पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। यही वजह है कि प्राचीन काल में बस्तियाँ उसी स्थान पर बसती थीं, जहाँ पर्याप्त पानी होता था। ऐसे में यह साफ है कि पानी के बिना खुशहाली नहीं आ सकती है। किसान खुशहाल होंगे तो देश खुशहाल होगा। किसानों की खुशहाली के लिये सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार ने किसानों को समुचित सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। यह खुशहाली प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरिए मिल रही है। इस योजना का उद्देश्य सिर्फ सुनिश्चित सिंचाई के लिये स्रोतों का सृजन करना नहीं है बल्कि ‘जल संचय’ और ‘जल सिंचन’ के माध्यम से सूक्ष्म-स्तर पर वर्षाजल का उपयोग करके संरक्षित सिंचाई का भी सृजन करना है। एक तरफ गाँवों में तालाब खुदवाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ स्प्रिंकलर पद्धति से भी बूँद-बूँद सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।
देश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में केन्द्र सरकार की ओर से लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना इसी दिशा में एक प्रयास है। 2 जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने इसे मंजूरी दी। इस योजना में केन्द्र 75 प्रतिशत अनुदान देगा और 25 प्रतिशत खर्च राज्यों के जिम्मे होगा। जबकि पूर्वोत्तर क्षेत्र और पर्वतीय राज्यों में केन्द्र का अनुदान 90 प्रतिशत तक होगा। इससे जहाँ किसानों को समुचित सिंचाई सुविधा मिल सकेगी वहीं देश के लिये चुनौती बनते जा रहे जलस्तर को भी बढ़ाया जा सकेगा क्योंकि जलस्तर को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। पानी का लेवल लगातार नीचे जा रहा है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एक तरह से कम पानी का दोहन करने और ज्यादा-से-ज्यादा पानी स्टोर कर भूजल को रिचार्ज करने का उपक्रम है। इसमें तीन योजनाओं- त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, एकीकृत जलग्रहण प्रबन्धन कार्यक्रम और खेत में जल प्रबन्धन योजनाओं का विलय किया गया है और नई योजना के रूप में पीएमकेएसवाई बनाई गई है। इस योजना में तीन मंत्रालयों-जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा कृषि मंत्रालय के विभिन्न जल संरक्षण, संचयन एवं भूजल संवर्धन तथा जल वितरण सम्बन्धित कार्यों को समेकित किया गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के जरिए कम लागत में किसानों को सँवारने की कोशिश की गई, जिसका नतीजा रहा कि पिछले साल कृषि विकास दर बढ़कर 4.1 प्रतिशत हो गई है। सरकार ने ‘हर खेत को पानी’ उपलब्ध कराने का लक्ष्य पाने के लिये सम्पूर्ण सिंचाई आपूर्ति शृंखला शुरू की है। वर्ष 2015-16 से 2019-20 के दौरान 50,000 करोड़ रुपए निवेश कर सम्पूर्ण सिंचाई आपूर्ति शृंखला, जल संसाधन, वितरण नेटवर्क और खेत-स्तरीय अनुप्रयोग समाधान विकसित करके ‘हर खेत को पानी’ उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से सूखे की समस्या से स्थायी तौर पर निजात मिलेगी। यही वजह है कि इस योजना में तीन प्रमुख मंत्रालयों को शामिल किया गया है। इसकी अगुवाई जल संसाधन मंत्रालय कर रहा है।
भारत में विश्व की आबादी की 17 प्रतिशत जनसंख्या तथा 11.3 प्रतिशत पशुधन निवास करते हैं, जबकि अपने देश में विश्व का मात्र 4 प्रतिशत जल संसाधन उपलब्ध है। ऐसे में हमारे समक्ष पशुधन और मानव को पेयजल उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है। इतना ही नहीं यदि हम देश में मौजूद कृषि भूमि का आँकड़ा देखें तो देश में कुल 20.08 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है जिसमें से मात्र 9.58 करोड़ हेक्टेयर भूमि सिंचित है। यह कुल क्षेत्रफल का केवल 48 प्रतिशत है। इसलिये 52 फीसदी असिंचित कृषि भूमि में उन्नत कृषि अपनाने के लिये आवश्यक जल की आपूर्ति कराना भी दूसरी बड़ी चुनौती है।
