इस साल अप्रैल में पड़ रही असहनीय गर्मी की एक महत्वपूर्ण वजह है- ला नीना इफेक्ट। हालांकि आम धारणा है कि ला नीना ठंडक लाता है, लेकिन इसका असर क्षेत्रीय और दीर्घकालिक जलवायु पर जटिल होता है। दरअसल, 2023 में एक दुर्लभ "ट्रिपल डिप ला नीना" (Triple Dip La niña) की घटना देखने को मिली थी, यानी लगातार तीन वर्षों तक ला नीना सक्रिय रहा। अब तक ऐसा केवल चार बार ही देखा गया है। वैाानिकों के मुताबिक इस साल पड़ रही प्रचंड गर्मी की असल वजह यह ट्रिपल डिप ही है, क्योंकि इतिहास में हर टिपल डिप ला'नीना के बाद ग्लोबल तापमान बढ़ा है। गौरतलब है कि यह साल यानी 2025 भी इसी पैटर्न में आता है और इसीलिए इस साल रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ने का अनुमान है।
ला नीना (La Niña) ENSO (El Niño-Southern Oscillation) चक्र का एक चरण है, जिसमें प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय भाग में समुद्री सतह का तापमान सामान्य से नीचे चला जाता है। इससे वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण प्रभावित होता है और जलवायु में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आते हैं। यह सब होता है प्रशांत महासागर में गर्म Trade Winds की वजह से। पृथ्वी के धूमने से प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के करीबी इलाकों में ये ट्रेड विंड्स समुद्र की ऊपरी पानी को तटीय इलाकों की ओर ड्रिफ्ट करती हैं। ये एक प्रकार की साइकिल है, जो पूरे दुनिया के क्लाइमेट को प्रभावित करती है। इसे Enso Cycle बोलते हैं। इसमें तीन फेज होते हैं, जो कि Natural Phase, El Nino, La Nina होते हैं। इनमें से La Nina क्लाइमेट में सबसे ज्यादा फ्लक्चुएशन उत्पन्न करती है। जिससे कहीं बहुत ज्यादा बारिश होना, कहीं असामान्य रूप से बर्फ पड़ना और कहीं बेहद गर्मी के कारण आग लगने जैसी घटनाएं होती हैं। La Nina सामान्यत: एक साल चलता है। कभी चुनिंदा मामालों में यह तीन साल तक चल जाता है, जिसे Triple Dip La Nina बोलते हैं। ऐसा आजतक केवल चार बार हुआ है। इससे हमेशा ग्लोबल टेम्परेचर में अचानक बढ़ोतरी होती है, क्योंकि ला नीना के बाद अक्सर एल नीनो आ जाता है, जो जबरदस्त गर्मी लाता है। 2020–2023 वाला ट्रिपल डिप तो काफी चर्चित रहा क्योंकि इसके ठीक बाद (2023 के आखिर और 2024 में) रिकॉर्ड ब्रेकिंग गर्मी दर्ज की गई।
ENSO चक्र तीन अवस्थाओं में चलता है—El Niño, La Niña, और Neutral। यह चक्र वायुमंडलीय और समुद्री तापमान की परस्पर क्रिया से संचालित होता है और इसका सीधा प्रभाव दक्षिण एशिया, अफ्रीका, अमेरिका समेत दुनिया के लगभग सभी हिस्सों पर पड़ता है। ENSO का एक असामान्य चरण, चाहे वह El Niño हो या La Niña, पूरी पृथ्वी के तापमान और मौसम के मिजाज को महीनों या वर्षों तक बदल सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ENSO चक्र में जब ला नीना लंबे समय तक बना रहता है, तो उसके बाद पृथ्वी पर तेजी से गर्मी बढ़ती है। 2023 के ट्रिपल डिप ला नीना के बाद 2024 और अब 2025 में तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है।
ला नीना के बाद गर्मी के बढ़ने के पीछे केवल ENSO चक्र ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि इसकी तीव्रता को ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते कार्बन उत्सर्जन ने और भी विकराल बना दिया है। औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक औसत तापमान में 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है। इस वजह से ENSO जैसी प्राकृतिक घटनाएं अब ज्यादा चरम (extreme) प्रभाव छोड़ रही हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर कार्बन उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगी, तो ENSO घटनाओं के बाद आने वाले गर्मी के दौर और भी भयानक हो सकते हैं, जिससे खाद्य संकट, जल संकट और आपदा प्रबंधन चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।
