एकाएक लोगों को अपनी ओर खींच लेने वाली विश्व प्रसिद्ध नौ नदियों एवं निन्यानवे नालों का जल अपने आँचल में समेटे जयसमंद झील अपनी बर्बादी पर आँसू बहा रही है। विश्व दूसरी बड़ी कृत्रिम झील पर जहाँ सरकार और अधिकारी पर्यटन की बहार लाने के जतन करते रहे हैं, लेकिन अधूरे मन से। यहाँ न तो कोई योजना और न ही बड़ा कार्य ठोस रूप से चालू हो सका है।
लगभग पौने दो वर्ष पूर्व सरकार आपके द्वार अभियान में उदयपुर और आस-पास के इलाकों की झीलों में वाटर स्पोर्ट्स टूरिज्म शुरू करने की घोषणा की कागजी नावें भी हकीकत की लहरों पर नहीं तैर सकी है। सरकारी अनदेखी का नतीजा यह रहा कि झील की ऐतिहासिक पाल, आस-पास के पार्क आदि का विकास और संरक्षण नहीं हो सका। जयसमंद झील की पाल पर बनी सीढ़ियाँ गन्दगी से अटी हुई हैं, तो वाहन पार्किंग की व्यवस्था नहीं होने हैं।
ऐसे में पाल के आस-पास वाहनों को बेतरतीब तरीके से खड़ा कर दिया जाता है। वहाँ आने वाले सैलानियों को भोजन, नाश्ते और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं मिलती हैं, जबकि पूर्व के जिला कलक्टरों ने वहाँ वन क्षेत्र होने के कारण निर्माण पर प्रतिबन्ध होने के चलते वुडन रेस्तरां खोलने की योजना बनाई थी। यह वुडन रेस्तरां भी नहीं खुल सका। इसके अलावा सैलानियों को रात ठहरने की सुविधाएँ देने, साफ पेयजल उपलब्ध कराने की भी बड़ी-बड़ी बातें हुई, जो अधूरी है।
जयसमंद में पायरी, भटवाड़ा और बाबा मगरा टापुओं का खास आकर्षण है। बाबा मगरा में जहाँ खेती भी करते हैं, तो दो अन्य टापुओं पर मछुआरे ग्रामीणों के परिवार भी रहते भी हैं। जयसमंद के आस-पास के मैथुड़ी, गामड़ी, नामला, पानी कोटडा, गुरिया, भील बस्ती आदि इलाकों में भी मछुआरे ग्रामीणों के परिवार रहते हैं।
जयसमंद झील के विकास और उसे प्रमुख पर्यटन स्थल की श्रेणी में खड़ा करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। जल्द ही इन मामलों की प्रगति रिपोर्ट मँगवाकर काम शुरू करवाए जाएँगे... रोहित गुप्ता, जिला कलक्टर, उदयपुर
पूर्व में यह योजना भी बनी थी कि जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग के मद की राशि से झील के टापुओं पर बसने वाले आदिवासी मछुआरों की सहकारी समितियों को साथ लेकर उनके वहाँ रह रहे परिवारों के जनजीवन को दिखाने, झील में नौकायन करवाने, पर्यटन को झील में मछली पकड़कर दुबारा छोड़ देने वाले ऐंगलिंग गेम शुरू करवाए जाएँ। इसके लिये पर्यटन विभाग ने टापुओं पर रहने वाले परिवारों, मत्स्याखेट करने वाली आदिवासी सहकारी समितियों से भी बात की गई, लेकिन समितियों ने दिलचस्पी नहीं ली और यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका।