कृषि

भारत में खेती की समस्याएँ

Author : सुभाष शर्मा

पुराने कानून में आमूल परिवर्तन हेतु बीज (संशोधन) विधेयक, 2010 संसद में है जिस पर कई सांसदों और नागरिक संगठनों ने माँग की है कि बीजों के दाम के बारे में स्पष्ट प्रावधान हो जिससे किसानों को उचित मूल्य पर बीज उपलब्ध हों, न कि वे तथाकथित ‘बाजार की शक्तियों’ से निर्धारित हों। अभी बीज उत्पादन करने वाले निगम नये बीजों का दाम बीस-पच्चीस गुना अधिक रखते हैं। जब से भारत ने विश्व व्यापार संगठन कृषि समझौते पर हस्ताक्षर किया, तब से किसानों को अधिक कीमत देने पर मजबूर होना पड़ा है। इस विधेयक में यह संशोधन भी प्रस्तावित है कि जो व्यक्ति, समूह या कम्पनी गलत प्रतिनिधित्व करे या तथ्यों को छिपाए अथवा उनके बीजों में खामियाँ हों, उन्हें एक लाख रुपए जुर्माना और एक साल की कैद की सजा हो।महात्मा गाँधी ने बहुत पहले कहा था 'भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।' तत्पश्चात स्वतन्त्रता की प्राप्ति के समय भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु ने खेती की उपादेयता एवं तात्कालिकता को इंगित करते हुए स्पष्ट कहा था, 'दूसरी हर चीज इन्तजार कर सकती है, मगर खेती नहीं।' सो उन्होंने पंचवर्षीय योजनाएँ शुरू की मगर खेती पर राष्ट्रीय बजट में हिस्सा कम से कमतर होता गया। उनके बाद दूसरे प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर किसानों की नीतियों को केन्द्र में लाने की कोशिश की। मगर अफसोस कि यह भी सिर्फ नारा ही बनकर रह गया। जो किसान कड़ी धूप, मूसलाधार बारिश-सूखे की मार सहकर भारत के 115 करोड़ लोगों को अन्न देते हैं, उन्हें कभी कोई राष्ट्रीय नागरिक सम्मान नहीं मिला। स्वतन्त्रता प्राप्ति के साढ़े छह दशकों के बावजूद जिन किसानों को अपने परिवार के सदस्यों से गैर-कृषि आय से सहायता नहीं मिलती, वे भारी मुसीबत में हैं। वे धीरे-धीरे किसान से भूमिहीन मजदूर बनने को अभिशप्त हैं। इनके लिए राष्ट्रीय कृषि नीति, 2002 घोषित की गई जिसमें कई खामियाँ थीं। अतः कृषि मन्त्रालय भारत सरकार के संकल्प दिनांक 18 नवम्बर, 2004 के द्वारा प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया। इसमें दो पूर्णकालिक सदस्यों के अलावा चार अंशकालिक सदस्य एवं एक सदस्य-सचिव थे। भारत में खेती और उस पर निर्भर किसानों की समस्याओं का सांगोपांग विश्लेषण राष्ट्रीय किसान आयोग की विभिन्न रिपोर्टों में किया गया है। अस्तु, भारत में खेती और किसानों की समस्याओं एवं उनके निराकरण के उपायों पर प्रकाश डाला जा रहा है।

