मेवाजी मनावां हम तो आज
मन का तो मंगल जी गावियां
म्हारा राज.... ।।टेक।।
आबां पे चमके है चम-चम बीज
काली ने पिली जी बादलियां
म्हारा राज....... ।।1।।
बरसा हुई है घनघोर
नदी ने नाला जी भरिया
म्हारा राज........।।2।।
बागा में नाचे है ढाढर मोर
मोरनी की मन में जी भावियां
म्हारा राज........।।3।।
मेवाजी मनावां हम तो आज
मन का तो मंगल जी गावियां
म्हारा राज........ ।।4।।
हम मेघराजा को मंगल गीत गाकर मनायेंगे। बिजली चमक रही है। काली-पीली बादलियाँ हो रही हैं। घनघोर बारिश हो रही है, नदी नाले सब भर गये हैं। यह सब देखकर मोर अपने पंख फैलाकर नाच रहा है, मोरनी यह देखकर अपनी सुध-बुध खो रही है, भावविभोर हो रही है।
ऐजी में तो हरक-हरक मंगल गावां जी
राजा इन्द्र ने मनावां......मैं तो ।।टेक।।
पेलों बदोवा गजानन्द जी ने देवां
ऐसजी में तो मेवाजी ने बेग बुलावां जी
राजा इन्द्र ने बदावां.....मैं तो ।।1।।
दूसरे बदोवा काली बादली ने देवो
ऐजी जिनने रिमझिम पाणी बरसाया जी
राजा इंद्र ने बदावां......मैं तो ।।2।।
तीसरो बदोवा म्हारा सातीड़ा ने देवो
ऐजी जिनने शिपरा मैयां चुनड़ ओड़ाई जी
राजा इन्द्र ने बदांवा.....मैं तो ।।3।।
चौथो बदोवा बई बेनना के देवो
ऐसी जिनने मंगल गावी मेघ बुलाया जी
राजा इन्द्र ने बादांवा......मैं तो ।।4।।
महिलायें राजा इन्द्र को मंगल गीत गा-गाकर बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने इतना पानी बरसाया। गजानन्द जी और काली बादलियों को बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने इतना पानी लाकर बरसाया। सभी सखी-सहेलियों को भी बधाइयाँ दे रही हैं, जिन्होंने शिप्रा माँ को चुनरी चढ़ाई है।
काली पीली बादली जी, म्हारो लेर्यो भींज्यो जाय
भायेला म्हारो लेर्यो भीज्यो जाय
चातुर थारो भायेलो जी, पचरंग्यो निचोयो जाय........
भायेला, पंचरग्यो निचोयो जाय
टीकी दई मेला चड़ी जी कई, बिच काजल की रेख
सायब को सारो नई जी कई लिख्यो बिदाता लेख
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय, भायेला म्हारो लेर्यो.....
चतुर थारा भायेला, पंचरग्यो निचोयो राज
वी गया रामचंद वी गया, वी गया कोस पचास
सिर बदनामी दई गया, घड़ीयेनी बैठा पास
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय
भंवर थारा भायेला जी पंचरंग्यो निचोयो जाय......
आवण जावण करी गया, करी गया कोल करार
गीणता-गीणता धंसी गई, आंगलियारी रेख
भायेला म्हारो लेर्यो भिंज्यो जाय
भंवर थारा भायला पंचरग्यो निचोयो जाय
काली-काली बदली चढ़ी है। पानी की फुहार आ गई है मेरा लुगड़ा गीला हो गया है। मेरा पिया चतुर है उसका साफा गीला हुआ तो उसे निचोड़ रहा है। माथे पर बिन्दी, आँखों में काजल लगाया, महल में गई लेकिन पिया नहीं मिले, वह तो बहुत दूर चले गये हैं। मेरे सिर पत्नी होने का नाम दे गये हैं, मेरे पास एक पल भी नहीं बैठे। मुझसे वादा कर गये थे कि जल्दी आऊँगा लेकिन अँगुली की रेखाएं मेरी गिनती लगाते-लगाते घिस गई हैं, वह अभी तक नहीं आये हैं।
मक्का की मेड़ी पे ऊबी गाम की गोरी
तो हाता में पत्थर ने गोफण की दोरी
मक्का की.......... ।।टेक।।
हांको करी ने वा होर्या उड़ावे
डागले चड़ीने गीत मालवा का गावे
तो ने पो करे छे किरसाणा की छोरी
मक्का की........... ।।1।।
आवे चिरकला ने चोंच लगावे
टुई-टुई करता चुआ घणा आवे
तो चुपके से स्याल आवे हे चोरी-चोरी
मक्का की........... ।।1।।
काली घटा उठी बिजली जो कड़के
रात इंदारी में जीवड़ो जो धड़के
तो सूनी-सूनी रात कटे हे घणी दोरी
मक्का की............. ।।3।।
रिमझिम-रिमझिम मेवलो बरस
पियु बिन जिवड़ो गोरी को तरसे
तो चांद बिना जेसे तरसे चकोरी
मक्का की.............. ।।4।।
