देश में सिंचाई परियोजनाओं और नहरों से कुल सिंचित क्षेत्र का 40 प्रतिशत सींचा जाता है। शेष 60 प्रतिशत क्षेत्र अन्य साधनों से सींचा जाता है। यानी देश में अभी तक उपलब्ध परियोजनागत सम्भाव्य सिंचाई क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका है और देश में कृषि माँग के अनुरूप सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिये इस दिशा में बड़े निवेश और सम्भाव्य सिंचाई क्षमता के अधिकतम उपयोग की आवश्यकता है।
कृषि आज भी हमारी अधिकांश आबादी की आय और आजीविका का प्रमुख स्रोत है और कृषि प्रणाली के उन्नयन से देश की अधिकांश आबादी का आर्थिक उत्थान सम्भव है। कृषि उत्थान की पहली आवश्यकता व आधारभूत आगत सिंचाई है, जिसकी पर्याप्त सुलभता कृषि में इंद्रधनुषी क्रान्ति ला सकती है और पर्याप्त सिंचाई के लिये जल का विशाल भंडार होना आवश्यक है क्योंकि दुनिया की कुल जल खपत का अकेले 69 प्रतिशत कृषि में, शेष 23 प्रतिशत औद्योगिक और 8 प्रतिशत घरेलू कार्यों में प्रयुक्त होता है। इससे स्पष्ट है कि किसी देश में कृषि के सर्वकालिक संवर्धन के लिये उसके पास जल का विशाल भंडार होना आवश्यक है और इस विशाल जल भंडारण के लिये देश में नहरों व बाँधों का परियोजनागत विकास अपरिहार्य हो जाता है।
बाँध जल के प्रवाह को अवरोधित करने की व्यवस्था है जिन्हें बड़े जलाशय में तब्दील करके इनसे सिंचाई का प्रबन्धन, विद्युत उत्पादन, जलीय कृषि, अन्तःस्थलीय नौ परिवहन, मत्स्यपालन जैसी आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में इनकी महती भूमिका और सार्थकता की वजह से ही हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बहुद्देशीय नदी परियोजनाओं को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ की संज्ञा से अभिहित किया। नदियों की घाटियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर बहुआयामी सामाजिक-आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त करने की आयोजना को बहुद्देशीय परियोजना कहते हैं। इनका प्राथमिक उद्देश्य नदी घाटी के अधीन जल और थल का मानव हित में अधिकतम सम्भव उपयोग करना होता है। इस समय देश में कुल 5176 बाँध, 261 बैराज और निर्माणाधीन वृहद बाँधों की संख्या 314 है।
बाँधों की संख्या के हिसाब से महाराष्ट्र 1694 बाँधों के साथ पहले स्थान पर और 898 बाँधों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है जिनके पास देश के कुल वृहद बाँधों का क्रमशः 34.86 और 18.49 प्रतिशत हिस्सा है और इनमें निर्माणाधीन बाँधों की संख्या क्रमशः 152 और 8 है। निर्मित, निर्माणाधीन और प्रस्तावित नदी घाटी परियोजनाओं में गंगा बेसिन की उपयोगी संचयन क्षमता सर्वाधिक है, जो इसकी सहायक नदियों पर निर्मित बाँधों से प्राप्त होती है, इसके बाद संचयन क्षमता में कृष्णा नदी दूसरे स्थान पर है। राज्यों के हिसाब से देश में जनित कुल संचयन क्षमता का करीब 16 प्रतिशत मध्य प्रदेश में, 14 प्रतिशत आन्ध्र प्रदेश में और 12.7 प्रतिशत महाराष्ट्र में है। भारत में निर्मित बाँधों में से 92 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई में, 2.3 प्रतिशत का विद्युत में और एक प्रतिशत का उपयोग शहरी माँग व घरेलू जलापूर्ति के लिये किया जाता है।
