जीवनदायिनी गंगा को साफ करने के लिए अब तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। सन्यासियों, वैज्ञानिकों के साथ-साथ आम जनता गंगा को स्वच्छ करने की कोशिश में लगी हुई है, लेकिन गंगा आज भी मैली की मैली है। गंगा का पानी पीने लायक छोड़िए, नहाने और खेती करने लायक भी नहीं बचा है।गंगा को बचाने की कोशिशें नाकाफी रही हैं। पहाड़ों से निकल कर गंगा मैदान की तरफ बहती है। इसका पहला पड़ाव होता है हरिद्वार। हरिद्वार धार्मिक नगरी तो है ही लेकिन गंगा को गंदा करने की पहली बदनामी भी ये शहर उठाता आया है। कहते हैं गंगा पाप धोती है लेकिन हरिद्वार में गंगा शहर की गंदगी को साफ करती ज्यादा नजर आती है। एबीपी न्यूज के विशेषज्ञों द्वारा किए गए रिसर्च में हरिद्वार के हर की पैड़ी के 100 एम.एल. गंगाजल में पाए गए एमपीएन कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 54,000 तक तथा विश्वकर्मा घाट के जल में 35,000 तक बैक्टीरिया पाए गए हैं। जबकि इनकी मौजदूगी सिर्फ दस तक स्वीकृत है। फीकल कोलीफॉर्म टेस्ट में भी इन दोनों जगहों पर क्रमशः गंगाजल में 1,400 तथा 2,800 बैक्टीरिया पाये गए हैं। इनके अलावा गंगा में ई-कोलाई बैक्टीरिया, आयरन तथा रेत भी जरूरत से ज्यादा पाये गए हैं।