भारत में विशेषकर उत्तर भारत में हाड़ कंपा देने के लिये प्रसिद्ध ठंड इस वर्ष पड़ी ही नहीं। लोग अचरज में हैं कि आखिर मौसम को इस बार हुआ क्या है। जनवरी का अंत आते आते धूप तीखी लगने लगी और फरवरी के अंत तक लोगों का पसीना छूटने लगा है। मौसम विभाग चेतावनी दे रहा है कि आगामी गर्मियों में तापमान नए रिकॉर्ड बना सकता है। वैसे तो बीते कुछ वर्षों से न्यूनतम और अधिकतम तापमान में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन अब लगता है कि 2025 अब तक का सबसे गर्म वर्ष बनने जा रहा है।
वैश्विक औसत तापमान पिछले सवा सौ सालों में अपने उच्चतम स्तर पर है। औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर अब तक तापमान में 1.25 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक 45 वर्षों से हर दशक में तापमान में 0.18 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ है। विशेषज्ञों के आंकलन के अनुसार 21वीं सदी में पृथ्वी के सतह के औसत तापमान में 1.1 से 2.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने की आशंका है। वायु में मौजूद ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड के अनुपात पर एक शोध में पाया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण वातावरण से ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है। एक आंकड़े के मुताबिक अब तक वायुमण्डल में 36 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि हो चुकी है और वायुमण्डल से 24 लाख टन ऑक्सीजन समाप्त हो चुका है। अगर यही स्थिति बनी रही तो 2050 तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होना तय है।
इस साल फरवरी के पहले ही हफ्ते में मैदानी राज्यों में गर्मी ने तेवर दिखाने शुरू दिए। ध्यान रहे कि बीता साल भारत के लिए बेहद गर्म रहा था, जिसमें हर महीने औसतन न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया गया था। इस वर्ष जिन दिनों में वसंत की मधुरता का अहसास होना चाहिए, उन दिनों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश आदि में पारा बढ़ गया और महाराष्ट्र के विदर्भ, तेलंगाना, तटीय आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल और दमन-दीव के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 35-38 डिग्री के बीच रिकार्ड किया जा रहा है। दिल्ली और उसके आसपास का तापमान 28 डिग्री से पार होना सामान्य नहीं। मौसम का बदलता मिजाज जलवायु परिवर्तन की मजबूत होती पकड़ की तरफ इशारा कर रहा है।
इस साल जनवरी में विश्व का औसत तापमान 13.23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले साल की सबसे गर्म जनवरी से 0.06 डिग्री अधिक था। तापमान तेजी से बढ़ रहा है। मौसम की गर्मी ऐसे ही बढ़ती रही तो सबसे बड़ा नुकसान खेती को होगा। गेहूं के दाने कमजोर होंगे और चना-सरसों फसल भी समय से पहले पक जाएंगी। आशंका है कि
इस वर्ष गेहूं के उत्पादन में कमी आ सकती है। सेब और लीची के पेड़ों में फूलों के परागण का समय कम रहेगा, जिससे फल बनने एवं पकने की प्रक्रिया प्रभावित होगी। यदि तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो यह खरीफ मौसम के दौरान किसानों की आय 6.2 प्रतिशत तक घटा देता है और असिंचित क्षेत्रों में रबी मौसम के दौरान किसानों की आय छह प्रतिशत तक कम कर देता है।
इसी तरह बारिश में औसतन 100 मिमी की कमी होने पर खरीफ के मौसम में किसानों की आय में 15 प्रतिशत और रबी के मौसम में किसानों की आय में सात प्रतिशत की गिरावट आती है। अब यह खतरा सिर पर है। मच्छर जैसे परजीवी बढ़ते तापमान से पैदा हो रहे हैं। पारंपरिक दवाएं उन पर बेअसर साबित हो रही हैं। धरती पर नमी कम होने से गर्मी बढ़ते ही जंगलों में आग का खतरा भी बढ़ जाता है। यदि गर्मी ऐसे ही बढ़ती रही तो लू के दिन भी बढ़ेंगे, जो देश की बड़ी आबादी के स्वास्थ्य और आर्थिक हालात पर असर डालेंगे। ऐसे में सरकार को अपनी नीतियां गर्म होते मौसम के अनुरूप बनाने की जरूरत है। सबसे पहले ग्रीनहाउस गैस कम करने के तरीकों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। फिर ऊर्जा और पानी की बचत प्राथमिकता के आधार पर होनी चाहिए।
मौसम के इस बदलते स्वभाव के पीछे मानवीय गतिविधियां ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक नहीं हैं। ऐसे में धरती और इसकी पारिस्थितिकी को बिगाड़ने वाले मानव समाज की ही जिम्मेदारी है कि अपनी गलतियों का परिमार्जन करे। हमारी बदलती जीवनशैली को पर्यावरण को घातक क्षति पहुंचाई है। हमें देश, समाज और व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण को शीर्श प्राथमिकता देनी होगी। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बदलता तापमान धरती को झुलसा देगा। फिर यह भी संभव है कि धरती पर आबाद मानवीय सभ्यता एक दिन इतिहास बन जाए।
जनवरी से मार्च तक का समय, जो पहले सर्दियों और बसंत की सुहावनी ऋतु लेकर आता था, अब मौसम के बदलते मिजाज के कारण गर्मी का अहसास देने लगा है। सर्दियों की ठिठुरन कम हो गई है, और फरवरी-मार्च में ही गर्म हवाएं चलने लगती हैं। इस बदलाव ने जीवन को कठिन बना दिया है, क्योंकि अब मार्च आते-आते गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि बिना पंखे या एसी के रहना मुश्किल हो जाता है। यह परिवर्तन जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है, जिससे निपटने के लिए पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर ध्यान देना जरूरी है।