मृदा पर उपलब्ध सभी जैविक घटकों को हम ह्यूमस में परिवर्तन करने का महत्वपूर्ण कार्य एक छोटे से जीव द्वारा हैं। जिसे अर्थवर्म/ केंचुआ/ गिंडोला कहते हैं। इससे तैयार उत्पाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। अर्थात केचुओं की विष्टा को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।
सड़ी हुई गोबर की खाद के माध्यम से कचरा पचकर निर्मित की गई कम्पोस्ट प्रक्रिया को वर्मी कल्चर कहते हैं। जिससे जैविक खाद और केचुओं का उत्पादन साथ-साथ होता है।
(100 वर्ग फिट इकाई हेतु) अधपका सड़ा गोबर 3 से 4 कुण्टल कूड़ा करकट सूखा चारा केंचुआ 3 से 4 किलो पर्याप्त नमी हेतु पानी बांस बल्लियां, चटाईंया इत्यादि ।( पिट की साइज के अनुसार )
उपलब्ध स्थानानुसार छोटा या बडा़ बनाया जा सकता है। सामान्यतः पिट में बिना घुसे सभी कार्य किया जा सके । 20 फिट लम्बा 5 फिट चौड़ा एवं 1.5 फिट ऊंचा जिसका फर्श पक्का बनाया गया है। 9 इंच मोटाई का पक्का पिट अच्छा रहता है। पिट के चारो ओर 1 नाली रखें जिसमें हमेशा पानी भरा रहे, इससे चीटिंया केचुओं को क्षतिग्रस्त नहीं कर पायेंगी । पिट के चारों ओर छायादार झोपड़ी 7 फीट ऊँचाई की बनाए झोंपड़़ी सुविधानुसार कच्ची, पक्की, संरचना की निर्मित कर सकते हैं।
सबसे पहिले झोपड़ी के नीचे 6 इंच मोटी सूखे चारे की तह बिछाएं उसके ऊपर 6 इंच अधपकी गोबर की खाद बिछा दें इसके बाद पानी से तर कर 48 घंटे पड़ा रहने दें उसके बाद केंचुओं को इस पर समान रूप् से बिखेर दें और उसके उपर 6 इंच मोटे कूड़े करकट की तह बिछा दें और टाट फट्टी से ढक दें। हजारे से तह टाट पर पानी छिड़कते रहें। पानी रोज छिड़के । करीब 40-50 दिन में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाएगा। इसे 4- 6 क्विटंल कम्पोस्ट केंचुओं के अण्डों सहित तथा 15- 20 हजार केंचुएं पैदा होते है। केंचुओं को एकत्र कर छानकर या ढेरी बनाकर अलग करें। नये पिट से फिर से उपयोग में लाए।
सामान्य मिट्टी से 5 गुना नत्रजन, 7 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटास, 2 गुना मैग्नीशियम, तथा अनेक कई सूक्ष्म पोषक तत्व पानी में घुलनशील और पौधों को तुरंत प्राप्त होने वाले उपलब्ध रहते है।
1. खेतों में 150 से 200 किलो प्रति एकड़, 2 पेड़ों में 100 से 200 ग्राम प्रति पेड़, 3 गमलों में 50 ग्राम प्रति गमला।
छायादार स्थानों पर नमी युक्त स्थल पर पेड़ के नीचे, बरगद के पेड़ के नीचे अधिक उपयुक्त रहता है।
1. सख्त जमीन को नरम बनाता है। जिससे भूमि में हवा के संचार बढ़ता है।
2. मिट्टी की जलधारण क्षमता में 35 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
3. पौधों का सभी पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में शीघ्र उपलब्ध कराता है।
4. यह धूल कणों से चिपककर मृदा का वाष्पीकरण रोकता है जिससे पानी की बचत होती है।
5. केंचुएं गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खा जाते है। और उसे लाभदायक ह्यूमस में बदल देते हैं।
6. भूमि का क्षरण रूकता है।
7. मृत केंचुयें से जमीन को सीधे नत्रजन उपलब्ध होती है।
8. वर्मी कम्पोस्ट उपयोग से वेशकीमती रसायनों की बचत होती है।
1. पिट में हमेशा नमी बनी रहनी चाहिए।
2. चीटिंयों से सुरक्षा हेतु चारों ओर नाली बनाकर पानी भरे रखना चाहिए।
3. पिट की ऊपरी सतह टाट फट्टी से ढंके तथा उपर छायादार संरचना अवश्य बनाएं
4. पिट की फर्श को पक्का बनाएं।
5. उपयोग की गई सामग्री में पत्थर कीट, कांच, प्लास्टिक के टुकड़े नहीं होने चाहिए।
6. चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में करके पिट में डालना चाहिए।
7. वर्मी कम्पोस्ट जहां उपयोग करें वहां रसायन का उपयोग प्रतिबंधित करना चाहिए।
संकलन/ टायपिंग
नीलम श्रीवास्तव,महोबा