कृषि

किसानों को लूटा, मिल मालिक हुए मालामाल

संजीव कुमार


धान की खरीद और मिलिंग आदि में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला हुआ है। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 17,985.49 करोड़ रुपए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में दिए हैं। लेकिन सरकार के पास इस बात के सबूत नहीं हैं कि मिल मालिकों या राज्य सरकारों की एजेंसियों या भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने किसानों को ठीक-ठीक न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया है या नहीं। वहीं कई ऐसे लोगों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया गया जिनकी पहचान संदिग्ध थी, तो कई जगहों पर भुगतान पाने वाले किसानों के नाम, पते, पहचान और बैंक खातों के बारे में सही जानकारी नहीं है। ऐसी गड़बड़ियाँ हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पाई गई हैं।

दूसरी तरफ कैग रिपोर्ट के मुताबिक मिल मालिकों को भी 3,743 करोड़ का अनुचित लाभ पहुँचाया गया है। यह लाभ उन्हें मिलिंग में निकलने वाले सह-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट- भूसी, राइस ब्रान और टूटा चावल) के जरिए दिया गया है। गौरतलब है कि सह-उत्पाद की कीमतें हर साल बढ़ती रही है। इसके बावजूद 2005 से मिलिंग चार्ज में संशोधन नहीं किया गया। इससे 2009-10 से 2013-14 के दौरान आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में मिल मालिकों ने सह-उत्पाद बेचकर 3,743 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ कमाए। यह सरकारी खजाने का नुकसान है। कैग ने धान मिलों को सह-उत्पाद से हुई इस अतिरिक्त लाभ का आकलन सिर्फ इन चार राज्यों के चुनिंदा जिलों से मिले आँकड़ों के आधार पर किया है। गौरतलब है कि इन जिलों से करीब 15.81 फीसदी धान खरीद होती है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देश भर में धान मिलों को इस प्रकार हुए अनुचित लाभ का पता लगाया जाए तो वास्तविक आँकड़ा बहुत ज्यादा होगा।

बताते चलें कि कस्टम मिल्ड राइस की इस प्रणाली में टैरिफ कमीशन 2005 के अनुसार, औसतन 100 किलो धान के बदले 67 किलो अरवा या 68 किलो उसना चावल मिल मालिक सरकार को देती है। और बाकी 32-33 किलो सह-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट- भूसी, राइस ब्रान और टूटा चावल) की कीमत मिल मालिक सरकार को देती है। गौरतलब है कि सह-उत्पाद की कीमत पिछले 10 सालों में नहीं बढ़ी है जबकि सह-उत्पाद का बाजार मूल्य काफी बढ़ गया है। इस तरह राज्य सरकारों ने मिल मालिकों को 3,743 करोड़ का अनुचित लाभ पहुँचाया गया है।

वहीं इस बाबत खाद्य मंत्रालय का कहना है कि टैरिफ कमीशन की सिफारिशों के आधार पर ही धान की मिलिंग के लिये जो भुगतान किया जाता है वह सह-उत्पाद के मूल्य को मिलों की आय में शामिल करके तथा उसके विरुद्ध उनके खर्चों का समायोजन करने के उपरान्त ही तय की जाती हैं। यानी मिलिंग की दरें सह-उत्पाद से मिलों को होने वाली कमाई को ध्यान में रखते हुए ही तय की जाती हैं। लेकिन कैग और मन्त्रालय दोनों ने माना है कि मिलिंग की दरें पिछले 10 साल से संशोधित नहीं हुई। पर यह यकीन करना मुश्किल है कि निजी चावल मिलें सरकार के लिये 10 साल पुराने दर पर काम कर रही हैं।

ओडिशा के आरटीआई कार्यकर्ता गौरीशंकर जैन का आरोप है कि कस्टम मिल्ड राइस (सीएमआर) की इस प्रक्रिया में देश भर की चावल मिलें सह-उत्पादों से सालाना करीब 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर रही हैं। इस बाबत कई आरटीआई लगा चुके जैन इस घोटाले की शिकायत आयकर विभाग, केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) जैसी जाँच एजेंसियों से कर चुके हैं। इस भ्रष्टाचार के बाबत जैन का कहना है कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों के विभागीय कर्मचारी सोची-समझी योजना के तहत सह-उत्पाद से होने वाले आय का अनुचित लाभ मिल मालिकों को दे रहे हैं। इससे सरकार को करोड़ों की हानि हो रही है। जैन का तो यहाँ तक दावा है कि उनकी ही शिकायत पर प्रधानमन्त्री कार्यालय ने कैग को इसकी जाँच करने के लिये कहा। बहरहाल कैग की रिपोर्ट से धान मिलिंग में गड़बड़ियों और सह-उत्पाद से मिलों को अनुचित लाभ के उनके आरोपों को बल मिलता है।

धान खरीद के बाद पर्याप्त तथा उचित भंडारण के अभाव में 208.97 करोड़ रुपए के धान की हानि हुई। इसमें छत्तीसगढ़ में 179.76 करोड़, बिहार में 21. 28 करोड़ और ओडिशा में 7.93 करोड़ रुपए की क्षति शामिल है। इससे भी सरकार को सब्सिडी के मद में ज्यादा खर्च करना पड़ा है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने धान की सरकारी खरीद और मिलिंग में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ पायी हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि सरकारी प्रणाली में कैसे चावल मिल मालिकों को अनुचित लाभदिया गया है। कैग ने इन कमियों को दूर करने के साथ-साथ किसानों को आधार नंबर से जोड़ते हुए सरकारसे न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान सीधे किसानों के खातों में करने की सिफारिश की है।

चावल घोटाला : एक नजर में
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