांच, परियोजना रिपोर्ट तैयार हुई। किन्तु उनका कोई प्रभाव नदी की गंदगी रोकने या घटाने पर नहीं हुआ। इसी का नतीजा था कि 24 से 31 मई 1988 तक के परीक्षण में "गोमती नदी में घुलित आक्सीजन की मात्रा में खतरनाक रूप से कमी पायी गयी।"

इस 1989, साल की पहली और दूसरी तारीख को भी नदी सीतापुर के उद्योगों का कचरा गिराये जाने की वजह से भयंकर रूप से प्रदूषित हुई और मछलियां मरीं। प्रदूषण बोर्ड के वैज्ञानिकों ने पुनः मौके पर जांच करके आख्या दी। पर कार्रवाई कुछ न हुई।

आज गोमती नदी किस खतरनाक सीमा तक प्रदूषित हो गयी है, यह बात जानने के लिए उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त स्वास्थ्य निदेशक डा० राधेश्याम बाजपेयी की बात सबसे प्रामाणिक मानी जायेगी, जो कई वर्ष तक लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी भी रहे। डा० बाजपेयी ने एक स्थानीय समाचार-पत्र दैनिक जागरण, 5 मार्च, 1989 से बातचीत में कहा है-

"गोमती का प्रदूषित जल लखनऊ के बाशिन्दों को संक्रामक रोगों का उपहार तो देता ही है साथ ही कई अन्य जानलेवा रोग भी दे डालता है। एक तरह से लखनऊ निवासी संक्रामक रोगों की बस्ती में रह रहे हैं। इस दिशा में तमाम प्रयास हुए हैं, सरकारी स्तर पर भी और निजी स्तर पर भी। कई स्वयं सेवी संगठनों ने भी इस कार्य में अपनी रुचि दिखायी है, मगर जब तक मिलों के प्रदूषित जल को गोमती में गिरने पर रोक नहीं लगायी जायेगी, सारे प्रयास जाया ही होंगे।"

मौजूदा स्थिति में गोमती के प्रदूषण स्रोतों का अध्ययन हम तीन खंडों में करेंगे।

(क) लखनऊ से पहले के गोमती में गिरने वाला प्रदूषण यानी वह प्रदूषण जो भैंसा, कथना, सरायनएवं गोन नदियों के मार्फत या सीधे गोमती में लखनऊ से पहले मिलता है।

(ख) लखनऊ शहर के अंदर औद्योगिक तथा सीवेज संबंधी प्रदूषण स्रोत।

(ग) लखनऊ सीमा पार करके मिलने वाले स्रोत ।

गोन नदी से आने वाला जहर

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहायक वैज्ञानिक अधिकारी डा मोहम्मद सिकंदर ने 5 जनवरी, 1989 की अपनी निरीक्षण आख्या में कहा कि, "गोन नदी से होकर सरायन और गोमती में औद्योगिक उत्प्रवाह निरंतर प्रवाहित हो रहा है, तथा भविष्य में स्थिति के कभी-कभी गंभीर होने की संभावना बनी हुई है। उन्होंने कहा मेसर्स अवध शुगर मिल तथा डिस्टिलरी हरगांव का उत्प्रवाह गोन में मिलने से रोका जाय। 

गोन नदी में जो भी उत्प्रवाह प्रवाहित किये जा चुके हैं, उन्हें सरायन में मिलने से पहले ही कमलापुर के पास बांध बनाकर रोक दिया जाय।" बोर्ड के सदस्य सचिव ने इस पर तत्काल कार्रवाई का निर्देश फाइल पर दिया, किन्तु उसे क्रियान्वित करने में तत्परता नहीं दिखायी। उसके दो दिन बाद जब लेखक स्वयं हरगांव पहुंचा तो देखा कि मिल का शीरे की गंधयुक्त गहरा कत्थई उत्प्रवाह पूरे वेग से गोन नदी में बह रहा है।

गोन में इस प्रदूषण का एकमात्र स्रोत मेसर्स अवध शुगर मिल्स एवं डिस्टिलरी है। 1986 में गोमती में बड़े पैमाने पर मछलियों की मृत्यु के लिए भी हाईकोर्ट व अन्य जांच में इस मिल को दोषी पाया गया था। इसके अलावा मंडलायुक्त की जांच में यह तथ्य भी सामने आया था कि यह मिल अपना दूषित उत्प्रवाह खेतों में तथा इधर-उधर जमीन पर फेंक रही है, जिससे खेत खराब होने के अलावा दुर्घटनाएं भी हो रही है। इस जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रुप से कहा गया था कि, "गोला और हरगांव स्थित मिलों का प्रवाह मानकों के अनुरूप न होने के कारण उनके द्वारा गोमती की सहायक नदी सरायन में प्रदूषण उत्पन्न करने की बात सिद्ध होती है।

जिला प्रशासन सीतापुर द्वारा दो वर्ष पहले की गयी एक जांच के अनुसार हरगांव डिस्टिलरी से औसतन 490 किलोलीटर और चीनी मिल से लगभग 25 से 50 किली गंदगी रोज निकलती है।

मिल ने अपने परिसर के अंदर तालाब बना रखे हैं और काफी उत्प्रवाह इसमें जमा होते हैं। इस तालाब में भरी गंदगी से मिल के पीछे मुरादनगर पुरवा और सुरजीपारा निवासियों का कहना है कि दुर्गंध और मच्छरों से उनका जीवन कष्टमय हो गया है।

