वानिकी एक ऐसा रोचक अध्ययन क्षेत्र है जो उन सब सिद्धांतों तथा व्यवहारों से मिलकर बना है जिनमें वनों के सृजन, संरक्षण तथा वैज्ञानिक प्रबंधन और उनके संसाधनों का उपयोग शामिल है।भारत में वैज्ञानिक वानिकी की शुरुआत सबसे पहले 1864 में वन प्रबंधन के लिए वानिकी व्यावसायिकों को प्रशिक्षित करने के वास्ते हुई थी। देश में विश्वविद्यालय स्तर पर वानिकी शिक्षा वर्ष 1985 में उस समय आरंभ हुई जब राज्य कृषि विश्वविद्यालयों-वाईएसपी यूएचएफ, सोलन तथा पीडीकेवी, अकोला में चार वर्ष के डिग्री कार्यक्रम के रूप में बीएससी वानिकी पाठ्यक्रम शुरु किया गया। बाद में यह कार्यक्रम 1986 में जीबीपीयूएटी, पन्त नगर तथा टीएनएयू, कोयम्बत्तूर में तथा इसके बाद 1987 में ओयूएटी, भुवनेश्वर तथा जेएनकेवीवी, जबलपुर में शुरु किया गया। अब यह कार्यक्रम बहुत से राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में संचालित किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में वानिकी से संबंधित विशेष विषय में विशेषज्ञता के साथ वानिकी/कृषि-वानिकी में मास्टर और डॉक्टरल डिग्री पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। हाल के दिनों में कुछ परंपरागत विश्वविद्यालयों ने भी वानिकी शिक्षा की शुरुआत की है। ताजा अनुमानों से यह सिद्ध होता है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वानिकी क्षेत्र का उल्लेखनीय योगदान और महत्व है। विपरीत वन्य स्थिति से निपटने के लिए कुशल मानवशक्ति की आवश्यकता होती है ताकि शोध कार्यों और निर्देशक सिद्धांतों के आधार पर उपर्युक्त कार्य योजनाएं तैयार की जा सकें। इस प्रकार नीति और अनुप्रयोग की दृष्टि से वानिकी/कृषि वानिकी प्रबंधन से जुड़े पाठ्यक्रमों का बहुत महत्व है। वर्ष 2007 में भारत में कृषि (वानिकी सहित) शिक्षा पर बनाई गई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की चौथी डीन कमेटी की सिफ़ारिशों पर स्नातकपूर्व-स्तर पर वानिकी कार्यक्रम हेतु समय की मांग के अनुरूप पाठ्यक्रम और निर्देशन व्यवस्था में संशोधन किए गए हैं। सामान्यतः वानिकी शिक्षा, अनुसंधान, प्रशिक्षण और विस्तार पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार के पर्यवेक्षणाधीन है। पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन सर्वोच्च संस्था के रूप में कार्यरत भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसी एफआरई) वानिकी अनुसंधान, प्रशिक्षण, विस्तार और शिक्षा में सक्रियता के साथ जुड़ा हुआ है। मंत्रालय के अधीन विभिन्न आठ वन संस्थान कार्यरत हैं। ये हैं ईसीएफआरई, देहरादून,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी, हेदरादून, जो सर्वोच्च वन प्रशासक (आईएफएस) तैयार करती है, वन शिक्षा निदेशालय, जिसके अधीन चार राज्य वन सेवा महाविद्यालय (राज्य स्तर के) हैं, भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून, भारतीय प्लाइवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, बंगलौर तथा वन और पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण और विकास संस्थान।स्नातकपूर्व कार्यक्रम स्तर पर वानिकी शिक्षा वर्तमान में वानिकी में स्नातकपूर्व, स्नातकोत्तर और डॉक्टरल कार्यक्रम विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों तथा कुछ अन्य परंपरागत विश्वविद्यालयों/संस्थानों में संचालित किए जाते हैं। ज्यादातर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में चार वर्षीय व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रम बीएससी वानिकी संचालित किए जा रहे हैं तथा शेष संस्थान भी यह कार्यक्रम बहुत जल्दी ही शुरू करने की योजना बना रहे हैं। वानिकी स्नातक तकनीकी रूप से योग्य, कुशल तथा पर्यावरण और जीवन की सुरक्षा से जुड़े वानिकी क्षेत्र की उभरती चुनौतियों तथा मुद्दों से निपटने के लिए तैयार होते हैं। वानिकी स्नातकों को तैयार करने का मूल उद्देश्य वानिकी क्षेत्र के विकास तथा इसकी उद्यमशीलता हेतु वर्तमान स्थितियों तथा अपेक्षाओं के अनुरूप मानव शक्ति तैयार करना तथा दूसरी तरफ वानिकी स्नातकों को पर्यावरण सुरक्षा, वानिकी उत्पादों के मूल्य संवर्द्धन और वानिकी किसानों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के वास्ते सुयोग्य प्रबंधक माना जाता है। बीएससी वानिकी के छात्रों को वानिकी के सभी क्षेत्रों से संबंधित विभागवार पाठ्यक्रमों का अध्ययन कराया जाता है तथा वे सही अर्थों में वनपाल बनकर उभरते हैं। हाल में भारत में कृषि शिक्षा पर चौथी डीन कमेटी, आईसीएआर, 2007 ने निम्न प्रकार वानिकी स्नातकों के लिए विभाग-वार पाठ्यक्रमों की अनुशंसा की है :-