कृषि

 नहरी कमांड क्षेत्र के तहत जल उत्पादकता में वृद्धि के विकल्प

ओ. पी. वर्मा, पी. पानीग्राही, आर. के. पंडा, एस. के. राऊतराय

भारत में लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर खेती योग्य भूमि में से वर्ष 1950-51 के दौरान नहर से सिंचित कुल क्षेत्र 83 मिलियन हेक्टेयर ही रिपोर्ट किया जा चुका है जो अब वर्तमान में 17 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ गया है। इसके बावजूद भी वर्ष 1951 में नहरों का सापेक्ष महत्व 40% से घटकर वर्ष 2010-11 में 26% तक घट गया है (धवन, 2017)। चूंकि, आजकल नहर से सिंचाई करने में कई बाधाएं सामने आ रही हैं जिसके परिणामस्वरूप देश के विशेष रूप से पूर्वी क्षेत्र में इस सिंचाई पद्धति की बहुत कम दक्षता प्राप्त होती है। नहरी सिंचाई प्रणालियों में प्रमुख समस्या जैसे कि बिना अस्तर वाली नहरें हैं जिससे जल वहन प्रक्रिया में भारी नुकसान पहुँचता है। इसके अलावा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण समस्याएं जैसे बिना कोई वोल्यूमेट्रिक वितरण प्रावधान के साथ उचित सिंचाई बुनियादी ढाँचे की कमी, खेत से खेत की सिंचाई नहर के मुख्य छोर पर किसानों के पास जल का अत्यधिक विशेषाधिकार होना और मानसून के महीनों के दौरान ही नहर में जल का उपलब्ध होना आदि है। नतीजतन वर्तमान के दौरान भारत में मध्यम और प्रमुख नहरी कमांड्स में जल की उपयोग दक्षता केवल 38% ही है। इस जल उपयोग दक्षता को बाढ़ सिंचाई विधि की जगह ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधियों को स्थानातरित करने के माध्यम से काफी हद तक सुधारा जा सकता है। नहरी कमांड्स  में इन महत्त्वपूर्ण विकल्पों के द्वारा विभिन्न फसलों की उपज को 10-50% तक बढ़ाने के साथ-साथ 60% तक सिंचाई जल को भी बचाया जा सकता है ( शिवानापन 1994)

इसी बात को ध्यान में रखते हुए भाकृअनुप- भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों ने ओडिशा राज्य के पुरी जिले में पुरी मुख्य नहर प्रणाली से निकलने वाली माइनर नहर के कमांड क्षेत्र में एक पायलट अध्ययन को शुरू किया गया। इस अनुसंधान के तहत नहर के दोनों ओर सहायक जल भंडारण संरचनाओं के निर्माण के प्रावधान से पीवीसी पाइप जल वहन प्रणाली के साथ दबाव सिंचाई प्रणाली द्वारा नहर के मुख्य, मध्यम और अंतिम छोर पर किसानों को सिंचाई जल की सुविधा उपलब्ध करवाई गई। इस पूरी सिंचाई सुविधा का उद्देश्य सुनिश्चित जल संसाधनों का विकास करना फसल पैदावार एवं जल की उत्पादकता में वृद्धि करना था जिससे किसानों का कृषि उत्पादन बढ़ सके और उनकी खेती की आय में वृद्धि हो सके।

अध्ययन सामग्री और विधियों

इस अनुसंधन को भारत के ओड़ीशा राज्य में खुर्दा जिले के दो गाँवों नागपुर और हिरापुर (ग्राम पंचायत- उमादेई ब्रह्मपुर तहसील बालीपन्ता) जो 20 डिग्री 13'27" उत्तरी अक्षांश और 85 डिग्री 52'46" पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित हैं। नागपुर माइनर नहर पुरी मुख्य नहर से कम दूरी यानी 35.620 किलोमीटर (बाया) पर निकलती है और नागपुर और हिरापुर गाँवों से गुजरती है। यह माइनर नहर 0.3 घनमीटर / सेकंड के डीजाइड निर्वहन के साथ कुल 3 किलोमीटर की लंबाई तक बहती है और इसका कुल कमांड क्षेत्र 156 हेक्टेयर है।

