विद्यालय के शौचालय के समक्ष खड़ी स्कूली छात्राएँ 
स्वास्थ्य और स्वच्छता

पास में जंगल है, वरना शौच कहाँ जाते

Author : प्रेम पंचोली

खुले में शौच जाने को मजबूर छात्र-छात्राएँ

विद्यालय के शौचालय के समक्ष खड़ी स्कूली छात्राएँ

उल्लेखनीय हो कि एक तरफ स्वच्छ भारत अभियान की दुहाई दी जा रही है और दूसरी तरफ 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच के आदी हो गए हैं। उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय से महज 40 किमी के फासले पर राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल है। यह विद्यालय दूरस्थ की श्रेणी में भी नहीं आता है। यह विद्यालय तो विश्व प्रसिद्ध यमनोत्री, गंगोत्री धार्मिक स्थल को जाने वाली मुख्य मार्ग पर स्थित है।

इस मार्ग से ही कइयों दफा सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारी अथवा अधिकारियों का आना-जाना लगा रहता है। यही नहीं उत्तरकाशी जनपद के तीनों विधायक भी इसी मार्ग से गुजरते हैं। परन्तु किसी को भी इस विद्यालय की महत्त्वपूर्ण समस्या पर नजर नहीं पड़ी। गेंवला ब्रह्मखाल मौजूदा वक्त एक व्यवस्थित बाजारनुमा कस्बा विकसित होने जा रहा है। इसी केन्द्र बिन्दु से यमनोत्री विधानसभा की इबारत लिखी जाती है। इस बाजारनुमा कस्बे में सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े नुमाइन्दे भी स्थायी रूप से निवास करते हैं। यहाँ तक कि इस विद्यालय में मौजूदा प्रधानाचार्य भी स्थानीय ही है।

बदहाल स्थिति में स्कूल का शौचालय

ऐसा भी नहीं है कि विद्यालय के भवन में कभी शौचालय ही ना बने हों। विद्यालय में निर्मित शौचालयों से जुड़ी कहानी बड़ी ही हास्यास्पद है। छात्रों का कहना है कि इस विद्यालय में भवन निर्माण के दौरान से ही शौचालय बने हुए थे, परन्तु वे सिर्फ एक दिखावा के लिये ही बनाए गए थे। उनका कभी भी शौचालय के रूप में उपयोग नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि वे बड़े सौभाग्यशाली हैं कि उनके विद्यालय परिसर के बाहर यानि ऊपरी छोर पर जंगल है, इस कारण उन्हें शौच कहाँ जाएँ इसकी चिन्ता नहीं रहती है।

छात्राओं से जानने पर मालूम हुआ कि विद्यालय के पास के जंगल में जाने के दो रास्ते हैं, एक रास्ते में बालक जाते हैं और दूसरे रास्ते में बालिकाएँ जाती हैं। इसलिये उन्हें बहुत ज्यादा समस्या शौच की नहीं होती है। उन्होंने साथ-साथ यह भी कहा कि यह सुविधा सिर्फ पेशाब करने तक सीमित है। यदि शौच जाना होता है तो उन बालिकाओं को सबसे ज्यादा समस्या झेलनी पड़ती है।

जंगल में यदि शौच करने जाएँ भी तो उनसे एक तरफ उनकी एक विषय का पीरियड छूट ही जाता है तो दूसरी तरफ जंगल में पशु और अन्य खतरे भी बने रहते हैं। कुछ छात्रों का कहना है कि विद्यालय के अध्यापक व अन्य कर्मचारी शौच के लिये ब्रह्मखाल बाजार में बने होटलों का प्रयोग करते हैं, इसलिये उन्हें विद्यालय में शौचालय की कोई समस्या नजर नहीं आती है। रही प्रधानाचार्य की बात, तो वे स्थानीय हैं। वे जब चाहे तब अपने घर जाकर शौचालय सुख पा सकते हैं। छात्राओं का यह भी कहना था कि कई मर्तबा वे अपनी शौच को यूँ ही रोक कर रखते हैं, जब तक वे घर नहीं पहुँचती। लेकिन उसके बाद उनकी तबियत ही खराब हो जाती है। विद्यालय में आने वाले प्रभावशाली आगन्तुकों से उन्होंने कई बार विद्यालय में शौचालय की समस्या बताई, पर उनकी इस मूल समस्या पर किसी ने भी गौर नहीं किया।

ऐसा भी नहीं है कि विद्यालय परिसर में जगह की कमी हो कि शौचालय कहाँ बनाया जाये। या विद्यालय भवन में कभी शौचालय ही नहीं बनाए गए हों? विद्यालय भवन में चार शौचालय पूर्व से ही मुख्य भवन के साथ निर्मित हैं। 1982 में बनाई गई इस विद्यालय की इमारत में शौचालय बनाए गए थे। किन्तु किसी ने भी यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि जो शौचालय विद्यालय भवन के साथ बनाए गए हैं वे उपयोग किये जा सकते हैं कि नहीं? पता चला कि भवन के साथ बनाए गए शौचालय मात्र शो-पीस थे। क्योंकि उनके सोकपिट का निर्माण ही नहीं किया गया था। यही वजह रही कि वे शौचालय ताले में ही बन्द कर दिये गए हैं।

राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल के प्रधानाचार्य सुमेर सिंह भण्डारी का कहना है कि पूर्व के शौचालय इसलिये उपयोग में नहीं आये कि जब तक उनका उपयोग करने लगे तो वे एकदम चोक हो गए, इसलिये उन्हें ताला लगाकर बन्द किया गया है। उसके बाद भवन के साथ निर्मित शौचालयों को उपयोग करने की किसी ने सोचा तक नहीं है। उन्होंने जब इस विद्यालय में पदभार ग्रहण किया तो यह सभी समस्याएँ उनके सामने चार्ज लेते वक्त आई है। उन्होंने अपने स्तर पर शौचालय खुलवाने की कोशिश की तो पता चला कि शौचालयों का सोकपिट तो है परन्तु उन तक पानी नहीं पहुँच रहा है। इसलिये शौच के वक्त जब वे चोक हो रहे हैं तो उनका उपयोग करना ही गलत है। उन्होंने बताया कि छात्रों की अधिकता को देखते हुए साल 2014 में रमसा के तहत विद्यालय परिसर में नौ अतिरिक्त कक्षों का निर्माण हुआ।

जंगल में यदि शौच करने जाएँ भी तो उनसे एक तरफ उनकी एक विषय का पीरियड छूट ही जाता है तो दूसरी तरफ जंगल में पशु और अन्य खतरे भी बने रहते हैं। कुछ छात्रों का कहना है कि विद्यालय के अध्यापक व अन्य कर्मचारी शौच के लिये ब्रह्मखाल बाजार में बने होटलों का प्रयोग करते हैं, इसलिये उन्हें विद्यालय में शौचलाय की कोई समस्या नजर नहीं आती है। रही प्रधानाचार्य की बात, तो वे स्थानीय हैं। वे जब चाहें तब अपने घर जाकर शौचालय सुख पा सकते हैं।

इस दौरान पूर्व के जो शौचालय बने थे उनके सोकपिट भी इन कक्षों के निर्माण में दब गए हैं। कहा कि विद्यालय में नए शौचालय बनाने की नितान्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यहाँ छात्र व छात्राओं की संख्या कमोबेश समान है। विद्यालय परिसर से ब्रह्मखाल बाजार एकदम सटा हुआ है, इस कारण छात्र-छात्राओं सहित विद्यालय स्टाफ को शौच की बड़ी समस्या हो रही है।

उत्तरकाशी शौचालय युक्त की कलई खोलता विद्यालय

कोई खुले में शौच ना जाये, घर में शौचालय अवश्य हों, उत्तरकाशी शौचालय युक्त हो गया है जैसे नारों की दुहाई देने वाली स्वजल परियोजना भी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती। उनका कहना है कि वे तो सिर्फ प्रोत्साहन करते हैं। स्वजल परियोजना उत्तरकाशी के प्रबन्धक राकेश जखमोला ने कहा कि

वे अब स्कूलों, काॅलेजों में शौचालय नहीं बनवा रहे हैं। अक्टूबर 2014 से पूर्व स्वजल परियोजना स्कूलों, काॅलेजों में शौचालय बनाने के लिये सम्बन्धित विभाग को बजट स्थानान्तरण करती थी, जो अब नहीं कर रहे हैं। वे तो सिर्फ जन-जागरुकता और प्रोत्साहन का काम करते हैं।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि

