भूमि और जल संसाधन कृषि की बुनियादी जरूरते हैं और किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए यह दोनों संसाधन बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सर्वविदित है कि बढ़ती आबादी के कारण इन संसाधनों की माँग लगातार बढ़ती रहेगी। वर्तमान में खाद्य आपूर्ति की तुलना में विश्व की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है दुनिया में कुल 3% ही जल उपयोग हेतु उपलब्ध है जबकि भारत में केवल 2.4% भू-भाग में ही जल उपलब्ध है। कृषि में कुल उपलब्ध पानी का 70% से 80% उपयोग हो जाता है। इस गंभीर जल संकट के दौर में कृषि हेतु जल की बचत करना बहुत ही आवश्यक हो गया है। ट्रिप सिंचाई विधि में पाइप नेटवर्क का उपयोग करके खेतों में पानी का वितरण किया जाता है और इसमें पाइप नेटवर्क से एमिटर्स द्वारा बूंद-बूंद कर के पौधों को सिंचाई जल दिया जाता है। ड्रिप सिंचाई पद्धति में बहुत सारे लाभों के बावजूद, इसके पारंपरिक नेटवर्क में कई समस्याएं सामने आ रहीं हैं। इन समस्याओं के समाधान हेतु गुरुत्वाकर्षण विधि एवं मृदा नमी संवेदक प्रणाली के साथ ड्रिप सिंचाई पद्धति का उपयोग नमी के संरक्षण के लिए एक बहुत ही उपयुक्त दृष्टिकोण है एवं यह देश में खाद्यान की माँग को पूरा करने के लिए कृषि से अधिक उपज के उत्पादन में सहायक साबित हो सकता है।
स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रोद्योगिकी महाविद्यालय इंदिरा गाँधी कृषि महाविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ के मृदा एवं जल अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा मृदा आर्द्रता आधारित सवंदेक का उपयोग कर टपक सिंचाई प्रणाली का निष्पादन एवं मूल्यांकन विषय पर एक अनुसंधान कार्य आयोजित किया गया। इस अनुसंधान प्रयोग का उद्देश्य मृदा में नमी के मूल्यांकन के लिए कम लागत वाली संवेदक प्रणाली को एकीकृत करना और स्थापित करना था। कम लागत वाली गुरुत्वाकर्षण संचालित सिंचाई के साथ मृदा आर्द्रता संवेदक प्रणाली को समायोजित करके ड्रिप सिंचाई प्रणाली का मूल्यांकन किया गया। इस प्रयोग का परीक्षण वर्ष 2017-18 के दौरान भिंडी की फसल में किया गया। इस प्रकार विकसित की गई सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली से 27 से 42 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है। इस अनुसंधान में मृदा से
वाष्पीकरण और जल निकास द्वारा होने वाले जल के नुकसान को कम करने का प्रयास किया गया जो जल उपयोग दक्षता में वृद्धि करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। मृदा नमी संवेदक आधारित ड्रिप सिंचाई तंत्र मृदा और पौधों की स्थिति का अवलोकन करने की सुविधा प्रदान करता है। यह तंत्र निर्णय लेने की क्षमता एवं नियंत्रण प्रणालियों के संयोजन के साथ फसल की जल की आवश्यकता के अनुसार सही समय पर सिंचाई प्रदान करता है इस अनुसंधान प्रयोग का विवरण तालिका 3 और तालिका 9 में प्रस्तुत किया गया है।। गुरुत्वाकर्षण द्वारा ड्रिप सिंचाई प्रणाली में 750 लीटर ओवरहेड (कुल ऊंचाई 3.55 मीटर) वाली टंकी का सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया गया। इस प्रयोग में ड्रिप सिंचाई पद्धति के दो उपचारों का परीक्षण किया गया जैसे (1) पारंपरिक ड्रिप सिंचाई (नियंत्रण) तथा (2) मृदा नमी संवेदक आधारित ड्रिप सिंचाई नियंत्रण सिंचाई के उपचार में जल को व्यवहारिक पद्धति के आधार पर प्रदान किया गया तथा और संवेदक आधारित उपचार में जल को मृदा में उपस्थित नमी के अनुसार प्रदान किया गया। नीचे दिये गए चित्र में इस अनुसंधान प्रयोग के विभिन्न अवयवों को दर्शाया गया है