यहाँ सबसे पहले हम चर्चा करेंगे कि वर्तमान में भारत में खेती की क्या-क्या विशेषताएँ, समस्याएँ और खामियाँ मौजूद हैं। इसकी पहली विशेषता यह है कि कृषि एवं अनुषंगी उत्पादों में भारत का स्थान पूरे विश्व में दूसरा है। मगर कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में अब मात्र 16.6 प्रतिशत (2007) हिस्सा है जबकि सम्पूर्ण कार्यबल का 52 प्रतिशत कृषि में नियोजित है। इस प्रकार इसकी प्रति व्यक्ति एवं प्रति एकड़ उत्पादकता बहुत कम है। कई दशक पहले नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने एशियन ड्रामा नामक अपनी पुस्तक में कहा था कि भारतीय कृषि में ‘छद्म रोजगार’ होता है, क्योंकि जो काम एक व्यक्ति कर सकता है, उसे कई व्यक्ति करते हैं। इसकी दूसरी विशेषता है कि भारत कई कृषि उत्पादों के उत्पादन में पूरी दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक है जैसे— ताजे फल, जीरा, जूट, मटर, दालें, मसाले, ज्वार, तिल्ली, नीम्बू, दूध, मिर्च, काली मिर्च, अदरक, हल्दी, अमरूद, आम एवं गोश्त। इसकी तीसरी विशेषता है कि भारत में पालतू पशुओं की संख्या पूरी दुनिया में सर्वाधिक है। चौथे, काजू, गोभी, कपास बीज, लहसुन, रेशम, इलायची, प्याज, गेहूँ, चावल, गन्ना, मसूर, मूँगफली, चाय, आलू, लौकी, सीताफल एवं मछली उत्पादन में भारत का स्थान पूरी दुनिया में दूसरा है। पाँचवें, तम्बाकू, अलसी, नारियल, अण्डा और टमाटर उत्पादन में भारत का स्थान पूरी दुनिया में तीसरा है। छठवें, भारत विश्व के फल उत्पादन का दसवां हिस्सा उत्पादित करता है जिसमें आम, केला, पपीता आदि का प्रमुख स्थान है। सातवें, भारत के किसान अपनी-अपनी जमीन के स्वतन्त्र मालिक हैं और यह सदियों से पंचायती राज व्यवस्था लागू है। अर्थात किसान अब जमीन्दारों-जागीरदारों के अधीन नहीं हैं।

उल्लेखनीय है कि किसी उत्पादन के पाँच कारक होते हैं— भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यमशीलता एवं संगठन। खेती के लिए भूमि सबसे महत्वपूर्ण कारक है। आबादी के बढ़ने के साथ-साथ खेतिहर जोतों का विभाजन तेजी से हुआ जिसके फलस्वरूप भारत की तीन-चौथाई जोतें एक हेक्टेयर से कम हैं। औसतन जोत का आकार बीस हजार वर्गमीटर से कम है। जोतों का आकार छोटा होने से कई प्रकार की तकनीकी का उपयोग असम्भव हो जाता है। भारत के छह लाख गाँवों में 72 प्रतिशत आबादी रहती है और नगरों-महानगरों-कस्बों में मात्र 28 प्रतिशत आबादी निवास करती है। मात्र 52.6 प्रतिशत (2003-04) खेती की सिंचाई सुनिश्चित हो पाती है। कहने का आशय यह है कि लगभग आधी खेती पूर्णतः वर्षा पर आधारित है। जो भूमि सिंचित दिखाई जाती है उसकी भी सिंचाई नलकूप के बिगड़ने, बिजली की आपूर्ति समय पर न होने, जल-वितरण में विषमता एवं अवैज्ञानिक होने, नाली टूटने, परस्पर असहयोग आदि के कारण सुनिश्चित नहीं होती।

प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद भारत के अधिकतर किसान गरीब हैं, वे अपने बच्चों को समुचित शिक्षा नहीं दे पाते, परिवार के बीमार सदस्यों का इलाज नहीं करा पाते, उन्हें पीने का पानी एवं शौचालय जैसी अनेक बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। छोटे-छोटे किसान हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद बहुत कम आय अर्जित करते हैं क्योंकि उनके उत्पादों की सही कीमत उन्हें नहीं मिलती।वस्तुस्थिति यह है कि अधिकतर गाँवों में किसान वर्षा जल का समुचित संचयन नहीं करते क्योंकि दबंगों ने तालाबों का अस्तित्व ही मिटा दिया है और भू-जल का दोहन अत्यधिक होने के कारण जल-स्तर काफी नीचे चला गया है। अशिक्षा तथा विकल्प न होने के कारण प्रायः पूरे खेत को डुबोकर ही सिंचाई की जाती है, स्प्रिंकलर से नहीं। इस प्रकार जिस वर्ष अच्छी वर्षा होती है, उस वर्ष खेती की पैदावार अधिक होती है (उत्पादन और उत्पादकता दोनों मामले में)। उत्तर प्रदेश जैसे तमाम राज्यों ने नया सरकारी नलकूप नहीं गाड़ने का नीतिगत निर्णय ले लिया है, जिसके कारण सिंचाई की समस्या ज्यादा गम्भीर हो गई है। खेती राज्य सूची में है, यानी राज्य सरकारें ही इस पर नीतिगत निर्णय लेती हैं। भारत में कुल वर्षा का 75 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होता हैं और जाहिर है कि भारत की कृषि व्यवस्था इन माहों में होने वाली वर्षा से जुड़ी होती है। भारत में मौसमी वर्षा का वितरण तालिका-1 में देखा जा सकता है।

