इससे पहले भी निगमानंद 2007 में 7 दिन व 2008 में 68 दिन आमरण अनशन कर चुके थे इसके बावजूद सरकार ने उन्हें 68 दिनों तक अनशन करने दिया 40 प्रतिशत आबादी को सीधे प्रभावित करने वाली गंगा के प्राणों के लिए आवाज उठाने वाले संत की ऐसी उपेक्षा क्यों की गई? यहां तक कि रामदेव को देखने भाजपा से लेकर संत समाज तक के सभी शीर्ष नेता मौजूद थे लेकिन उसी अस्पताल में मौजूद निगमानंद तक किसी के कदम नहीं पहुंचे।
गंगा को जीवनदायिनी बताकर सुर्खियां बटोर लेना तो आसान है लेकिन गंगा में हो रहे अवैध खनन के लिए जिम्मेदार माफिया से टकराना उतना ही कठिन है। संत निगमानंद इस आंदोलन के जरिए हरिद्वार और उसके आसपास सक्रिय खनन माफिया से टकरा रहे थे। निगमानंद की मौत के बाद भाजपा नेत्री मेनका गांधी से लेकर केंद्रीय मंत्री हरीश रावत, राज्य कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य तक सभी मातृसदन पहुंचे लेकिन इससे पहले यह लोग कभी यहां नहीं पहुंचे थे।
मातृ सदन ने गंगा को खनन अतिक्रमण और प्रदूषण मुक्त करने की मांग को लेकर 1997 में आंदोलन की शुरुआत की थी। जिसके बाद इन चौदह सालों में गंगा के सवाल पर मातृसदन ने बारह बार आन्दोलन किए हैं। मातृ सदन की स्थापना के पहले हरिद्वार में खनन लॉबी बहुत मजबूत रही है। 1970 से यहां शुरू हुआ खनन का कारोबार दिन दुनी रात चौगुनी रफ्तार से फैलता रहा है। वर्तमान में हरिद्वार में लगे 40 से अधिक स्टोन क्रेशर इस बात का प्रमाण है। खनन की शुरूआत होने के समय सबसे पहले खनन माफियाओं ने चण्डीघाट को अपना निशाना बनाया था हरकी-पैड़ी के एक किलोमीटर के दायरे में स्थित हाइवे पर बने विशाल पुल के आधार को इस कदर खोदा गया कि 1980 में इस पुल के पाए हवा में आ गए। इसके बाद 1990 तक हरकी पैड़ी से लगे क्षेत्रों और सप्त सरोवर क्षेत्र में खूब अवैध खनन किया गया। वर्तमान में भी जगजीतपुर, कनखल ,विशनपुर, कुण्डि, चिड़ियापुर आदि गंगा तट पूरी तरह से खनन माफिया के कब्जे में है। मातृ सदन के आंदोलनों से अनेक बार इन माफियाओं पर नकेल कसी गई है लेकिन खनन माफिया को काबू कर पाना आसान नहीं रहा है। मातृ सदन के प्रयासों से ही वर्ष 1997 तक सक्रिय रहे 21 स्टोन क्रेशरों में से 17 को उच्च न्यायालय ने बंद करा दिया था लेकिन वर्तमान में ये सभी स्टोन क्रेशर दूसरी जगह शिफ्ट कर चलाए जा रहे हैं। इनमें से कुछ स्टोन क्रेशर अब भी कुंभ क्षेत्र में ही संचालित हो रहे हैं। जिनके खिलाफ मातृसदन की लड़ाई चल रही थी।
निगमानंद की लड़ाई सिर्फ क्रेशरों के खिलाफ नहीं थी बल्कि वह गंगा में डाली जा रही गंदगी के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे थे। गंगा में हर रोज 24 हजार ट्रीलियन मलीय अपशिष्ट के साथ ही 20 टन जीवांश और 37.5 टन ठोस अपशिष्ट अकेले हरिद्वार से बहाया जा रहा है। हरकी पैड़ी के निकट सुभाषघाट पर गिरने वाला एस1 नाला प्रतिदिन 2.4 मिलियन लीटर कचरा लाता है। हरिद्वार के दो बड़े नाले ललताराव और ज्वालापुर मिलकर 140 लाख लीटर से अधिक मलजल सीधे गंगा में छोड़ते हैं। हरिद्वार में गंगा में छोड़ी जा रही गंदगी को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संशोधित मानकों से छह गुना अधिक प्रदूषित माना गया है।
