सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है। वायु प्रदूषण के कारण यहां लोग विभिन्न तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। अब एक नए शोध से पता चलता है कि वायु प्रदूषण न केवल लोगों के लिए बल्कि मधुमक्खियों के लिए भी अच्छा नहीं है। वायुमंडल के निचले स्तरों में महीन कणों का स्तर सूर्य के प्रकाश के ध्रुवीकरण को प्रभावित करता है, जो कीटों को सही रास्ता चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए वायुमंडल में कणों का उच्च स्तर मधुमक्खियों जैसे परागणकों के लिए इधर-उधर घूमना मुश्किल बना सकता है। सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने के लिए खुले वातावरण जिसे निर्वात कहते हैं, से होकर गुजरता है, जो विद्युत चुम्बकीय तरंग का एक उदाहरण है। इन तरंगों को विद्युत चुम्बकीय तरंगें इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये तब बनती हैं जब विद्युत क्षेत्र चुंबकीय क्षेत्र के साथ परस्पर क्रिया करता है।
बाएं-अधुवित प्रकाश में कई अलग-अलग दिशाओं में प्रकाश तरंग के विद्युत क्षेत्र उस दिशा के लंबवत दोलन करता है जिसमें प्रकाश तरंग आगे बढ़ रही है। दाएं- एक रेखा के रूप से ध्रुवीकृत प्रकाश में वे विद्युत क्षेत्र दोलन एक ही तल में एक दूसरे के साथ आगे बढ़ती हैं।
हर एक प्रकाश तरंग में एक विद्युत क्षेत्र होता है जो प्रकाश तरंग जिस दिशा में यात्रा कर रही है, उसके लंबवत दोलन करता है। एक रेखा के रूप से ध्रुवीकृत प्रकाश में, वे विद्युत क्षेत्र दोलन एक ही तल में एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। अध्रूवित प्रकाश में प्रत्येक प्रकाश तरंग के विद्युत क्षेत्र अलग-अलग दिशाओं में सामने आते हैं। वायुमंडल से टकराने से पहले, सूर्य के प्रकाश में बदलाव नहीं होता है। हालांकि जब प्रकाश की किरणें वायुमंडल में गैस के अणुओं से टकराती हैं, तो वे उन अणुओं से इस तरह टकराती हैं कि सूर्य का प्रकाश आंशिक रूप से बदल जाता है, जिसका अर्थ है कि प्रकाश तरंगों के कुछ, विद्युत क्षेत्र एक सीध में आ जाते हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, प्रकाश की किरणों को एक विशेष ज्यामिति का पालन करना पड़ता है और जब वे ऊपरी वायुमंडल में बिखर जाती हैं, तो एक पूर्वानुमानित पैटर्न दिखाई देता है। ध्रुवीकृत और अनुवित या किरणों में बदलाव वाले सूर्य के प्रकाश के बीच का मनुष्य की आंख के द्वारा अंतर कर पाना या देखना नामुमकिन है। हालांकि मनुष्य धूप के चश्मे या डिजिटल कैमरा फिल्टर जैसे उपकरणों के माध्यम से अंतर को देख सकते हैं, जो प्रकाश के विशिष्ट कोणों को छानते हैं। लेकिन वहीं मधुमक्खियां और अन्य कीट सूर्य के प्रकाश के इस ध्रुवीकरण पैटर्न का उपयोग सूर्य के संबंध में खुद के रास्ता खोजने के लिए कर सकते हैं, यह तब भी संभव है जब सूर्य बादलों से ढका होता है। हालांकि अगर प्रकाश वायुमंडल में मौजूद अन्य पदार्थों से टकराता है तो यह ध्रुवीकरण या बदलाव खत्म हो सकता है।
एरोसोल और प्रदूषकों के छोटे कण-खास तौर पर पीएम 2.5, या 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कण सूरज की रोशनी को खास तौर पर अच्छी तरह से बिखेरते हैं। शोधकर्ता ने शोध में कहा धूप वाले दिन में प्रकाश का ध्रुवीकरण लगभग 60 से 70 प्रतिशत होता है। एक बार जब ध्रुवीकरण की डिग्री 15 प्रतिशत से कम हो जाती है, तो कीटों को कम दिखाई देता है, जिसमें वे रास्ता दिखाने वाले ध्रुवीकृत प्रकाश पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सियोल में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन के पास जमीनी स्तर पर पीएम 2.5 के स्तर और प्रकाश ध्रुवीकरण के बीच संबंधों की जांच पड़ताल की। सूर्य के प्रकाश के ध्रुवीकरण की डिग्री निर्धारित करने के लिए, उन्होंने पोलराइजर फिल्टर लगे डिजिटल कैमरे से तस्वीरें लीं। टीम ने पाया कि पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ने पर ध्रुवीकरण की डिग्री कम हो गई, जिससे पता चलता है कि पीएम 2.5 के बढ़ते स्तर से हर साल उन दिनों की संख्या बढ़ सकती है, जब मधुमक्खियां रास्ता खोजने के लिए संघर्ष करती हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा पार्टिकुलेट मैटर ही एकमात्र ऐसी चीज नहीं है जो ध्रुवीकरण पैटर्न में रुकावट पैदा कर सकती है। वायुमंडल में ऊपर बादल या धूल जमीन के करीब पार्टिकुलेट मैटर तक पहुंचने से पहले सूर्य के प्रकाश को अच्छी तरह से बिखेर सकते हैं। इसका मतलब है कि बहुत कम प्रदूषण वाले दिनों में भी, अगर वायुमंडल में ऊपर अन्य प्राकृतिक कण सूर्य के प्रकाश को बिखेर रहे हैं, तो ध्रुवीकरण की डिग्री तब भी कम हो सकती है।