जब उन्हें बताया गया कि अमुक जगह शौचालय है तो उनकी नजर में शौचालय ही होगा। अब वे शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं कि नही? इतनी जानकारी उन तक नहीं आई है। जहाँ तक सरकारी ढाँचों में शौचालय की बात है तो सामान्य तौर पर यह जान सकते हैं कि वहाँ तो लोग उपयोग ही कर रहे होंगे।

उनके सामने ऐसा पहला मामला है कि राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल में शौचालय हैं मगर इस्तेमाल नहीं होते हैं। यह नितान्त दुखद है।

जनपद उत्तरकाशी के मुख्य शिक्षा अधिकारी रमेशचन्द आर्य ने बताया कि

उन्होंने राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल का खुद निरीक्षण किया है। उन्होंने तत्काल विद्यालय के प्रधानाचार्य सुमेरचन्द भण्डारी को आदेश किया कि वे समय पर विद्यालय में शौचालय निर्माण बाबत जिला मुख्यालय में एक प्रस्ताव भेजें, ताकि जल्दी विद्यालय में इस समस्या का समाधान हो सके।

उन्हें विद्यालय में जाकर इस बात का दुःख हुआ कि जब 1982 में काॅलेज का भवन निर्मित हुआ होगा तो तत्काल विद्यालय प्रशासन ने कैसे इस भवन को अपने कब्जे में लिया? प्रश्न इस बात का है कि भवन के साथ शौचालय तो बने हुए हैं मगर शौचालय में सोकपिट बनवाए ही नहीं गए हैं।

विद्यालय में सफाईकर्मी का अभाव

इस विद्यालय की एक और खास बात है कि विद्यालय में सफाईकर्मी का भी अभाव है। जिस कारण विद्यालय परिसर को साफ-सुथरा रखने में सप्ताह में एक बार सम्पूर्ण छात्र-छात्राएँ सफाई अभियान चलाते हैं। विद्यालय परिसर में पेयजल की व्यवस्था भी मात्र 200 लीटर वाली पानी की टंकी से पूरी की जाती है। सवाल खड़ा होता है कि विद्यालय परिसर में पानी की भी व्यवस्था है, परिसर में अन्य खाली जगह भी है जहाँ शौचालय निर्माण किया जा सकता है, पुराने शौचालय पर जड़े तालों का अब तक के सभी प्रधानाचार्य सहज ही चार्ज लेते रहे।

किसी भी प्रधानाचार्य ने ऐसी जहमत नहीं उठाई कि विद्यालय में शौचालय का होना जरूरी हो। मौजूदा समय में तो इस विद्यालय में शौचालय होना लाजमी है। क्योंकि उत्तरकाशी जनपद को स्वच्छ व शौचालय युक्त बताया गया है। वैसे भी देश भर में शौचालय और स्वच्छता के प्रति हमारे प्रधानमंत्री का साफ सन्देश है कि इस ओर सभी को संवेदनशील बनना पड़ेगा। फिर भी जिला मुख्यालय से मात्र 40 किमी के फासले एवं सुलभ स्थान पर स्थित गेंवला ब्रह्मखाल जैसी जगह पर इस विद्यालय में शौचालय का ना होना ही ‘स्वच्छता मिशन’ की खिल्ली उड़ाता दिखाई दे रहा है।

गेंवला ब्रह्मखाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज की कहानी इस बात की पुष्टी करती है कि जब जिला मुख्यालय से मात्र 40 किमी के फासले पर स्थित विद्यालय में जिला प्रशासन शौचालय नहीं बना पाया तो जनपद के दूरस्थ विद्यालयों की क्या हालत होगी? जबकि उत्तरकाशी जनपद को जिला प्रशासन ने शौचालय युक्त बता दिया है। अगर ऐसा है तो राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज गेंवला ब्रह्मखाल में शौचालय कहाँ पर है। क्यों वहाँ के 422 छात्र-छात्राएँ आज भी खुले में शौच जाते हैं। यह उत्तरकाशी जनपद की शौचालय युक्त योजना की पोल खोलने के लिये काफी है।

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