देश के कई शहरों में बार-बार यह समस्या होती है तथा कुछ शहरों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता है। उदाहरण के तौर पर देश की राजधानी एवं प्रदेश के उन राजधानियों पर अर्बन फ्लडिंग के खतरों के कारणों का आंकलन नीचे किया गया है जो कि प्रशासनिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, अच्छी योजना से बनाई गई हैं या झीलों के शहर हैं:
दिल्ली प्रशासनिक रूप से महत्त्वपूर्ण शहर है। उदाहरण के लिए, दिल्ली के शहरी फैलाव, जल निकासी के बुनियादी ढांचे से ज्यादा तेजी से विस्तार कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से संबंधित बाढ़ आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि अनेकों स्थानीय कारकों से भी हुई है जिसमें बाढ़ के मैदानों में बढ़ते अतिक्रमण, कठोर सतहों से वर्षा का सतही जल के रूप में बहना, अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन और गंदगीदार जल निकासी शामिल हैं। जलवायु वैज्ञानिक भी तेजी से अनियोजित शहरीकरण के बारे में चेतावनी देते हैं, जल निकायों का विलुप्तिकरण, वनों की कटाई और बढ़ते अतिक्रमण जल भराव व जलनिकासी समस्या के कारक हैं। अप्रैल 2014 में जलवायु परिवर्तन पर एक संयुक्त राष्ट्र पैनल की रिपोर्ट ने दुनिया के तीन सबसे बड़े शहरों में से दिल्ली में बाढ़ का खतरा अधिक बताया है; दूसरे दो टोक्यो और शंघाई हैं रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी के बाढ़ के मैदानों को चरम मौसम के अनुकूल होने के लिए सुरक्षित होना चाहिए और चैनलिंग या बांधों जैसे "मुश्किल सुरक्षा" के बजाय नदियों के बीच बफर जोन को अलग करने की सिफारिश की गई है। इसलिए दिल्ली से संबन्धित निम्न आंकड़ों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पर्यावरणविद दिल्ली में यमुना के बाढ़ के मैदानों में बड़े पैमाने पर जमीन के इस्तेमाल में बदलाव के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। यमुना नदी के किनारे पर अक्षरधाम मंदिर और राष्ट्रमंडल खेल (सीडब्ल्यूजी) गांव के निर्माण के लिए भूमि उपयोग परिवर्तन भविष्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। कहा जाता है कि दिल्ली में 800 से अधिक जल निकायों का इस्तेमाल होता था, लेकिन इनमें से अधिकांश गायब हो गए हैं या उन पर अतिक्रमण हो गया। "जिस तरह से शहर ने अपने बाढ़ के मैदानों पर आक्रमण किया है और अक्षरधाम, राष्ट्रमंडल खेल (सीडब्ल्यूजी) गांव, और बस डिपो जैसी संरचनाएं बनाई हैं उससे चेन्नई जैसी बाढ़ की संभावना अधिक बढ़ गई है।"
हैदराबाद प्राकृतिक सुंदरता से भरा है जहां अनेकों झीलें और तालाब हैं। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) ने 2016 की एक रिपोर्ट में भारत के शहरी जल निकायों की स्थिति बताई है इस का अनुमान है कि पिछले 12 वर्षों में, हैदराबाद ने अपनी 3,245 हेक्टेयर आर्द्रभूमि खो दी है। द्रुतगति से होता शहरीकरण प्राकृतिक जल धारा और वाटरशेड में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर रहा है।
शहरी बाढ़ में योगदान करने वाले शहरों का कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होना एक महत्वपूर्ण कारक है। हैदराबाद में न सिर्फ जल निकायों, यहां तक कि खुले स्थान और शहर के भीतर और आसपास हरित भाग तेजी से सिकुड़ रहा है। हरित भाग व रिक्त स्थान तेजी से कंक्रीट जंगल हो रहे हैं। हैदराबाद में कई जगहों के नाम हमें भूमि उपयोग के पैटर्न बदलने की दुखद कहानी बताते हैं। बशेरबाग, जुम्बाग, बाग अंबरपेट, बाग लिंगमपल्ली आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं कि कैसे बागानों को कंक्रीट के जंगलों में बदल दिया गया।
जमीन की कीमतों में आसमान छूने के कारण शहरी फैलाव में जल निकाय सबसे तेजी से लुप्तप्राय हो रहे हैं इनमें से कुछ टैंक पूरी तरह से गायब हो गए हैं। झीलों का शहर अब अतिक्रमण के एक शहर में बदल गया है। जब पानी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो जाता है, तो शहरी बाढ़ अपरिहार्य है।
सी.एस.ई (विज्ञान और पर्यावरण केंद्र) रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि पिछले तीन दशकों में हुसैनसागर 40 फीसदी की दर से घट गया है। हुसैनसागर को पुनःस्थापित करने की योजना को कार्यान्वित होना आवश्यक है। झील अब बारिश का पानी एकत्रित नहीं करती लेकिन इसके बदले ये एक मेगा सीवरेज टैंक में परिवर्तित हो गई है। कपरा चेरुव, सारोर्नगर चेरुव, दुर्गम चेरुव आदि जैसे कई अन्य झीलों का भाग्य, कोई भिन्न नहीं है, हालांकि कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं लेकिन आपदा के रास्ते समान हैं।
