राजस्थान के अर्द्ध शुष्क इलाकों में गंग भाखड़ा और इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) के नहरी कमांड क्षेत्रों में कपास की फसल अपने अधिक वाणिज्यिक मूल्य के कारण प्रचलित है जिसको वहाँ उसके लोकप्रिय नाम सफेद सोने के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा केवल 300 मिमी और इससे भी कम हो सकती हैं। वहाँ भूजल लवणीय है और सामान्य तौर पर सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है। अतः फसल उत्पादन के लिए नहर का जल सिंचाई का एकमात्र स्त्रोत है। नहरों में वार्षिक सिंचाई की तीव्रता 110% है। इस प्रकार, सिंचाई के जल की आपूर्ति पूरे खेती क्षेत्र की सिंचाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है इसके परिणामस्वरूप वहाँ दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने का बहुत अधिक महत्त्व है। इसके अलावा, इस क्षेत्र के किसानों द्वारा भी दबावयुक्त सिंचाई प्रणाली को मान्यता भी मिल रही है। इस क्षेत्र के एक किसान जिनका नाम श्री विनोद कुमार है वो पद्धति के लोकप्रियता के प्रारंभिक चरण में कपास की फसल में दबाव सिंचाई प्रणाली को अपनाने वालों में से एक है। जल प्रबंधन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का श्रीगंगानगर केंद्र ड्रिप सिंचाई पद्धति के तहत कपास की खेती के पूरे पैकेज को विकसित करने में अग्रणी है और जल प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों द्वारा कम जल उपयोग के साथ स्थायी कपास उत्पादन के उभरते मुद्दे पर किसानों को प्रशिक्षण उपलब्ध करवाने में भी मदद कर रहा है।
श्री विनोद कुमार पुत्र श्री राम नारायण राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा तहसील के चक 21 एमओडडी गाँव में रहने वाले एक साधारण किसान है। वह एक स्नातक है और आधुनिक तकनीकों के साथ अपनी भूमि में खेती करने के लिए तैयार हैं। उनके पिता कुल 8.75 हेक्टेयर भूमि के स्वामी हैं और उनका पूरा परिवार खेती पर ही निर्भर है। उनकी अक्सर महरी सिंचाई पद्धति के तहत जल की समस्या का सामना करना पड़ता है क्योंकि इस क्षेत्र में भूजल लवणीय हैं जो फसलों की सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं है। जल की इस कमी के कारण कपास के तहत केवल 3.75 हेक्टेयर क्षेत्र में ही खेती कर पाते थे और शेष भूमि की परती छोड़ देते थे। वह एक दिन अनुसंधान स्टेशन पर गए और वहाँ वैज्ञानिकों के साथ परती भूमि के उपयोग की संभावनाओं पर चर्चा की। अनुसंधान क्षेत्र के प्रयोगों के परिणामों को देखकर एवं चर्चा करके वे बहुत प्रभावित हुए। विनोद कुमार जी के लिए कपास में ड्रिप सिंचाई पद्धति को स्थापित करना ऐसे का जैसे फिर से कपास की खेती करना। इसके परिणामस्वरूप उन्होंने तकनीकों के विस्तार को जानने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। उन्होंने जो पहला सबक सीखा वो यह था कि कभी इंतजार मत करो बल्कि अपने खेत में शोध के परिणामों को दोहराना शुरू कर दिया।
विनोद कुमार कहते हैं कि सही समय पर जल की उपलब्धता, कपास की खेती में सबसे बड़ी समस्या थी और नहर के जल का भंडारण एकमात्र विकल्प था क्योंकि भूजल लवणीय था और कपास की सिंचाई के लिए उपयुक्त नहीं था। अतः उन्होंने खेत में तालाब का निर्माण करने का निर्णय लिया ताकि वह नहर के जल को संग्रहीत कर सके। इसके परिणामस्वरूप उसने तालाब (आकार ऊपर- 96x132 फीट नीचे 72 x 105 फीट गहराई 13.5 फीट) का निर्माण शुरू कर दिया। विनोद कुमार कहते है कि जल हमारे क्षेत्र में जीवन की रेखा है और किसान अब नहर के जल की हर बूंद को संचय करने की आवश्यकता को महसूस कर रहे है। वर्ष 2008 के दौरान उन्होंने कुल 5.75 हेक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप प्रणाली को स्थापित किया। उन्होंने वर्ष 2004 में खरीफ मौसम के दौरान अपने पूरे ड्रिप स्थापित क्षेत्र (5.75 हेक्टेयर) में कपास की खेती की उन्होंने वर्ष 2009 में बीटी कपास से 30 प्रतिशत अधिक उपन और 50 प्रतिशत अधिक जल की बचत प्राप्त की। उन्होंने बताया कि कुल 5.75 हैक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई पद्धति से कपास के गांवों की संख्या दोगुनी प्राप्त कर सकता हूँ जैसे कि 3.75 हेक्टेयर क्षेत्र में बाढ़ सिंचाई से उसी मात्रा के सिंचाई पानी से प्राप्त करता था। विनोद कुमार कहते हैं कि पैदावार और प्रति जल बूंद अधिक फसल उत्पादन ही मेरा मुख्य नारा है।
रबी 2009-2010 के दौरान उन्होंने सरसों में लगाई हुई रोटी के तहत सरसों का इस्तेमाल किया। श्री विनोद कुमार ने फिर अपने पूरे खेत को बीटी कपास के साथ खरीफ 2010 के दौरान खरीदा था। उनकी फसल बहुत अच्छी है वह आगामी रवीं सीजन के दौरान सब्जियों को उगाने की योजन बना रहे। श्री विनोद कुमार खुश हैं और उनका कहना है कि इस बेल्ट में कपास को बचाने का एकमात्र विकल्प है, क्योंकि उनकी वार्षिक आय दोगुनी हो गई है (तालिका 22 ) ।
श्री विनोद कुमार ने जल प्रबंधन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना, श्रीगंगानगर के शोध केंद्र के वैज्ञानिकों को अपनी सफलता का पूरा श्रेय दिया जिन्होंने जल बचत तकनीकों को लागू करने के लिए उन्हें उचित तरीके से मार्गदर्शन और निर्देशित किया। अब वह ड्रिप सिंचाई प्रणाली के तहत सब्जियों को खोती भी शामिल करने की योजना बना रहा है ताकि उनकी कृषि से लाभप्रदता कई गुना बढ़ सके उस गाँव के अन्य किसान भी उसके खेतों में नियमित रूप से जाते है और वे इस तकनीक से काफी प्रभावित हैं और इस तकनीक को अपनाने के लिए तैयार भी है। जो किसान उसके खेत पर जाकर इस तकनीक को देखते हैं वो भी पूर्ण सहमति में हैं कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली कृषि के लिए भविष्य की तकनीक है जो नए आयामों को प्राप्त करने के लिए उपयोग में ली जा सकती है।