गंगा के लिए आंदोलनों का दिखावा मठों और मठाधीशों ने भी कम नहीं किया है। 2008 में अचानक आई गंगा की याद ने महीने भर के भीतर गंगा रक्षा मंच, गंगा सेवा समिति जैसे अनेक संगठन खड़े कर दिए थे। इन संगठनों के जरिए योग गुरू बाबा रामदेव से लेकर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद तक ने खूब वाहवाही लूटी लेकिन जब आन्दोलन को मुकाम की तरफ ले जाना था तब तक सब अपना तंबू समेट चुके थे। यह बात दीगर है कि सितंबर अक्टूबर 2008 में स्वरूपानंद के दो चेलों ने हरकी पैड़ी के सुभाषघाट पर अविरल गंगा के लिए 39 दिनों तक अनशन किया था।
26 मार्च 2010 को उत्तराखंड सरकार ने कुंभ मेला क्षेत्र में खनन पूरी तरह से बंद करने के आदेश पारित किए थे। लेकिन नैनीताल उच्च न्यायालय ने 27 दिसंबर 2010 को सरकार के इस आदेश पर स्टे दे दिया। मातृसदन ने इस स्टे को खारिज करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया कि फैसला देने वाले एक जज का नाम गाजियाबाद फंड घोटाले में आ चुका है अतः यह फैसला माफिया के साथ मिलीभगत के बाद दिया गया है। इस मामले की लड़ाई कोर्ट में जारी रखने के साथ ही 28 जनवरी 2011 से मातृ सदन के यजनानंद अनशन पर बैठे थे लेकिन उनकी तबीयत बिगड़ जाने के बाद 11 फरवरी से निगमानंद आमरण अनशन पर बैठ गए थे। 68 दिनों के अनशन के बाद पुलिस ने उन्हें उठाकर जिला अस्पताल में भर्ती कराया था जहां से दो मई को उन्हें कोमा की हालत में पहले देहरादून और फिर जौलीग्रांट अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। यहीं जौलीग्रांट अस्पताल में उनकी मृत्यु हुई। अब निगमानंद की मौत के बाद इन चार दिनों में सियासी दलों ने उनके नाम पर सियासत करते हुए एक दूसरे को उनकी मौत का जिम्मेदार ठहराया है लेकिन यह कहने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई कि हम निगमानंद की लड़ाई को उन्हीं की शक्ल में आगे जारी रखेंगे।
गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक ने 4600 अरब रुपए देने की घोषणा की है। इसके अलावा पहले से ही केन्द्र सरकार 2010 से गंगा क्लीन प्लान नाम से 2000 करोड़ की योजना चला रही है। 1985 के बाद 20 साल के दौरान 900 करोड़ से अधिक गंगा एक्शन प्लान के नाम पर खर्च किए गये। गंगा के लिए किए जा रहे कार्यों की देखरेख के लिए केंद्र सरकार ने गंगा रिवर बेसिन प्राधिकरण का गठन किया है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड सरकार ने पहले स्पर्श गंगा अभियान शुरू किया और अब स्पर्श गंगा अभिकरण का गठन कर दिया है। कहा जा रहा है कि राज्य सरकार इस प्राधिकरण के जरिए गंगा के लिए चलाई जा रही योजनाओं से केन्द्र से और अधिक धन चाहती है।
• कुंभ क्षेत्र को खनन मुक्त किया जाय।
• खनन से नष्ट हो रहे सुंदर द्वीपों का संरक्षण किया जाए।
• गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण को कम किया जाए।
• कुंभ क्षेत्र से सारे क्रशरों को हटाया जाए।