पारंपरिक सिंचाई और सेंसर आधारित ड्रिप सिंचाई के लिए क्रमशः 2 और 10 लाइनों का उपयोग किया गया। गीले (वेटिंग) पैटर्न को Q.25 किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी चलित (ऑपरेटिंग) दबाव पर मपा गया। 15,30,60 और 90 मिनटों के बाद गीली मृदा की चौड़ाई और गहराई को मापा गया। अधिकतम क्षैतिज गीले क्षेत्र की गहराई क्रमशः 4.2, 8.2, 11.2 और 16.4 सेमी पाई गई जबकि अधिकतम ऊर्ध्वाधर गीले क्षेत्र की चौड़ाई को क्रमशः 8.4, 12.4, 20.1 और 22.3 सेमी दर्ज किया गया। औसतन 1.3 लीटर प्रति घंटे की निर्वहन दर के साथ चलित दबाव 0.25 किग्रा वर्ग सेमी था। इस प्रयोग में मृदा में उपस्थित नमी के आधार पर सिंचाई के स्वचालित प्रबंधन के लिए सेंसर आधारित सिंचाई नियंत्रक प्रणाली स्थापित की गई इसके लिये प्रोग्रामेबल लॉजिकलयूनिट (पीएलसी) आंतरिक सर्किट, तार युक्त सेंसर सहित प्रोसेसर (नियंत्रक) जैसे विभिन्न उपकरणों को उपयोग में लिया गया
सेंसर आधारित सिंचाई नियंत्रक प्रणाली में नियंत्रक क्लोज लूप कंट्रोल के सिद्धांत पर काम करता है तथा सेंसर मृदा में नमी के स्तर को मापता है और 4-20 मिली एम्पियर संकेतक के रूप में बांट देता है जो कि इस नियंत्रक की प्राथमिक (इनपुट) इकाई होती है। इस प्रयोग में 4 मिली एम्पियर के संकेत का मतलब है कि मुद्रा में नमी की कमी होना और 20 मिली एम्पियर के संकेत का मतलब तालिका 10, विभिन्न उपचारों के तहत जल की उपयोग दक्षता मृदा में नमी का पर्याप्त होना है। यह समायोजित (कैलिब्रेटेड) सेंसर मृदा में वांछित नमी के स्तर पर पंप को संचालित करने में सक्षम बनाता है और फसल को सिंचाई के लिए पंप के स्विच को बंद या चालू करने के लिए नियंत्रक को संकेत देता है। मृदा नमी आधारित सेंसर को मृदा में मौजूद नगी और सिग्नल इनपुट के बीच सहसंबंध के आधार पर कैलिब्रेटेड किया गया। मृदा नमी संवेदक आधारित अनुसंधान के परिणामों से यह पता चला कि ड्रिप सिंचाई प्रणाली के तहत यह न केवल फसलों में अवांछित नमी तनाव को रोक देता है बल्कि सिंचाई के जल को सही मात्रा में और उचित समय पर प्रदान करने के लिए एक प्रभावी विधि भी साबित हो सकता है। नियंत्रण प्रणाली एवं सेंसर आधारित सिंचाई प्रणालियों की अलग- अलग लाइनों के तहत प्राप्त जल उत्पादकता को तालिका 10 में बताया गया है।
अशोकन (केलिब्रेशन) के परिणामों के मुताबिक सेंसर वास्तविक नमी के स्तर पर संचालित करने के लिए सक्षम है और यह फसल में सिंचाई के लिए पंप को बंद और चालू करने के लिए नियंत्रक (पीएलसी) को संकेत देता है। इस सुविधा के कारण यह सिंचाई प्रणाली न केवल फसलों को अवाछित नमी के तनाव से बचायेगी बल्कि सिंचाई के जल की मात्रा को उचित समय पर प्रदान करने में सहायक है जिससे फसलों की उपज में वृद्धि सुनिश्चित हो सकती है।मृदा और जल अभियांत्रिकी विभाग, रायपुर द्वारा अपने अनुसंधान खेत पर इस मृदा नमी संवेदक आधारित ड्रिप सिंचाई प्रणाली की स्थापना सफलतापूर्वक की गई इस विकसित संवेदक प्रणाली को सफलतापूर्वक अशांकित करके इसे मिट्टी की फसल के तहत 80-50% क्षेत्र क्षमता के लिए उपयोगी पाया गया। सेंसर उपचार सिंचाई प्रणाली और नियंत्रण सिंचाई प्रणाली दोनों में से बेहतर परिणाम सेसर उपचार सिंचाई प्रणाली से प्राप्त हुए। क्योंकि यह प्रणाली बेहतर जल उपयोग दक्षता प्रदान करती है तथा इस प्रणाली से भिंडी की फसल के पौधों की औसतन ऊंचाई 110.90 सेमी और उपज 145715 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्राप्त हुई।