पर्यावरण

लोक भारती, प्रशासन एवं समाज की संयुक्त पहल निरंतर गतिमान मंदाकिनी नदी पुनर्जीवन अभियान

यदि 5 जून को ही पर्यावरण दिवस मनाने का बहुत मन अथवा बाध्यता ही हो तो इस दिन पौधरोपण की बजाय अन्य कार्य जैसे इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रम, हरियाली माह में वृक्षारोपण के स्थान चयन एवं अन्य तैयारी आदि करें।

Author : श्रीकृष्ण चौधरी; कार्यकारी संपादक, श्रीकृष्ण चौधरी

सरकारी तंत्र  प्रतिवर्ष वृक्षारोपण अभियान आयोजित करता है। इस कार्यक्रम के पीछे भाव अच्छा है परंतु धरती पर हरियाली फैलने से अधिक ये आंकड़ों का खेल बनकर रह गया है। हमें अपने लिए स्वच्छ वायु चाहिए, हमारे ही द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण का निराकरण चाहिए, वातावरण के बढ़ रहे तापमान पर नियंत्रण चाहिए, वर्षा जल का भू संचयन चाहिए, वायुमंडल की आद्रता में वृद्धि चाहिए, वर्षा के लिए अनुकूल वातावरण चाहिए, जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन चाहिए।  तो ये काम हमें ही करना होगा।

हरियाली का नाम लेते ही हमारे मन में एक हरे भरे वृक्षों से आच्छादित धरती का मनमोहक स्वरूप सामने आ जाता है। वृक्षों के महत्व से हम सभी परिचित हैं। हम सभी विगत 4 - 5  वर्षों में कोरोना की विभीशिका से गुजरे हैं। कोरोना काल में हम प्राणवायु आक्सीजन के महत्व से भलीभांति परिचित हुए हैं। इस धरा पर ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत वृक्ष हैं, इस सत्यता के नाते वृक्षों का महत्व हमारे जीवन में और भी बढ़ जाता है। वृक्षों के आर्थिक पक्ष पर ज्यादा बात न करके इसके पर्यावरणीय महत्व पर हम विचार करें। तो भले ही हम वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत प्रगति कर चुके हैं, फिर भी ऑक्सीजन के उत्पादक के रूप में वृक्ष ही एकमात्र स्रोत हमारे बीच उपलब्ध पाते हैं, जो हमारी विशाल जनसंख्या को ऑक्सीजन प्राणवायु के रूप में उमनाना तय किया है, इस कार्यक्रम का हिस्सा बनें।

मुँह से मास्क हटाना है तो वृक्ष लगाना ही होगा। सूखी नदियां फिर बह निकलें, बीज उगाना ही होगा। लुप्त हो रही बुलबुल कोयल इसे बचाना ही होगा। इनके रहने-खाने का इंतजाम बनाना ही होगा । मुँह से मास्क हटाना है तो वृक्ष लगाना ही होगा। पौधारोपण जैसे पुण्य कार्य हेतु किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं क्योंकि यह क्षण स्वयं में एक शुभ मुहूर्त हो जाता है। परंतु एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि क्या इस रोपित पौधे की सुरक्षा और जल आदि का प्रबंध है ? यदि हाँ तो फिर पूरे वर्ष यह कार्य किया जा सकता है।

यदि नहीं तो... इस दृष्टि से हमें पौधरोपण के लिए उपयुक्त समय चुनने की आवश्यकता है। विशेष रूप से तब जब हम सामूहिक रूप से बड़े स्तर पर इस कार्य में लगते हैं। इस प्रकार तापमान एवं अन्य जलवायु परिस्थितियों के अनुसार 5  जून को मनाया जाने वाला पर्यावरण दिवस जिस दिन देश में बड़ी संख्या पौधारोपण होता है, हमारे अनुकूल नहीं है। हमारे लिए रोपित पौधे का पोषण अधिक महत्वपूर्ण है न की विश्व  समुदाय द्वारा तय तिथि काअनुपालन।  

लोक भारती से सम्बद्ध पर्यावरण विज्ञानी, मौसम विज्ञानी एवं अन्य प्रबुद्ध वर्ग ने चर्चा कर तय किया और यह विचार दिया कि पौधारोपण का कार्य श्रावण मास में हरियाली माह को मनाते हुए करें। हरियाली माह में रोपित पौधों के जीवित रहने की सर्वाधिक संभावना है। इसके साथ ही इस माह में अनेक स्थानों पर स्वतः उग आए पौधों की | उपलब्धता भी है जिनका उचित स्थानों पर रोपण अथवा अगले रोपण के लिए संरक्षण किया जा सकता है। वर्ष में एक दिन पर्यावरण के कार्य को समर्पित करने वाले बंधुओं को यह प्रस्ताव अटपटा लग सकता है किंतु यदि विचार करेंगे तो यह तथ्यपरक ही लगेगा और आप हरियाली माह को एक पर्यावरण पर्व के रूप में मनाने का मन बना सकेंगे।

यदि 5 जून को ही पर्यावरण दिवस मनाने का बहुत मन अथवा बाध्यता ही हो तो इस दिन पौधरोपण की बजाय अन्य कार्य जैसे इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रम, हरियाली माह में वृक्षारोपण के स्थान चयन एवं अन्य तैयारी आदि करें। सरकारी स्तर पर पर्यावरण दिवस मनाने की तैयारी में बड़ी संख्या में पौधे वितरित किए जाते हैं। इनके रोपण का कार्य भी श्रावण मास में किया जाए इस विषय पर विचार होना चाहिए || -लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय सम्पर्क प्रमुख सह उ.प्र. कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य हैं।

 सोर्स:- लोक सम्मान

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