17 सितम्बर, 2017 को प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को समर्पित यह बहुद्देशीय सिंचाई और हाइड्रोलिक परियोजनाओं की श्रृंखला में सबसे लम्बी हाइड्रोलिक अभियांत्रिकी परियोजना है और इस परियोजना के सम्पूर्ण नियोजन में 21 सिंचाई, 5 विद्युत और 4 बहुद्देशीय सहित कुल 30 परियोजनाएँ शामिल हैं। सरदार सरोवर बाँध अमेरिका के ग्रांड कोली डैम के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गुरुत्वीय बाँध है जिसमें 30 द्वार हैं और प्रत्येक द्वार का वजन 450 टन है। पानी बहाव की क्षमता के लिहाज से यह विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्पिलवे डिस्चार्जिंग क्षमता (एसडीसी) से युक्त बाँध है, इसकी एसडीसी 85 हजार क्यूमेक्स है, इससे अधिक एसडीसी केवल चीन के गजनेबा बाँध की 1.13 लाख क्यूमेक्स और ब्राजील के टुकुरी बाँध की एक लाख क्यूमेक्स है।
भारत के कंक्रीट बाँधों में यह हिमाचल प्रदेश के 226 मीटर ऊँचे भाखड़ा बाँध और उत्तराखण्ड के 204 मीटर ऊँचे लखवार बाँध के बाद देश का तीसरा सबसे ऊँचा कंक्रीट बाँध है, इसकी ऊँचाई 163 मीटर है। गुजरात के नर्मदा जिले के केवाडिया में नर्मदा नदी पर निर्मित इस बहुद्देशीय बाँध के फायदों में 4 राज्य-गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान शामिल हैं जिसमें सर्वाधिक फायदा गुजरात को होना है। इससे गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र के अधिकांश सूखाग्रस्त क्षेत्रों के 15 जिलों के 135 शहर और 3137 गाँवों को जलापूर्ति और 18.45 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी जबकि इस परियोजना के सम्पूर्ण कवरेज पर सिंचाई से 10 लाख किसान और गाँवों व कस्बों में पेयजलापूर्ति से करीब 4 करोड़ लोगों के लाभान्वित होने की सम्भावना है।
1210 मीटर लम्बे इस बाँध का पूर्ण जलाशय-स्तर 138.68 मीटर तय किया गया है जिस पर पानी का अधिकतम-स्तर 140.21 मीटर और इसकी जल संचयन क्षमता 47.3 लाख क्यूसेक है। जबकि इस परियोजना से जुड़ी 40 हजार क्यूसेक जल क्षमता की 532 किमी लम्बी मुख्य नर्मदा नहर विश्व की सबसे लम्बी सिंचाई नहरों में से एक है। भारत की सबसे बड़ी इस जल संसाधन परियोजना से उत्पादित बिजली का 57 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश को और इसके बाद क्रमशः महाराष्ट्र और गुजरात को मिलेगा। राजस्थान को इस परियोजना से केवल पानी प्राप्त होगा।
गुजरात की जीवन-रेखा नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के अमरकंटक शिखर से उद्गमित होकर 230 से 210 उत्तरी अक्षांश के मध्य बहते हुए गुजरात के भरुच जिले में खम्भात की खाड़ी पर एश्चुअरी बनाती है। 1310 किमी लम्बी इस नदी का बेसिन 93180 वर्ग किमी है और इसके बाएँ तट पर बरनार, बंजर, शेर, शक्कर, दूधी, तवा, गंजाल, कुंदी, देव, गोई जबकि दाएँ तट पर हिरन, तिदोली, बरना, चंद्रकेशर, कानर, मान, ऊंटी, हथनी नदियाँ मिलती हैं जो पश्चिमी भारत पर इसकी सार्थकता को सिद्ध करता है। यह भारत की पाँचवीं बड़ी नदी और भारत की महान नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है जिसमें सरदार सरोवर के अलावा अवंती सागर, इंदिरा सागर, महेश्वर, ओंकारेश्वर सहित 29 बड़ी, 135 मध्यम और 3000 छोटे बाँधों का विकास किया गया है।