निर्धारित दिशानिर्देशों के आधार पर तीन डोमेनों जैसे कि सिंचाई पद्धति के प्रदर्शन कृषि उत्पादकता और वित्तीय पहलुओं पर विचार करते हुए नहर की सिंचाई क्षमता का अध्ययन किया गया। पद्धति प्रदर्शन संकेतक जैसे पद्धति प्रदर्शन के तहत वार्षिक सिंचाई जल की आपूर्ति प्रति यूनिट कमांड क्षेत्र (घनमीटर/हेक्टेयर): कृषि उत्पादकता के तहत आउटपुट प्रति यूनिट सिंचित क्षेत्र (₹/हेक्टेयर) व आउटपुट प्रति यूनिट फसल जल माँग (₹/हेक्टेयर) और वित्तीय संकेतकों के तहत लागत वसूली अनुपात को नहर प्रणाली की हाइड्रोलिक क्षमता की जानकारी के लिए उपयोग में लिया गया।
इस नहर में वार्षिक सिंचाई जल की आपूर्ति से संबंधित आँकड़ों को जल संसाधन विभाग, ओडिशा सरकार से एकत्रित किया गया और नहर में भी मापा गया। इसी तरह, फसलों की उपज के आँकड़ों को किसानों के खेत के उत्पादन से एकत्रित किया गया और इनको किसी विशेष फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर मौद्रिक रूप में परिवर्तित किया गया। नहर की रखरखाव लागत सहित नहर प्रणाली को चलाने में शामिल लागत से एकत्रित सकल राजस्व के आधार पर लागत वसूली अनुपात को प्राप्त किया गया।

महत्त्वपूर्ण सिंचाई प्रावधानों जैसे कि पीवीसी पाइप वहन प्रणाली, पीवीसी पाइप बहन के साथ स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली और पीवीसी पाइप वहन के साथ ड्रिप सिंचाई प्रणाली आदि की डिजाइन को माइनर नहर के मुख्य, मध्य और अंतिम छोर तक सिंचाई जल को पहुँचाने के लिए तैयार किया गया और किसानों के खेतों पर इन सिंचाई प्रणालियों को स्थापित भी किया गया। माइकल (1978) द्वारा सुझाए गए दिशा निर्देशों के अनुसार इन सिंचाई प्रणालियों का डिजाइन बनाया गया था। विकसित की गई यह सभी सिचाई सुविधाएं मौजूदा सहायक जल भंडारण संरचनाओं से जुड़ी हुई थी ताकि नहर के जल को संरक्षित किया जा सके और सूखे के मौसम के दौरान रबी मौसम की फसलों में सिंचाई के लिए इस सरक्षित जल का उपयोग किया जा सके। माइनर नहर के तीनों छोर (मुख्य मध्य एव अंतिम छोर और विकसित की गई सिंचाई प्रणालियों की डिजाइन को नीचे दिए गए चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। स्थल 1 (L)

सिंचाई पद्धति के प्रदर्शन कृषि उत्पादकता और वित्तीय क्षमता के संदर्भ में माइनर नहर का बेंचमार्किंग किया गया। सिंचाई पद्धति के प्रदर्शन के तहत परिणामों से पता चला कि प्रति इकाई कमांड क्षेत्र में सिंचाई जल की आपूर्ति यहाँ पर डिजाइन की गई आपूर्ति 20970/ हेक्टेयर से 73% कम पाई गई। धान की फसल के लिए कृषि उत्पादकता की बाजार आधारित उत्पादन बनाम आपूर्ति किए गए जल के मुकाबले 18% कम की गणना की गई। जब वर्ष 2015-16 के दौरान धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य ₹1410 / क्विंटल, 3.9 टन/ हेक्टेयर की औसत फसल उपज और 5565 / हेक्टेयर की वास्तविक जल आपूर्ति को विचार करने पर इस उत्पादकता की ₹9.9/घनमीटर के रूप में गणना की गई। इसी प्रकार, वित्तीय क्षमता को लागत वसूली अनुपात के रूप में व्यक्त किया गया जो 0.1 के रूप में प्राप्त हुआ। लेकिन, जब जल के शुल्क और कमांड में  उपलब्ध करवाए गए जल पर विचार किया गया तो  वित्तीय क्षमता की लागत की गणना ₹0.39 लाख के रूप में की गई। ऊपर की गई गणना हेतु खरीफ मौसम के लिए जल के मूल्य ₹ 250 / हेक्टेयर (स्रोत: राजपत्र संख्या 494 दिनांक 05.04.2002) और ₹ 4 लाख (स्रोत: जल संसाधन विभाग, ओडिशा सरकार) को उपयोग में लिया गया। खरीफ मौसम के दौरान किसानों द्वारा विभिन्न फसलों में उपयोग में ली गई विभिन्न सतही सिंचाई विधियों के तहत सिंचाई जल प्रयोग दक्षता और वितरण दक्षता क्रमश: 55 से 75% और 65 से 80% के बीच प्राप्त हुई