इसी मिल का पानी एक नाले के जरिये गोन नदी में जाता है। हरगांव से लहरपुर जाने वाली सड़क पर पुलिया के नीचे यह गंदगी बहती हुई आसानी से देखी जाती है। इस सड़क के बायीं ओर बातगंगा नाम की एक बड़ी झील में भी मिल की गंदगी गिराई जाती है। अब इस झील में कहारों की सिंघाड़े की खेती नहीं हो पाती है। झील और गोन नदी में मछलियां एक नहीं बचीं।

हरगांव कस्बे के निवासी तिरुपति मिश्र, भीखपुर के गोकुल, लक्ष्मणपुर के मनोज कुमार मिश्र और जोगीपुर के रामसहाय ने बताया कि गंदे पानी से आदमियों और जानवरों को तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। बातगंगा झील में पहले, कस्बे के लगभग 600 जानवर पानी पीते थे। किन्तु अब उसके पानी में शीरा, अल्कोहल, स्प्रिट, तेल और गंदा कचड़ा बहाये जाने से अनेक जानवर और बंदर मर गये। स्थानीय डाक्टरों के पास इस बीमारी का इलाज नहीं है। पानी पीते ही जानवरों का पेट फूलता है और वे मर जाते हैं।

मिल वालों ने कुछ गांव वालों को मूर्ख बनाते हुए कहा कि उनके गंदे पानी में यूरिया है जो फसल को फायदा करेगा। अगर वे दो रू० प्रति ट्रक भाड़ा दे तो उनके खेत में डाल दिया जाय। कुछ भोले किसानों से इस तरह की चिट्ठी लिखाकर मिल वालों ने उनके खेतों में शीरा और गंदगी डाल दी, जिससे खड़ी फसल चौपट हो गयी।

लखनऊ में गोमती प्रदूषण का हल्ला मचने पर मिल वाले इस तरह करते हैं। कुछ समय पहले मिल के एक टैंकर ने अपना गरम उत्प्रवाह एक तालाब में डाला, खौलते पानी में गिरकर ओयल निवासी एक बालक राजू की मृत्यु हो गयी।

बस्ती के लोगों ने बताया कि मिल द्वारा किये जा रहे वायु, जल और पृथ्वी प्रदूषण से आम, अमरूद, जामुन, यूकेलिप्टिस आदि के तमाम पेड़ सूख गये। स्टेशन के पास की बाग तो पूरी तरह सूख गई है। मिल की चिमनियों से निकली राखी से पीने का पानी तक सुरक्षित नहीं बचता। सुबह घरों की छतों से लेकर आंगन तक राख ही राख नजर आती है। मिल की भट्ठी से निकले धुंए से सीतापुर-लखीमपुर मार्ग पर अंधेरा सा छा जाता है।

यह तमाम समस्याएं अलावा गंज बस्ती, नयागांव, पिपरा, परसेहरा माल, ऊनापुर, ऊँचेपुर, रामपुर, वरौरा सरैया आदि के अलावा हरगाँव से लेकर कमलापुर तक 80 किमी तक नदी के दोनों ओर स्थित लगभग 125 गांवों में है यहीं गोन पीरनगर (सीतापुर) के पास सरायन में मिलती है जो पहले से ही काफी प्रदूषित आती है और अंततः गोमती में जा मिलती है। इस साल 4 जनवरी, 89 की जांच में कमलापुर में गोन के पानी में घुलित ऑक्सीजन मात्र 1.3 मि०ग्रा० प्रति ली० पायी गयी है।

सीतापुर जिला प्रशासन ने एक वरिष्ठ अधिकारी का तो यहां तक कहना है कि गोन नदी के प्रदूषण से नवजात शिशुओं की शारीरिक और मानसिक संरचना में भी विकृति देखी जा रही है। इस अधिकारी का यह भी कहना था कि हरगांव मिल वालों की पहुंच इतने ऊपर तक है कि उनके मैनेजर सरकारी अधिकारियों को जरूरी जांच के लिए मिल के अंदर घुसने देने में तरह-तरह की आनाकानी करते हैं।

यह शोधपत्र 9 भागों में है -

1 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 1)

2 - संदर्भ गंगा : गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 2)

3 - संदर्भ गंगा : गोमती की सहायक सरायन, पेरई, कठना, भैंसा नदी में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 3)

4 - संदर्भ गंगा : गोमती में पीलीभीत, शाहजहांपुर और हरदोई का औद्योगिक प्रदूषण (भाग 4)

5 - संदर्भ गंगा : लखनऊ गोमती में औद्योगिक प्रदूषण (भाग 5)

6 - संदर्भ गंगा : लखनऊ शहर में गोमती के प्रदूषण-स्रोत (भाग 6)

7 - संदर्भ गंगा : लखनऊ में गोमती बैराज की प्रदूषण में भूमिका (भाग 7) 

8 - संदर्भ गंगा : गोमती में बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और उन्नाव का प्रदूषण (भाग 8)

9 - संदर्भ गंगा : गोमती में प्रदूषण का दुष्परिणाम (भाग 9)

सम्बंधित कहानिया

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org