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के भाखड़ा गाँव के समीप सतलुज नदी पर निर्मित यह दुनिया में अपनी किस्म के सीधे ऋतु गुरुत्व बाँधों में सबसे बड़ा और देश का कंक्रीट निर्मित सबसे ऊँचा अथवा टिहरी बाँध के बाद भारत का सबसे ऊँचा बाँध है जिसकी ऊँचाई 226 मीटर और लम्बाई 520 मीटर है। भूकम्पीय क्षेत्र में स्थित विश्व के सबसे ऊँचे इस गुरुत्वीय बाँध से 12 किमी नीचे पंजाब के रूपनगर जिले के नांगल में सतलुज पर एक अवरोध बाँध बनाया गया है जो भाखड़ा के लिये सहायक का कार्य करता है। भाखड़ा पर 10वें सिख गुरु के नाम पर निर्मित गोविंद सागर जलाशय की जलधारण क्षमता 9.34 बीसीएम है जो नागार्जुन सागर के बाद तीसरा सर्वाधिक जलधारण क्षमता वाला जलाशय है।
पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की इस संयुक्त परियोजना के लाभ दिल्ली और हिमाचल प्रदेश को भी प्राप्त होते हैं। इसमें राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है। देश की इस सबसे बड़ी बहु-उद्देशीय परियोजना ने पंजाब और हरियाणा में हरितक्रान्ति को गति प्रदानकर इनको देश के सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादक राज्यों की श्रेणी में खड़ा किया है। इस बाँध से बिस्त दोआब, सरहिंद और नरवाना शाखा जैसी नहरें बड़े पैमाने पर निकाली गई हैं जिनसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के 40 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में फैले करीब 40 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई की जाती है।
छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य से उद्गमित 858 किमी लम्बी महानदी का औसत पानी प्रवाह 2119 घनमीटर प्रति सेकेंड और इसका बेसिन क्षेत्र 1,41,600 वर्ग किमी है। इसी नदी पर ओडिशा के संबलपुर जिले से 15 किमी दूर संसार का सबसे लम्बा बाँध हीराकुंड निर्मित है जिसके मुख्य खंड की लम्बाई 4.8 किमी और तटबन्ध सहित बाँध की लम्बाई 25.8 किमी तथा ऊँचाई 60.96 मीटर है। इस परियोजना के दो अन्य बाँध नाराज और टीकापारा हैं। यह परियोजना बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, विद्युत उत्पादन के साथ औद्योगिक विकास को भी व्यापक आधार प्रदान करती है। हीराकुंड बाँध के पीछे 55 किमी लम्बा एक विस्तृत हीराकुंड जलाशय है जिसका जलग्रहण क्षेत्र 83400 वर्ग किमी और कुल क्षमता 58960 लाख घनमीटर है, यह 133090 वर्ग किमी का क्षेत्र अपवाहित करता है जो श्रीलंका के क्षेत्र के दोगुना से अधिक है और इससे 75 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इस सिंचाई सुविधा की सुलभता के कारण संबलपुर को ओडिशा का ‘चावल का कटोरा’ कहा जाता है। इस परियोजना से खरीफ में 1.56 लाख हेक्टेयर और रबी में 1.08 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इसके अलावा, बाँध के विद्युत प्लांटों से निर्गत पानी से 4.36 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई होती है।
सोनभद्र जिले के पिपरी पहाड़ों के मध्य निर्मित यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी बहूद्देशीय परियोजना और भारत की प्रमुख नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। सोन की सहायक नदी रिहंद पर निर्मित यह 91.44 मीटर ऊँचा और 934.21 मीटर लम्बा ठोस गुरुत्वीय बाँध है जिसमें 61 स्वतंत्र ब्लॉक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थापित यह भारत के सबसे बड़े जल भंडारण क्षमता वाले जलाशयों में से एक है जिसकी सकल भंडारण क्षमता 10.60 बीसीएम है और यह अपने 5148 वर्ग किमी जलग्रहण क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक फैला है।