लिख-लिख पाती पियुजी पे भेजा
आजा रे भंवर म्हारे दरसन देजा
तो पियु तमसे लागी लगन मन की डोरी
मक्का की......................... ।।5।।
मक्का के फसल की रखवाली करने के लिए खेत में मचान बनाकर सुन्दर सी लड़की पत्थर और गोफन लेकर पहरा दे रही है और चिल्लाकर भी पंछियों को उड़ा रही है। गीत भी गाती जा रही है। उसकी आवाज जैसे ही बन्द होती है, चुपके से चूहे और सियार खेत में घुस आते हैं। अँधेरी रात में बिजली कड़कती है और गोरी का दिल धक-धक करने लग जाता है। ऐसे में रात भी बहुत देरी से निकलती है। धीरे-धीरे पानी बरसने लगा और पति के बगैर उसका दिल और जोरों से धड़कने लगा जैसे चाँद के बगैर चकोर तरसता है। पति को कितनी ही चिट्ठियाँ लिखीं कि मुझसे आकर मिलो, तुमसे प्रीत की डोर जो बँधी है।
हो पियाजी-मोती बेराणा काला खेत में
निबजेगा एक से हजार राज
धन-धन धरती से म्हारो मालवो।।टेक।।
हो पियाजी कंचन सी माटी मन भावणी
हो पियाजी मेवलो बरसे ने होवे बावणी
देखो हरियाणी को सिनगार राज
धन-धन धरती.......... ।।1।।
हो पियाजी मेनत को मोल हाते हात है।
हो पियाजी नवा-नवा बीज नवो खात है
संकर मक्कर ने ओर ज्वार राज
धन-धन धरती............... ।।2।।
हो पियाजी मेनत की बेला बरदावणी
हो पियाजी लूटे किरसाण जेद लावणी
अन धन से भरे भण्डार राज
धन-धन धरती............. ।।3।।
हो पियाजी हरियाली छाई माले माल हे
हो पियाजी पंछीड़ा बोले डाले-डाल हे
खेत ने खला की मनवार राज
धन-धन धरती......... ।।4।।
हो पियाजी नवा-नवा काम की सोचणा
हो पियाजी मेनत करांगा अपण दोई जणा
सांज ने सवेरे लगातार राज
धन-धन धरती......... ।।5।।
पिया! हमारे काले खेतों को देखकर ऐसा लगता है जैसे खेत में मोती बिखरे हैं। मैं धरती माँ को धन्यवाद देती हूँ। खेत की मिट्टी कितनी लुभावनी है। जैसे ही पानी बरसता है। नर्म पड़ जाती है और किसान बोवनी कर देता है। हमारी मेहनत का फल हाथों-हाथ धरती माँ देती हैं। नये-नये बीजों को बोना और शंकर मक्का और जुआर से कितनी हरियाली का श्रृंगार हो गया है। मेहनत एक वरदान है जिससे किसान खुशहाल और मालामाल हो जाता है। ऐसी हरियाली को देखकर पंछी भी खुश होकर बोल रहे हैं। पिया! खेतों को कैसे सँवारना है, नये-नये कामों के बारे में आपने क्या सोचा? हम दोनों मिलकर सुबह-शाम लगातार मेहनत करेंगे।
हरियाली आंगण छाई धरती माता को सिनगार
धरती माता को सिनगार, आता जाता की मनवार
हो हरियाली.......... ।।टेक।।
अब तम लावो झाड़ का रोपा, हर घर नगर-नगर में चोंपा
जिनसे बरसा होय सवाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली.......... ।।1।।
हवा को चले रोज सन्नाटो, अब तम हरा झाड़ मत काटो
कोई दन होवेगा दुख दाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली.......... ।।2।।
हर नर सींचण हारा माली, जंगल-जंगल की रखवाली
करजो परबत हो या खाइ, धरती माता के सिनगार
हो हरियाली............ ।।3।।
मेनत करजो अब तम काठी, सोनो उगले मालव माटी
खेत में दूणी फसल उगाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली ।।4।।
अब तक यो बचन निभाजो, हर नर एक झाड़ लगाजो
जिनसे बरसा होय सवाई, धरती माता को सिनगार
हो हरियाली............... ।।5।।
हरियाली छायी है, ऐसा लगता है कि धरती माता ने अपना श्रृंगार किया है। इतनी वर्षा हुई है कि धरती माँ आने-जाने वालों का स्वागत कर रही है। पेड़ के छोटे-छोटे पौधे लाओ और घर आँगन में लगाओ, जिससे अच्छी बरसात होगी। हरे वृक्षों को नहीं काटना, उससे हम लोग दुःखी हो जायेंगे। हर व्यक्ति पेड़ों को पानी देगा और जंगलो की रखवाली करेगा। मेहनत करोगे तो धरती माँ सोना उगलेगी। फसल भी ज्यादा होगी। आप सब यह वचन जरूर निभाना।