पानी में पनपा माफिया राज 
जल संरक्षण

पानी में पनपा माफिया राज| Water Mafia in Hindi

जाने कैसे जल में भी माफिया सक्रिय हो गए हैं | Know how mafia has become active in water

Author : बची सिंह रावत

एक दृष्टि यह है कि हम और हजारों हमारे जैसे लोग पानी बचाने में  लगे रहेंगे और उसका इस्तेमाल कोई और ही करने लगेगा। एक लाइन का कानून बनेगा और लोग अपने ही जल श्रोत से वंचित कर दिए जाएंगे।ऐसे पानी बचाने का क्या लाभ होगा उससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि लोग पानी तो बचाएं लेकिन जल प्रदाय यानि समस्त जल संरचनाओं पर अपने अधिकारों को समझ ही न सकें तो जल पर उनका काम करना कोई उपयोगी नहीं होगा।

हजारों लोग चुपचाप पानी और प्राकृतिक जल श्रोतों के संरक्षण के काम में जुटे हैं।लेकिन वे व्यवस्था के अनैतिक कानूनों के विरोध से दूर रहते हैं। व्यवस्था बहुत बड़ी चीज है।उसका विरोध जैसे पहाड़ से सिर टकराना है।लेकिन फिर माधो सिंह भंडारी, दशरथ मांझी ने चट्टान के अहंकार को तोड़ा तो दूसरा विचार है कि वैश्विक परिदृश्य में देखा जाए तो पूरी दुनिया में जल माफिया सक्रिय है।मीठे पानी का कारोबार आज तेल से भी अधिक कमाई देने वाला बन चुका है।ऐसे में तमाम विश्व माफिया स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर पानी पर नियंत्रण की साजिश रच रहा है।जिसने दुनिया के अनेक देशों में पानी को भारी कमाई का जरिया बना डाला है और भारत में भी वह तेजी से कारोबार फैला रहा है।गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र सतलज, काबेरी समेत तमाम नदियों पर उसका वर्चस्व बढ़ चुका है।वह नदियों को साफ नहीं रहने देता, वह लोगों में जागरूकता नहीं आने देता, वही है जो चाहता है हरेक नदी को बांध दिया जाए और हरेक जल धारा में नदी खनन हो, यह साजिश तब और गहरी हो जाती है जब लोगों को साफ पानी से वंचित कर उनको दूध से महंगा पानी खरीदने को मजबूर किया जाने लगता है।  

हमारे साथी उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर अपने जल ढांचों, नदियों, जल श्रोतों को बचाने, समृद्ध बनाने के काम में लगातार जुटे हैं।पानी के साथ ही जुड़े हैं जंगल, खेती और वे व्यवहार जिनसे पानी बचता है या दूषित होता है, अथवा भूजल को समृद्ध बनाता है।हमारे तराई में जब धान की तीन से चार फसलें, गन्ना की फसल ज्यादा लेनी शुरू की तो भूजल का खिंचाव बढ़ गया।जिसका असर पहाड़ के जल श्रोतों पर भी पड़ने लगा।ज्यादा खिंचाव बढ़ा तो पर्वतीय प्राकृतिक जल श्रोतों से जल का रिसाव तराई की जल धाराओं की ओर बढ़ गया और काफी श्रोत, जल वाहिकाएं प्रभावित हुई। आज भी हो रही हैं।एक कठिन सवाल यह है कि जिस जल वंचित समुदाय के हितों की रक्षा में प्राकृतिक जल श्रोतों को जिंदा रखने के काम हो रहे हैं क्या वे इसके महत्व को समझते हैं और यह भी कि वे खुद कितने सहयोगी बनते हैं।

भारत और वैश्विक अनुभव से देखें तो हवा, पानी को पूरी तरह शुद्ध रखना और उसे मुफ्त रखना चाहिए ताकि हरेक जीवित प्राणी उसका उपयोग करे।लेकिन बड़े बड़े बांधों के खिलाफ हुए संघर्ष के अनुभव, नदियों को बचाने के अभियानों के अनुभव और प्राकृतिक जल धाराओं के संरक्षण , बरसाती पानी के संग्रहण के अनुभवों ने बताया है कि आपकी कोशिश नाकाफी, बेमानी और जल माफिया को नापसंद है।आप उसकी नीतियों के सहयोगी हैं तो आपको संसाधन और पुरुस्कारों का तोहफा मिलेगा लेकिन यदि आपने व्यापक रूप से इन साजिशों को समझने की कोशिश की तो आपको किनारे फेंक दिया जायेगा।

विश्व में जल माफिया इतना अवसरवादी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जब लगातार दुनिया में जल संकट बढ़ रहा है, वह अभी भी इसमें कमाने के अवसरों पर काम कर रहा है और हमारी व्यवस्था के बड़े छोटे प्यादे उसकी शह पर ऐसी जल नीतियों पर काम कर रहे हैं जो कुल जमा लोगों के निशुल्क जल प्राप्त करने के अधिकारों को कुचलने का ही काम करेंगी।

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