इस परियोजना से मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद और वाराणसी जिलों में करीब 16 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है जबकि इस बाँध के नीचे की ओर बिहार में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध होता है जिससे यहाँ करीब 2.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। रिहंद बाँध के पीछे भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक गोविंद वल्लभ पंत सागर है, इस 30 किमी लम्बे और 15 किमी चौड़े जलाशय के जल को सोन नहर पर मिलाने से सोन नहर की सिंचाई क्षमता बढ़ गई है।
इनमें से चार मैथान, पंचेत, कोनार और तिलैया बाँध कुल 419 एमसीएम जल धारित करते हैं जिससे 680 क्यूसेक जलापूर्ति द्वारा झारखंड और बंगाल के उद्योगों, शहरी निकायों और घरेलू माँगों को पूरा किया जाता है। झारखंड और बंगाल की इस संयुक्त परियोजना का सकल सिंचाई कमांड क्षेत्र 5.69 लाख हेक्टेयर है जिसमें 5.10 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षेत्र बंगाल में है और इससे खरीफ में 3.93 लाख, रबी में 22 हजार तथा 69.7 हजार हेक्टेयर बोरो खेती की सिंचाई की जाती है। इस परियोजना के तहत 2494 किमी नहरें निकाली गई हैं, इनमें बाएँ तट की नहरों में 9146 और दाएँ तट की नहरों में 2260 क्यूसेक पानी प्रवाहित होता है। इसके अलावा परियोजना की अपर घाटी में 30 हजार हेक्टेयर जमीन लिफ्ट सिंचाई द्वारा हर साल सिंचित की जाती है।
तेलंगाना के नालगोंडा जिले में नदीकोड़ा गाँव के निकट कृष्णा नदी पर निर्मित यह भारत की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। बौद्ध विद्वान नागार्जुन के नाम पर निर्मित इस बाँध की जलधारण क्षमता 11472 एमसीएम और जलग्रहण क्षेत्र 214185 वर्ग किमी है, 1.6 किमी लम्बे इस बाँध में 26 फाटक हैं। देश के कृषि इतिहास में हरितक्रान्ति लाने के लिये शुरू की गई यह पहली बहुद्देशीय परियोजना है। इस बाँध से निर्मित नागार्जुन सागर झील दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मानव-निर्मित झील है जिसका पूर्ण जलाशय-स्तर 179.83 मीटर और जल फैलाव क्षेत्र 285 वर्ग किमी है, जिसकी सकल भंडारण क्षमता 11.472 बीसीएम है। यह भारत में दूसरा सबसे बड़ा जल भंडार है।
सिंचाई के वृहद उद्देश्य को पूरा करने हेतु बाँध से दो नहरें निकाली गई हैं जिनके द्वारा आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना क्षेत्र की 8.95 लाख हेक्टेयर भूमि सींची जाती है। इसके दायीं तरफ 203 किमी लम्बी जवाहर नहर द्वारा 4.75 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है जबकि बायीं तरफ 179 किमी लम्बी लाल बहादुर शास्त्री नहर द्वारा 4.19 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इसी नहर से लिफ्ट पम्प हाउस योजना द्वारा हैदराबाद शहर की पेयजलापूर्ति के लिये 20 टीएमसी पानी उपलब्ध कराया जाता है। इसके अलावा नागार्जुन जलाशय से संचालित अलीमिनेती माधव रेड्डी लिफ्ट नहर द्वारा नालगोंडा जिले में 52.6 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। यह जलाशय कृष्णा डेल्टा क्षेत्र की जल माँग को भी पूरा करता है, इससे नदी प्रवाह में 80 टीएमसी पानी प्रवाहित कर डेल्टा की नहरों द्वारा 5.26 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।