नहरी सिंचाई प्रणाली के खराब प्रदर्शन के कारण सम्पूर्ण सिंचाई पद्धति में सुधार के लिये कमांड क्षेत्र में ऊपरी मध्य और अंतिम छोर पर पाइप वहन आधारित दबाव सिंचाई पद्धति की सुविधा का निर्माण किया गया।  इसको आगे चित्र एवं फोटो में दिखाया गया है। यह योजना इसलिए बनाई गई थी ताकि मानसून के मौसम के दौरान माइनर नहर के निकट कृषि खेत के पास मौजूद सहायक टैंक से जल को उपयोग में लिया जा सके। इस प्रणाली का हाइड्रोलिक प्रदर्शन 7% के भिन्नता गुणांक के साथ अच्छा पाया गया। किसानों के खेत पर ड्रिप सिंचाई प्रणाली को 96% की जल वितरण दक्षता और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को 87% की वितरण एकरूपता के साथ संतोषजनक पाया गया। कुल मिलाकर शुरुआती अध्ययन से यह संकेत प्राप्त हुआ कि वर्तमान के दौरान प्राप्त विभिन्न फसलों में 35-60% सिचाई दक्षताको ड्रिप एवं स्पिकलर सिंचाई प्रणालियों के उपयोग द्वारा क्रमशः 90% और 80% तक बढ़ाया जा सकता है

माइनर नहर के ऊपरी छोर के कमांड क्षेत्र में पीवीसी पाइप वहन के माध्यम से विकसित सिंचाई बुनियादी ढाँचे के कारण मूँगफली और अलसी / तिल की फसलों में 17% कम सिंचाई जल प्रयोग के साथ उपज में 8-14% तक वृद्धि हुई। नतीजतन चैनल वहन आधारित सिंचाई प्रणाली की तुलना में इस सिंचाई विधि से जल की उत्पादकता में 30-38% तक वृद्धि हुई इसी प्रकार माइनर नहर के मध्य छोर के कमांड क्षेत्र में चैनल वहन प्रणाली की तुलना में स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली से मूँगफली और अलसी/तिल / तिल की फसलों में सिंचाई करने से/  इन फसलों की पैदावार में 28-31% तक की बढ़ोतरी प्राप्त हुई। इन्ही फसलों में 22- 28% तक कम सिंचाई जल की खपत के कारण जल उत्पादकता में 70-78% तक वृद्धि हुई। यदि ड्रिप सिंचाई प्रणाली को सहायक जल संचयन प्रणाली से जोड़ा जाये तो माइनर नहर के अंतिम छोर के कमांड क्षेत्र में रबी के मौसम के दौरान सब्जियों की फसलों को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इस क्षेत्र में सब्जियों की फसलों जैसे परवल एवं करेला की खेती के कारण 30-33% कम जल के प्रयोग के साथ इनकी उपज में 32-35% तक की वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप 89-104% तक की बढ़ी हुई जल उत्पादकता प्राप्त हुई (तालिका 6 क.ख एवं गा) 

धान की खेती आधारित नहर के कमांड क्षेत्रों में संचित जल एवं इस सरक्षित जल कादबाव सिंचाई प्रणालियों जैसे पाइप वहन स्प्रिंकलर और ड्रिप आदि का उपयोग फसलों की उपज और जल की उत्पादकता को बढ़ाने हेतु संभावित महत्त्वपूर्ण विकल्प है। कृषि में कम सिंचाई जल के साथ फसलों की उपज और लाभप्रदता को बढ़ाने के लिए इन महत्त्वपूर्ण सिंचाई प्रणालियों को नहर के कमांड क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर क्रियान्वितकिया जा सकता है। इन प्रणालियों के उपयोग द्वारा बचाये गए जल का अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता।। या इस बचाये गए जल की मात्रा से और अधिक क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई की जा सकती है

संदर्भ

  1. एनोनीमस, 2002 भारत में सिंचाई प्रणालियों की बेंचमार्किंग के लिएदिशानिर्देश इंडियन नेशनल कमिटी ऑनइरिगेशन एंड ड्रेनेज (INCID), नई दिल्ली,पृष्ठ 1-26  ।
  2. धवन, वी. 2017. भारत में जल और कृषि ग्लोबल फोरम फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर ।
  3. GFFA), जर्मन एशिया-पैसिफिक बिजनेस एसोसिएशन के दौरान दक्षिण एशिया विशेषज्ञ पैनल के लिए बेकग्राउंड पेपर पृष्ठ(1-27)  ।
  4. माइकल, एम. 1978. इरिगेसन थ्योरी एंड प्रेक्टिस विकास पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, पृष्ठ 801 ।
  5. शिवानाप्पन, आर.के. 1994. भारत में सूक्ष्म सिंचाई की संभावनाएं, इरिगेसन एंड ड्रेनेज सिस्टम, 8 (1): 49-58
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