तालिका-1: भारत में वर्षा का मौसमी वितरण
क्रम संख्या
मौसम
महीने
वितरण (प्रतिशत में)
1
मानसून के पूर्व
मार्च-मई
10.4
2
दक्षिण-पश्चिमी मानसून
जून-सितम्बर
73.4
3
मानसून के बाद
अक्तूबर-दिसम्बर
13.3
4
जाड़े की वर्षा
जनवरी-फरवरी
2.9
तालिका-2
क्रम संख्या
वर्षा की श्रेणियाँ
प्रकार
बुआई-क्षेत्र (प्रतिशत में)
1
750 मि.मी. से कम
कम वर्षापात
33
2
750 से 1125 मि.मी.
मध्यम वर्षापात
35
3
1126 से 2000 मि.मी.
अधिक वर्षापात
24
4
2000 मि.मी. से ऊपर
अत्यधिक वर्षापात
08
1. शुष्क क्षेत्र (19.6 प्रतिशत)—
2. अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र (37 प्रतिशत)—
3. उप-नम क्षेत्र (21 प्रतिशत)—
4. नम क्षेत्र—
तालिका-3
राज्य
जिले
आन्ध्र प्रदेश
अनन्तपुर, चित्तूर, कडप्पा, हैदराबाद, कुर्नूल, महबूबनगर, नलगोण्डा, प्रकाशम।
बिहार
मुँगेर, नवादा, रोहतास, भोजपुर, औरंगाबाद, गया।
गुजरात
अहमदाबाद, अमरेली, बनासकाठा, भावनगर, भरूच, जामनगर, खेड़ा, कच्छ, मेहसाणा, पंचमहल, राजकोट, सुरेंद्रनगर।
हरियाणा
भिवाड़ी, गुड़गाँव, महेंद्रगढ़, रोहतक।
जम्मू-कश्मीर
डोडा, ऊधमनगर।
कर्नाटक
बंगलुरु, बेलगाम, बेल्लारी, बीजापुर, चित्रादुर्गा, चिकमगलूर, धारवाड़, गुलबर्ग, हासन, कोलार, मांड्या, मैसूर, रायचूर, तुमकुर।
मध्य प्रदेश
बेतुल, दतिया, देवास, धार, झाबुआ, खंडवा, शहडोल, शाजापुर, सीधी, उज्जैन।
महाराष्ट्र
अहमदनगर, औरंगाबाद, बीड, नांदेड़, उस्मानाबाद, पुणे, परभणी, सांगली, सतारा, शोलापुर।
ओडिशा
फुलबनी, कालाहाण्डी, बोलागीर, केन्द्रपाड़ा।
राजस्थान
अजमेर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, चुरू, डूंगरपुर, जालौर, झुंझनू, जोधपुर, नागपुर, पाली, उदयपुर।
तमिलनाडु
कोयम्बटूर धर्मापुरी, मदुरई, रामनाथपुरम्, सलेम, तिरुचिरापल्ली, तिरुनेलवेल्ली, कन्याकुमारी।
उत्तर प्रदेश
इलाहाबाद, बान्दा, हमीरपुर, जालौन, मिर्जापुर, बनारस।
पश्चिम बंगाल
बांकुड़ा, मिदनापुर, पुरुलिया।
झारखंड
पलामू।
(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध अधिकारी हैं)
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