पिछले वर्षों में हमने ला नीना प्रभाव के बाद प्राकृतिक आपदाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है।
अमेजन के वर्षावनों का लगभग 20% हिस्सा 2023 में आग की भेंट चढ़ गया।
हॉलीवुड हिल्स में भीषण जंगल की आग लगी।
अफ्रीका के कई हिस्सों में भीषण सूखा पड़ा।
दक्षिण एशिया में असामान्य बारिश और बाढ़ आईं।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और ENSO घटनाओं के मिलेजुले प्रभाव से प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा आवृत्ति और तीव्रता से आ रही हैं।
भारत में गर्मी का बढ़ता कहर केवल तापमान तक सीमित नहीं रहेगा। इससे देश में जल संकट के और गहराने की आशंका है। विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में भूजल स्तर पहले से ही गिर चुका है। जल स्रोतों पर बढ़ता दबाव, पेयजल की कमी और खेती में पानी की अनुपलब्धता जैसे संकट इस भीषण गर्मी से और भयावह रूप ले सकते हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर अभी से जल संरक्षण की ठोस पहल नहीं की गई, तो आने वाले महीनों में पानी को लेकर गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।
लंबी अवधि तक अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य के लिए भी जानलेवा साबित हो सकती है। लू के गर्म थपेड़ों के कारण हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, हार्ट अटैक और सांस संबंधी रोगों के मामले भीषण गर्मी में तेजी से बढ़ते हैं। विशेषकर बच्चे, बुजुर्ग और पहले से बीमार लोग हीटवेव के सबसे बड़े शिकार बनते हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक इस भीषण गर्मी में शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए पर्याप्त पानी पीना, हल्के कपड़े पहनना, बाहर निकलने से बचना और शरीर को ठंडा रखने के उपाय करना बेहद जरूरी हो गया है।
समुद्री सतह तापमान (SST) का बढ़ना और उसका असर
धरती की जलवायु प्रणाली का मूल आधार समुद्र की सतह का तापमान (Sea Surface Temperature - SST) है। जब SST सामान्य से अधिक हो जाता है, तो यह वातावरण में अधिक गर्मी छोड़ता है, जिससे मौसमी पैटर्न में व्यापक बदलाव आते हैं। ENSO चक्र के दौरान SST में मामूली बदलाव भी पूरे ग्रह पर मौसमी असंतुलन पैदा कर सकता है। उदाहरण के तौर पर, ला नीना के दौरान पश्चिमी प्रशांत महासागर में SST कम होता है, लेकिन हिंद महासागर और अरब सागर में SST के बढ़ने से भारत में मॉनसून असामान्य व्यवहार करता है। SST में सिर्फ 1°C की वृद्धि से हीटवेव्स, तूफान और सूखे की तीव्रता व आवृत्ति में कई गुना इजाफा हो सकता है। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र जैसे कोरल रीफ्स, मछलियों की प्रजातियों और तटीय समुदायों पर गहरा प्रभाव डालता है।
ह्यूमन एम्पलीफाइड वार्मिंग (Human-Amplified Warming)
मानव जनित गतिविधियाँ जैसे कोयला, पेट्रोल और डीज़ल जैसे जीवाश्म ईंधनों का जलना, औद्योगिकीकरण, और वनों की कटाई ने प्राकृतिक जलवायु चक्रों को अधिक असंतुलित कर दिया है। इसे वैज्ञानिक भाषा में "Anthropogenic Global Warming" या Human-Amplified Warming कहा जाता है। इस प्रक्रिया के कारण वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का संकेंद्रण (concentration) तेजी से बढ़ा है, जिससे पृथ्वी की सतह पर अधिक गर्मी फंसी रह जाती है। नतीजतन, ENSO जैसे प्राकृतिक चक्र अब अधिक उग्र और अनियमित हो गए हैं। सरल शब्दों में, जो मौसमी बदलाव पहले सौम्य हुआ करते थे, वे अब चरम रूप में सामने आ रहे हैं—हीटवेव्स, सूखे, बाढ़ और अनियमित बारिश जैसी घटनाएं इसकी मिसाल हैं। यही कारण है कि ला नीना या एल नीनो अब पहले से ज्यादा प्रभावी होते जा रहे हैं।
महासागरीय प्रवाह का विक्षोभ (Disturbance of Ocean Currents)
