लेख

गंगोत्री से गंगा सागर तक

आईबीएन-7

22 अप्रैल 2012


संत, वैज्ञानिक, समाजसेवी, पर्यावरणविद, चिल्ला रहे हैं लेकिन कोई सुनता ही नहीं। महाभारत के रचयिता वेद व्यास जैसी हालत हो गई है जो धर्म पालन के संदर्भ में यह कह रहे थे कि मैं अपनी बाहें उठा-उठाकर चिल्लाता हूं लेकिन मेरी कोई सुनता ही नहीं।भला कोई सुनेगा भी क्यों? देश को विकास की राह पर आगे दौड़ना है। भले ही इस दौड़ के लिए कितनी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यह दौड़ अंधी है। पता नहीं इस दौड़ का अंत कब होगा। लेकिन एक बात तय है कि इस दौड़ के अंत से पहले ही गंगा विलुप्त हो जाएगी। जिस महान संस्कृति को उसने जीवन दिया उसका सबसे विकसित रूप देखने तक गंगा का जीवन नहीं बचेगा। हम शायद इस मुगालते में हैं कि गंगा में पानी का अक्षय भंडार हैं तभी तो एक परियोजना पूरी नहीं होती कि पांच नई परियोजनाओं का लेखा-जोखा तैयार हो जाता है। सस्ती बिजली के लिए गंगा को बांधने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। गंगोत्री से निकलने के बाद गंगा के रास्ते में ढेरों पनबिजली परियोजनाएं चलाए जाने की तैयारी है। उन्मुक्त बहने वाली गंगा को बिजली के लिए छोटी-छोटी सुरंगों से होकर बहने को मजबूर किया जा रहा है।

गंगोत्री से गंगा सागर तक, पार्ट -2

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13 मई 2012

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