ओडिशा के कई शहरी इलाकों में कई जल निकासी व्यवस्थाएं टूट गई हैं जिसके कारण बाढ़ आती है। यह पुरी, भुवनेश्वर और कटक जैसे प्रमुख शहरों में बरसात के मौसमों में देखा जा सकता है। भुवनेश्वर एक अच्छी योजना से बनाया गया शहर है। भुवनेश्वर में, एकमरा कानान, जयदेव विहार, गजपति नगर, सैनिक विद्यालय, वाणी विहार, मंचेश्वर के पश्चिम, आचार्य विहार, इस्स्कॉन मंदिर, एगिनिया, जगमारा और पोखरिपुत्त में और आसपास के इलाकों में ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके पास प्राकृतिक नाली है। लेकिन इन क्षेत्रों में आने वाली मानवीय संरचनाओं के कारण, बाढ़ का पानी ठीक से नाली में नहीं जा सकता और जलभराव करता है। पूर्व में भुवनेश्वर में कई जल निकाय होते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनकी संख्या घटती जा रही है।
अर्बन फ्लडिंग ग्रामीण बाढ़ से बिल्कुल अलग है। इसमें बारिश का पानी शहर में ही रुक जाता है जिससे बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। बिना प्लानिंग के बसे शहरों में यह स्थिति तेजी से बढ़ रही है। अर्बन फ्लडिंग में बाढ़ की तीव्रता बहुत अधिक होती है और ज्यादा दिन तक रहती है। पहले बाढ़ आती थी और चली जाती थी। अब रुकी रहती है, यहीं से अर्बन फ्लडिंग का कॉन्सेप्ट आया। ताजा उदाहरण चेन्नई है, जहां 2015 में भारी तबाही हुई। मुंबई में 2005 में 18 घंटों में 944 मिलीमीटर बारिश से पूरा शहर बेहाल हो गया।
अर्बन फ्लडिंग की मुख्य वजह है बारिश का पानी। बेहतर प्लानिंग न होने से शहर से पानी नहीं निकल रहा है। बेतहाशा शहरीकरण से पानी का संरक्षण, नियंत्रण और मूवमेंट नहीं हो रहा है। ड्रेनेज की व्यवस्था ठीक नहीं है। तालाब खत्म हो गए हैं। खाली जमीनें नहीं छोड़ी जा रही हैं। इससे पानी जमीन के अंदर नहीं जा पा रहा है। शहरों में ढाल नहीं है। डोमेस्टिक, कॉमर्शियल और इंडस्ट्रियल कचरे का निष्पादन सही तरीके से नहीं हो पाना भी अर्बन फ्लडिंग की वजह बन रहे हैं।
अर्बन फ्लडिंग का खतरा मृदा की नमी बढ़ाने के लिए उपयोग में आने वाली वर्षा जल मे कमी की वजह से भी बढ़ रहा है। शहरी क्षेत्र में मात्र 20 प्रतिशत ही मिट्टी बच गई है, बाकी का 80 प्रतिशत हिस्सा कंक्रीट हो गया है। इससे मिट्टी पानी को नहीं सोख पा रही है। चित्र-1 में शहरी बाढ़ व जल भराव का व्यवस्थित आरेख दर्शित किया गया है।
निष्कर्ष
जब तक हम शहरों के ड्रेनेज सिस्टम ठीक से बनाए नहीं रखते हैं स्मार्ट सिटी का सपना एक दिवा स्वप्न के रूप में ही रहेगा। यह एक तथ्य है कि हर साल शहरी जनसंख्या 10% तक बढ़ जाती है चाहे यह अर्ध शहरी, शहरी, नगर पालिका या महानगर या कॉस्मोपॉलिटन है, लोग गांवों से बेहतर शिक्षा, चिकित्सा की जरूरतों के लिए या नौकरी और बेहतर जीवन की तलाश में यहाँ आते हैं। बेहतर बुनियादी ढांचे वाले शहरी स्थान अपने जीवनयापन के लिए अधिक लोगों को आकर्षित करते हैं। शहरी स्थान में कमाई क्षमताओं के कारण भी अधिक लोग आकर्षित होते हैं, ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों से आया व्यक्ति उस शहर में रहता है, आय उत्पन्न करता है और उस शहर, देश और वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान देता है। इस कारण से शहर और बढ़ता जाता है और बढ़ती जनसंख्या के लिए और अधिक बुनियादी विकास की आवश्यकता होती है। बुनियादी ढांचे के निर्माण में ड्रेनेज प्रमुख भूमिका निभाता है। यदि ड्रेनेज को ठीक से नहीं रखा जाता है तो निम्न समस्याएं खड़ी हो सकती हैं:
अच्छी जल निकासी प्रणाली को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदमः
सन्दर्भ -
1. अर्बन फ्लडिंग और इसके प्रबंधन, एन.आई.डी.एम. ।
2. शहरी बाढ़ मानक संचालन प्रक्रिया, शहरी विकास मंत्रालय, भारत सरकार।
3. शहरी बाढ़ (जोखिम) प्रबंधन डब्ल्यू.एम.ओ. पुस्तकालय।
4. बाढ़ पर शहरी विकास का प्रभाव, यू.एस. भौगोलिक सर्वेक्षण तथ्य पत्रक 076-031
5. यू.एस.ए. में शहरी बाढ़ के अनुसंधान और नीति के प्रयास, टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी, अप्रैल, 2017 ।
6. झीलों की सुरक्षा के मामले दक्षिण मध्य भारत की झीलों, विज्ञान और पर्यावरण केंद्र की वेब साइट।