उत्तराखण्ड राज्य जल नीति - 2019
प्रस्तावना
जल अत्यन्त महत्वपूर्ण और अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों में से एक है, जो जीवन, जीवकोपार्जन, कृषि, चिरस्थायी सामाजिक विकास के साथ-साथ पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिये अति आवश्यक है कि नवीकरणीय उपलब्धता सीमित तथा क्षीणता/ह्रास व अपकर्ष के प्रति वेदनीय है। राज्य भरपूर जल संसाधन से सम्पन्न है, जहां इसकी उपलब्धता प्रचुर है, परन्तु वहीं दूसरी ओर जल के विविध उपयोगों यथा असमान वितरण, पेय और घरेलू उपयोग, सिंचाई, विद्युत (पन-बिजली) औद्योगिक आदि की मांग में वृद्धि होने के कारण इसकी अपर्याप्तता प्रकट हो रही है, जो जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ और अधिक बढ़ेगी। इसके अतिरिक्त, राज्य को एक या सभी क्षेत्रों में बारम्बार बाढ, भूस्खलन, मृदाक्षरण, बादल-फटने और सूखे की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, असंगत वितरण, विभिन्न जल उपभोक्ता समूह में विवादों, जल संसाधन के नियोजन, प्रबंधन एवं उपयोग एकीकृत परिदृश्य में अभाव होने के कारण उपयोगी जल की उपलब्धता में उत्तरोत्तर कमी होती जायेगी।
राज्य जल नीति का उद्देश्य राज्य में वर्तमान स्थिति का परिज्ञान लेना तथा राज्य के उपयोज्य, पारिस्थितिकीय एवं विकास अभिज्ञता पर आधारित जल संसाधन के नियोजन, विकास एवं प्रबंधन हेतु ढांचा प्रस्तावित करना है।
1.0 जल की उपलब्धता तथा वर्तमान परिदृश्य
1.1
1.2
1.3
1.4
जल विद्युत
1.5
उद्योग
1.6
पारिस्थितिकीय और स्वास्थ्य
1.7
1.8
1.9
2.0 जल नीति की दूरदर्शिता
2.1 जल का अधिकार -
2.2
सर्व/सार्वजनिक आर्थिक, पर्यावरण एवं सामाजिक कल्याण -
2.3 जल संसाधन के प्रबंधन एवं उपयोग में सभी सरकारी स्तरों की भागीदारी -
2.4 जल आंवटन प्राथमिकताएं -
2.5 जल पारिस्थितिक -
2.6
2.7
नीति
1.0
2.0
3.0
4.0
5.0
6.0
7.0 जल विनियोजन प्राथमिकताएं
जल संसाधन प्रणालियों के नियोजन एवं संचालन में जल आवंटन प्राथमिकताएं मुख्य रूप से निम्नानुसार होगी:-
- सुरक्षित/शुद्ध पेयजल, स्वच्छता/मलजल-सफाई एंव पशुधन आवश्यकताएं
- सिंचाईं
- जलविद्युत
- पारिस्थितिकीय/वनीकरण/जैव-विविधता/पारिस्थितिकीय-पर्यटन
- कृषि आधारित उद्योगों
- अन्य उपयोग
यद्यपि, राज्य के किसी क्षेत्र/भूभाग में विशेष पहलुओं के दृष्टिगत उक्त में आवश्यक संशोधन किया जा सकता है।
8.0 परियोजना नियोजन एवं प्रबंधन
8.1 कछार नियोजन -
8.2
परियोजना तैयार करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार किया जायेगा:-
- परियोजना निर्माण से पूर्व एंव पश्चात् मानव-जीवन, व्यवसाय तथा पर्यावरण आदि पर उसका प्रभाव।
- पारिस्थितिक संतुलन पर प्रभाव एवं यदि आवश्यक हो तो क्षतिपूर्ति उपाय। एक स्वतंत्र संस्था द्वारा प्राथमिक रूप से पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन।
