देश में पानी की स्थिति कमोबेश ऐसी होने लगी है कि हर साल पानी को लेकर कुछ राज्यों में हाहाकर मचने लगता है। कुछ राज्यों के शहरी क्षेत्रों में तो स्थिति खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। ठंड के एक-दो महीने छोड़ दिए जाएं तो शहरी क्षेत्रों में टेंकरों और सार्वजनिक पानी के नलों के आस-पास बर्तनों की भीड़भाड़ के बीच अपना नंबर आने की आशा में महिलाओं और बच्चों का मजमा आम हो गया है। पानी को लेकर कत्लेआम अब आम अपराध जैसे होने लगे! वह दिन दूर नहीं जब एक बाल्टी पीने के पानी के लिए आंखों से पानी आ जाए तो बड़ी बात नहीं होगी!
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने कलयुग-वर्णन के अंतर्गत कलयुग में बार-बार अकाल पड़ने की चर्चा की है। कल बारहिं बार अकाल परै। बिनु अन्न प्रजा बहु लोग मरे। अकाल की स्थिति में अन्न का उत्पादन संभव नहीं है। पानी है तो अन्न है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है :
अन्नद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न्संभवः
अन्न से प्राणियों का पालन होता है और अन्न बादलों से संभव होता है। जब बादलों से जल नहीं बरसता है, तब अकाल की स्थिति बनती है। अकाल का शाब्दिक अर्थ होता है समय का निषेध। दरअसल, जिस तरह से साल-दर-साल पानी की समस्या का सामना हम अपने आस-पास कर रहे हैं, उससे यह बात निश्चित है कि अब सभी को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे। वरना हर पानी की बूंद पैसा मांगेगी और स्थिति यह भी हो सकती है कि भले ही हमारी जेब में पैसा खूब हो पर पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा!
देश का एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा भूगर्भ जलसंकट की चपेट में है। देश के कुल 5,723 खंडों में से 839 अत्यधिक भूगर्भ जल के दोहन के कारण निराशाजनक भूकटिबंधों में चले गए हैं। जबकि, 226 की स्थिति संकटपूर्ण और 550 अर्ध-संकटपूर्ण है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु गंभीर रूप से इस संकट का सामना कर रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और केरल भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। दिल्ली और इसके आस-पास के क्षेत्रों की स्थिति और गंभीर है। दिल्ली के कुल 9 खंडों में से सात भूगर्भ जल के अत्यधिक दोहन के कारण निराशाजनक भूकटिबंधों में चले गए हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी यह समस्या शुरू हो गई है। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार राज्यों में पंजाब की स्थिति भयावह है, जहां 137 खंडों में से 103 निराशाजनक भूकटिबंधों में, पांच संकटपूर्ण और चार अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। हरियाणा के 113 खंडों में से 55 निराशाजनक, 11 संकटपूर्ण और पांच अर्ध संकटपूर्ण हैं।
रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के 237 खंडों में से 140 निराशाजनक भूकटिबंधों में हैं, जबकि 50 संकटपूर्ण और 14 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। आंध्र प्रदेश में 219 खंड निराशाजनक भूकटिबंधों, 77 संकटपूर्ण और 175 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। तमिलनाडु के 385 खंडों में से 142 निराशाजनक, 33 संकटपूर्ण और 57 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। उत्तर प्रदेश में भी भू-गर्भ जलसंकट की समस्या शुरू हो गई है।
इस राज्य के 803 खंडों में से 37 निराशाजनक, 13 संकटपूर्ण और 88 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में आ गए हैं। उत्तराखंड की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी है। यहां दो खंड निराशाजनक तथा तीन अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। पश्चिम बंगाल में यह समस्या शुरू हुई है। यहां के 269 खंडों में से एक संकटपूर्ण और 37 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। गुजरात के 223 खडों में से 31 निराशाजनक भूकटिबंधों में आ गए हैं, जबकि 12 संकटपूर्ण और 69 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं। केरल के 151 खंडों में से पांच निराशाजनक भूकटिबंधों में हैं, जबकि 15 संकटपूर्ण और 30 अर्ध संकटपूर्ण स्थिति में हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, उड़ीसा और बिहार में भूगर्भ जलसंकट की समस्या नहीं है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा झारखंड में भी भूगर्भ जल का संकट नहीं है। मध्य प्रदेश के 312 खंडों में से 24 निराशाजनक भूकटिबंधों में 5 संकटपूर्ण और 19 अर्ध संकटपूर्ण क्षेत्र में हैं। महाराष्ट्र के 318 खंडों में से 7 निराशाजनक, एक संकटपूर्ण और 23 अर्ध संकटपूर्ण भूकटिबंधों में हैं।