महासागरों में लगातार चलने वाली जलधाराएं, जैसे कि गुल्फ स्ट्रीम या कुरोशियो करेंट, पृथ्वी की जलवायु को स्थिर बनाए रखने में मदद करती हैं। ENSO घटनाओं के दौरान इन महासागरीय धाराओं का पैटर्न बिगड़ जाता है। खासकर ला नीना के समय प्रशांत महासागर में बहने वाली ट्रेड विंड्स तेज़ हो जाती हैं, जिससे समुद्र की ऊपरी सतह का ठंडा पानी पश्चिमी दिशा में धकेल दिया जाता है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी असंतुलित हो जाती है और समुद्री जीव-जंतुओं के प्रवास, प्रजनन और भोजन चक्र प्रभावित होते हैं। साथ ही, कुछ क्षेत्रों में समुद्री हीटवेव्स (Marine Heatwaves) बढ़ने लगती हैं, जो कोरल रीफ्स को “Bleaching” का शिकार बना देती हैं। इसका असर मानव जीवन पर भी पड़ता है, खासकर उन समुदायों पर जो मछली पकड़ने और तटीय कृषि पर निर्भर हैं।
शहरी हरित आवरण को बढ़ाना: शहरों में ग्रीन बेल्ट विकसित कर शहरी हीट आइलैंड इफेक्ट को कम किया जा सकता है।
स्मार्ट जल प्रबंधन: वर्षा जल संचयन, जल पुनर्चक्रण और कुशल सिंचाई तकनीकों को अपनाना होगा।
हीट एक्शन प्लान: हर राज्य और जिले में प्रभावी हीटवेव प्रबंधन योजना बनानी चाहिए।
नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर: जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को घटाकर सौर और पवन ऊर्जा जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिए।
भविष्य में क्या उम्मीद की जाए?
आगामी वर्षों में यदि वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी रफ्तार से जारी रहा, तो ENSO चक्र और भी शक्तिशाली और अस्थिर हो सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2030 के बाद दुनिया को हर 2 से 4 वर्षों में चरम ENSO चक्र का सामना करेना पड़ सकता है। इसका मतलब यह है कि हीट वेव्स की अवधि लंबी होगी, ये अधिक तीव्र होंगी और ज्यादा क्षेत्रों को प्रभावित करेंगी। भारत में इसका सीधा असर मानसून की अनिश्चितता, खेती की उत्पादकता घटने, जल संकट और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के रूप में दिखाई देगा। इसके अलावा इससे आर्कटिक क्षेत्र में तेजी से पिघलती बर्फ भी जेट स्ट्रीम्स और महासागरीय प्रवाहों को असंतुलित कर सकती है, जिससे पूरी पृथ्वी के मौसमी चक्रों में गड़बड़ी आ सकती है। भविष्य में ‘Compound Climate Events’ यानी एक साथ कई आपदाएं जैसे गर्मी + सूखा + वायु प्रदूषण देखने को मिल सकती हैं। यह न सिर्फ पर्यावरण को बिगाड़ेगा, बल्कि आर्थिक और सामाजिक संकटों को भी जन्म देगा। इसलिए वर्तमान गर्मी को केवल एक मौसमी घटना नहीं, बल्कि जलवायु चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।
कब-कब हुआ La Niña का Triple Dip
क्रमांक | अवधि | विवरण |
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1 | 1954–1957 | 1950 के दशक का पहला ट्रिपल डिप, जिसमें लगातार तीन साल ला नीना जैसे हालात रहे। इसका असर पूरी दुनिया में सूखे और बाढ़ के रूप में दिखा। |
2 | 1973–1976 | इस अवधि में भी तीन साल तक ला नीना सक्रिय रहा। भारत समेत कई देशों में मानसून प्रभावित हुए और अमेरिका में गंभीर सूखा पड़ा। |
3 | 1998–2001 | 1997-98 के सुपर एल नीनो के बाद 1998 में ला नीना शुरू हुआ और 2001 तक कमजोर-मध्यम स्तर पर जारी रहा। इसने वैश्विक मौसम पर बड़ा असर डाला। |
4 | 2020–2023 | हाल का ट्रिपल डिप, जिसने दुनिया भर में हीटवेव्स, बाढ़, सूखा और जंगलों में आग जैसी चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ा दिया। 2023 में इसका अंत हुआ। |
समझिए गर्मी की यह चेतावनी
2025 में पड़ रही यह गर्मी महज मौसम का बदलाव नहीं, बल्कि पृथ्वी के बदलते संतुलन का संकेत है। ऐसे में हमारे लिए ला नीना, ENSO चक्र और वैश्विक जलवायु परिवर्तन की इस जटिल जाल को समझना और उससे निपटने के लिए ग्लोबल स्तर पर प्रभावी नीतियां बनाना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। प्रचंड गर्मी के रूप में मिल रही इस चेतावनी के बाद भी अगर हम नहीं चेते, तो अगली गर्मी और भी विकराल रूप ले कर आ सकती है।