- आर्थिक मूल्यांकन एंव सामाजिक-आर्थिक प्रभाव।
- अनुश्रवण तंत्र।
- जल पद-चिन्ह/अनुमार्गण विश्लेषण।
- वर्षा-जल संवर्धन तथा अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग।
- अवधारित परियोजना की व्यवहार्यता/चिरस्थायित्वता एवं सामाजिक स्वीकार्यता।
- परियोजना नियोजन अवस्था में लाभार्थियों एवं अन्य हितधारकों की सहभागिता एंव भागीदारी।
8.3
8.4
8.5
8.6
8.7
8.8
8.9
8.10
8.11
8.12
8.13
8.14
8.15
8.16
8.17
9.0 सुरक्षित शुद्ध पेय-जल एवं मल-जल निकासी
9.1
9.2
9.3
9.4
9.5
9.6
9.7
9.8
’’उत्तराखंड जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग’’ (यूडब्लूआरएमआरसी)
9.9
9.10
9.11
9.12
9.13
9.14
9.15
9.16
’’जल एवं जलागम प्रबंधन समिति’’ (डब्लूडब्लूएमसी)
9.17
भू-जल
9.18
9.19
9.20
9.21
9.22
9.23
9.24
9.25
10.0 सिंचाई
10.1
(1) अप्रयुक्त संसाधनों का दोहन, एवं
(2) पूर्व में दोहन किये गए संसाधनों के प्रबंधन में गुणात्मक सुधार।
क)
अप्रयुक्त संसाधनों का दोहन:-
- सतही एवं भूमिगत जल दोनों के सम्बन्ध में वर्ष 2040 के परिप्रेक्ष्य में कार्ययोजना को तैयार किया जायेगा। क्रियान्वयन कार्यक्रम को इस प्रकार सुनिश्चित किया जाएगा कि निधि, विशेषज्ञता, उपकरण एवं प्रशिक्षित श्रमशक्ति को इष्टतम/माकूल परिणाम की प्राप्ति हेतु समान रूप से विकसित किया जा सके।
- जल संसाधन परियोजनाएं, विशेष रूप से बहुउद्देशीय परियोजनाएं जो राज्य के वृहद हित मे आवश्यक है एंव जिनमें दीर्घकालिक निवेश किये गए हैं, उनमें कार्य-योजना के अनुसार इस प्रकार निर्णय लिया जाएगा कि परियोजनाएं समय पर पूर्ण हो जाएं।
- परियोजनाएं स्वपोषनीय होगीं चूंकि कृषि हेतु सिंचाई एक आवश्यक निविष्ट है तथा जल मूल्य का व्यापक आर्थिक प्रभाव होता है, इसलिए उक्त के निमित्त
‘‘उत्तराखंड जल प्रबंधन और नियामक अधिनियम 2013’’
के अन्तर्गत ’‘उत्तराखण्ड जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग‘’ (यूडब्लूआरएमआरसी)
का गठन प्रस्तावित किया गया है।
ख) सिंचाई जल का प्रबंधन -
- समग्र जल एवं प्रस्तावित उपभोग का लेखा रखा जाएगा तथा समय समय पर इसका परीक्षण किया जाएगा। जल उपलब्धता एवं खेत की प्राथमिकताओं द्वारा निर्धारित जरूरतों के अनुसार आपूर्ति के त्वरित समायोजन को सक्षम बनाने हेतु इन प्रणालियों को संगत तकनीक अनुप्रयोगित युक्ति का उपयोग करने की व्यवस्था प्रदान की जाएगी। इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित पहलुओं पर विशेष रूप से विचार किया जाएगाः-
- उपलब्धता एवं आवश्यकताओं की प्राथमिकतानुसार इष्टतम उपयोग के लिए प्रणाली का संचालन सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त एंव उचित प्रबंधन सूचना तंत्र (एमआईएस)।
- हानि को कम करने के लिए परस्पर निम्नलिखित उपायों को अपनाया जाना चाहिए:-
क.)
ख.)
- भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पुराने नहरों/गूलों का आधुनिकीकरण व नवीनतमीकरण किया जाएगा।
10.2
- कृषि-योग्य भूमि के सुधार एवं विकास (जैसे खेतों का समतलीकरण, जल-वाहिका/नहर का सुधार एवं अनुरक्षण आदि) पर जोर दिया जाएगा।
- कृषि उत्पादन के लिए जल का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली यथा स्प्रिंकलर/छिड़काव एवं ड्रिप/द्रप्त सिंचाई तथा उन्नत कृषि प्रणाली का अंगीकरण।
- क्षेत्र विशेष हेतु कम जल की खपत वाली उपयुक्त फसल पद्धति को अपनाना।
10.3
10.4
10.5
10.6
बाढ़ नियंत्रण एवं प्रबंधन
10.7
10.8
10.9
10.10
10.11
10.12
10.13 नदियों एवं सहायक नदियों द्वारा भू-क्षरण
नदियों द्वारा भूमि के अपक्षरण को पुश्ता/बंध, पुलिनरोध, तटबंध जैसे किफायती संरचनाओं का निर्माण कर कम किया जाएगा तथा मृदा-क्षरण एंव आकस्मिक अजस्र जल-प्रवाह की रोक-थाम के लिए वर्षाजल संवर्धन रचनाओं के निर्माण को प्रोत्साहित किया जायेगा। राज्य को नदी के तटों पर अवैध अतिक्रमण एवं भूमि का अनुचित प्रयोग को बढ़ावा न मिलने पाए, के लिए कठोर कदम उठाना पड़ेगा। नदियों के तटों एवं तली पर आर्थिक गतिविधियां विनियमित करनी होगी। नदी कछारों में वनीकरण को आड़ तथा जल-अवशोषक के रूप में कार्य करने के उद्देश्य हेतु बढ़ावा दिया जाएगा
सूखा संभावित क्षेत्र विकास
10.14
10.15
जलवायु परिवर्तन अनुकूलन
10.16
10.17
10.18
10.19
11.0 सहभागिता सिद्धांत
11.1
11.2
12.0 जल-विद्युत विकास
12.1
लघु जल विद्युत परियोजनाएं -
12.2 जल-मिल/घराट -
12.3 मध्यम एवं बड़े जल विद्युत/बहुउद्देशीय परियोजनाएं -
13.0 जल गुणवत्ता
13.1
13.2
13.3
14.0 जल संरक्षण, संवर्धन तथा परिरक्षण
14.1
14.2
14.3
14.4
14.5
14.6
15.0 नदी प्रवाह-मार्गो, जल निकायों एवं अवसंरचनाओं का संरक्षण
15.1
15.2
15.3
15.4
15.5
15.6
15.7
15.8
15.9
16.0 जल का लेखा-परीक्षण एवं उत्तरदायित्व
16.1
16.2 समानता, दक्षता तथा आर्थिक गतिविधियों की पूर्ति हेतु प्रत्येक जल संसाधन परियोजनाओं के जल का लेखा-परीक्षण एवं लेखांकन किया जाएगा तथा इसके अतिरिक्त जल प्रभार प्राथमिकता के साथ नियमानुसार आयतन के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। ऐसे परिवर्तनों की समय समय पर समीक्षा भी की जाएगी।
16.3
16.4
16.5
17.0 विवाद समाधान
विभिन्न हितधारकों द्वारा विविध प्रयोजनों हेतु जल की मांग के साथ ही इसे अति महत्वपूर्ण एवं अपर्याप्त संसाधन के रूप में जाना जाने लगा है, फलतः जल संसाधन के उपयोग को लेकर उनमे विवाद उत्पन्न होना स्वाभाविक है। जिला एवं राज्य स्तर पर एक विवाद समाधान तंत्र बनाया जाएगा। इसके लिये जिला एवं राज्य स्तर पर एक ’’विवाद समाधान समिति’’ गठित की जाएगी तथा जल से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े राज्य सरकार के विभाग इस समिति के अंग होंगे। जिला एवं राज्य स्तरीय समिति की संरचना को शासन स्तर से अंतिम रूप दिया जाएगा जिसमे सम्बन्धित जल संसाधन विभागों के सदस्यों एवं पंचायती राज संस्थाआंे/स्थानीय शहरी निकायों के नामित सदस्यों, परिस्थिति अनुसार, को सम्मिलित किया जाएगा। सम्बन्धित विभाग विवाद से सम्बन्धित सभी प्रासंगिक सूचनायें उपलब्ध कराने हेतु जिम्मेदार होंगे।
18.0 संस्थागत तंत्र
18.1
18.2
18.3
18.4
18.5
19.0 सार्वजनिक-निजी सहभागिता (पीपीपी)
19.1
19.2
20.0 आंकड़ा-आधार एवं सूचना-तन्त्र
20.1
20.2
20.3
21.0 वित्तीय एवं भौतिक सम्पोषणीयता
21.1
21.2
21.3
22.0 अनुरक्षण एवं आधुनिकीकरण
22.1
22.2
23.0 विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी
23.1
23.2
23.3
24.0 अंतर्राष्ट्रीय नदियाँ
पड़ोसी देशों/राज्यों के साथ जल-मौसम सम्बन्धी आंकड़ों का आदान-प्रदान, जल सहभाजन व प्रबंधन तथा अन्य विकास योजनाओं से सम्बंधित अन्तर्राष्ट्रीय/द्विपक्षीय समझौतों में भारत सरकार के समक्ष राज्य का हित प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जायेगा।
25.0 मानव संसाधन विकास (प्रशिक्षण)
25.1
25.2
25.3
25.4
उत्तराखंड राज्य जलनीति की पीडीएफ (PDF) को डाउनलोड करने के लिए नीचे डाउनलोड पर क्लिक करें।
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