गाजरघास, जिसे कांग्रेस घास, चटक चांदनी, कड़वी घास वगैरह नामों से भी जाना जाता है, न केवल किसानों के लिए, बल्कि इन्सानों, पशुओं, आबोहवा व जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। इसको वैज्ञानिक भाषा में पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस कहते हैं।
ज्यादा फसल लेने के चक्कर में कैमिकल खादों का ज्यादा इस्तेमाल करने से इंसान की सेहत व आबोहवा पर होने वाला असर किसी से छिपा नहीं है। उससे मिट्टी की उर्वरा कूवत में भी लगातार गिरावट आती जा रही है। कैमिकल खादों का आबोहवा व इंसान पर होने वाला असर देखते हुए जैविक खादों का महत्व बढ़ रहा है। ऐसे में गाजर घास से जैविक खाद बना कर हम आबोहवा को महफूज करते हुए इसे आमदनी का जरिया भी बना सकते हैं, लेकिन किसान ऐसा करने से डरते हैं।
सर्वे में पाया गया है कि किसान गाजर घास से कम्पोस्ट खाद बनाने में इसलिए डरते हैं कि अगर गाजर घास कम्पोस्ट का इस्तेमाल करेंगे तो खेतों में और ज्यादा गाजरघास हो जाएगी।
दरअसल हुआ यह कि कुछ किसानों से जब गाजरघास से अवैज्ञानिक तरीके से कम्पोस्ट खाद बनाकर इस्तेमाल की गई, तो उनके खेतों में ज्यादा गाजर घास हो गई। इसमें हुआ यह कि इन किसानों ने फूलों सहित गाजरघास से नाडेप तकनीक द्वारा कम्पोस्ट खाद बनाकर इस्तेमाल की। इससे उनके खेतों में ज्यादा गाजर घास हो गई। इसके अलावा उन गाँवों में, जहाँ गोबर से खाद खुले हुए टांकों गड्ढों में बनाते हैं, जब फूलों सहित गाजर घास को खुले गड्ढों में गोबर के साथ डाला गया तो भी इस खाद का इस्तेमाल करने पर खेतों में ज्यादा गाजर घास हो गई।
कृषि वैज्ञानिकों ने अपने तजरबों में पाया कि नाडेप तकनीक द्वारा खुले गड्ढों में फूलों सहित गाजर घास से खाद बनाने पर इसके छोटे बीज खत्म नहीं हो पाते हैं। एक तजरबे में नाडेप तकनीक द्वारा गाजरघास से बनी हुई केवल 300 ग्राम खाद में ही 350-500 गाजर घास के पौधे अंकुरित होते हुए पाए गए,यही वजह है कि किसान गाजर घास से कम्पोस्ट बनाने में डरते हैं। पर, अगर वैज्ञानिक तकनीक से गाजर घास से कम्पोस्ट बनाई जाए तो यह एक महफूज कम्पोस्ट खाद है।
वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा यही सलाह दी जाती है कि कम्पोस्ट बनाने के लिए गाजर घास को फूल आने से पहले उखाड़ लेना चाहिए। बिना फूल वाली गाजर घास का कम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल बिना किसी डर के नाडेप तकनीक या खुला गड्ढा तकनीक द्वारा किया जा सकता है।
गाजरघास के सर्दी-गर्मी के प्रति असंवेदनशील बीजों में सुषुप्तावस्था न होने की वजह से एक ही समय में फूल वाले और बिना फूल के गाजर घास के पौधे खेतों में पैदा होते हैं। निराई-गुडाई करते समय फूल वाले पौधों को उखाड़ना भी जरूरी हो जाता है। फिर भी किसानों को गाजर घास को कम्पोस्ट बनाने में इस्तेमाल करने के लिए यह कोशिश करनी चाहिए कि वे उसे ऐसे समय उखाड़े, जब फूलों की मात्रा कम हो। जितनी छोटी अवस्था में गाजर घास को उखाड़ेंगे, उतनी ही ज्यादा अच्छी कम्पोस्ट खाद बनेगी और उतनी ही फसल की उत्पादकता बढ़ेगी।
अपने खेत में थोड़ी ऊंचाई वाली जगह पर, जहाँ पानी जमा न हो, 3x6x10 फुट (गहराई x चौड़ाई xलम्बाई ) आकार का गड्ढा बना लें। अपनी सहूलियत और खेत में गाजर घास की मात्रा के मुताबिक लम्बाई-चौड़ाई कम कर सकते हैं, लेकिन गहराई 3 फुट से कम नहीं होने पाएंगे।
5-6 महीने बाद भी गड्ढे से कम्पोस्ट निकालने पर आपको महसूस हो सकता है कि बड़े व मोटे तनों वाली गाजर घास अच्छी तरह से गली नहीं है, पर वास्तव में वह गल चुकी होती है। इस कम्पोस्ट को गड्ढे से बाहर निकालकर छायादार जगह में फैलाकर सुखा लें।
हवा लगते ही नम व गीली कम्पोस्ट जल्दी सूखने लगती है। थोड़ा सूख जाने पर इसका ढेर बना लें। अगर अभी भी गाजर घास के रेशे वाले तने मिलते हैं, तो इसके ढेर को लाठी या मुगदर से पीट दें। जिन किसानों के पास बैल या ट्रैक्टर हैं, वे उन्हें इसके ढेर पर थोड़ी देर चला दें। ऐसा करने पर घास के मोटे रेशे व तने टूटकर बारीक हो जाएंगे, जिससे और ज्यादा कम्पोस्ट हासिल होगी।
इस कम्पोस्ट को 2-2 सेंटीमीटर छेद वाली जाली से छान लेना चाहिए, जाली के ऊपर बचे ठूंठों के कचरे को अलग कर देना चाहिए, खुद के इस्तेमाल के लिए बनाए कम्पोस्ट को बिना छाने भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह हासिल हुई कम्पोस्ट को छाया में सुखा कर प्लास्टिक, जूट के बड़े या छोटे थैलों में भरकर पैकिंग कर दें।
कृषि वैज्ञानिकों ने अपने तजुर्बों में यह पाया है कि गाजरघास से बनी कम्पोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा गोबर खाद से दोगुनी और केंचुआ खाद के बराबर होती है। इसलिए गाजर घास से कम्पोस्ट बनाना उनका एक अच्छा विकल्प है।