इस चुनौती से निबटने के लिये समुचित जल प्रबन्धन करना होगा। यह प्रबन्धन ही प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना है। इसके जरिए इस चुनौती से मुकाबला करने की रणनीति बनाई गई है। वास्तव में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एक समग्र योजना है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा फायदा सूखा-प्रभावित इलाकों को मिलेगा। केन्द्र सरकार सूखे की जद में रहने वाले इलाकों पर विशेष तौर पर ध्यान दे रही है।
पिछले दो वर्षों में दस राज्यों में गम्भीर सूखा पड़ा, जिससे कृषि क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा। वर्षा-आधारित कृषि भूमि के अतिरिक्त छह लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के अन्तर्गत लाने के लिये योजना के कार्यान्वयन के पहले एक वर्ष में पाँच हजार तीन सौ करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। दरअसल सिंचाई क्षेत्र में छह दशकों के निवेश के बावजूद सुनिश्चित सिंचाई के तहत 14.2 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि में से केवल 45 प्रतिशत ही कवर हो पाई है।
ऐसे में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) हर खेत को पानी देने पर ध्यान केन्द्रित करने की दिशा में एक सही कदम है। इसके अन्तर्गत मूल स्थान पर जल संरक्षण के जरिए किफायती लागत और बाँध-आधारित बड़ी परियोजनाओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इस योजना में जन-प्रतिनिधियों की भूमिका भी शामिल की गई है। जिला सिंचाई योजना तैयार करते समय संसद सदस्य एवं स्थानीय विधायक के सुझाव लिये जाएँगे और जिला सिंचाई परियोजना में सम्मिलित किया जाएगा। इस जिला-स्तरीय परियोजना को अन्तिम रूप देते समय स्थानीय संसद सदस्य के उपयोगी सुझावों को प्राथमिकता दी जाएगी।
इस योजना में ग्रामीण विकास मंत्रालय मुख्य रूप से मृदा एवं जल संरक्षण हेतु छोटे तालाब, जल संचयन संरचना के साथ-साथ छोटे बाँधों तथा समोच्च मेढ़ निर्माण आदि कार्यों का क्रियान्वयन राज्य सरकार के माध्यम से समेकित पनधरा प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत करेगा। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय संरक्षित जल को खेत तक पहुँचाने के लिये नाली इत्यादि का विकास करेगा। साथ ही त्वरित सिंचाई लाभ सम्बन्धी कार्यक्रम समयबद्ध तरीके से पूर्ण करेगा। इसके अन्तर्गत निम्न-स्तर पर जल निकाय सृजन, नदियों में लिफ्ट सिंचाई योजनाएँ जल-वितरण नेटवर्क तथा उपलब्ध जलस्रोतों की मरम्मत, पुनर्भण्डारण का कार्य करेगा।
कृषि मंत्रालय, कृषि एवं सहकरिता विभाग, वर्षाजल संरक्षण, जल बहाव नियंत्रण कार्य, जल उपलब्धता के अनुसार फसल उत्पादन, कृषि वानिकी, चारागाह विकास के साथ-साथ कृषि जीविकोपार्जन के विभिन्न कार्यक्रमों को भी चलाएगा। जल प्रयोग क्षमता बढ़ाने के लिये सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत ड्रिप स्प्रिंकलर, रेनगन आदि का उपयोग विभिन्न फसलों की सिंचाई के लिये किया जाएगा।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। इसके लिये वर्ष 2015-16 में सूखा निरोधन, प्रसार कार्य एवं जिला सिंचाई योजना बनाने के लिये 555.5 करोड़ रुपए जारी किये गए। इसके अन्तर्गत 175 करोड़ रुपए मनरेगा के अन्तर्गत जल संरक्षण के लिये पक्के निर्माण कार्यों में सामग्री घटक को पूरित करने एवं 259 करोड़ रुपए देश के 219 बारम्बार सूखा-प्रभावित जिलों में तथा केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा चिन्हित अति-दोहित 1071 ब्लॉकों में भूजल पुनर्भरण (रिचार्ज), सूखा शमन तथा सूक्ष्म जल भण्डारण सृजन के लिये राज्यों को जारी किये गए।
इन कार्यों से एक तरफ जल संरक्षण की दिशा में काम हुआ तो दूसरी तरफ ग्रामीण इलाके में रोजगार को भी बढ़ावा मिला। इसी तरह वर्ष 2016-17 में सूखा निरोधन उपायों के लिये 520.90 करोड़ रुपए की राशि राज्यों को जारी की गई। वर्ष 2016-17 के दौरान पीएमकेएसवाई को ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ के लिये 1991.17 करोड़ रुपए जारी किये गए जो वर्ष 2015-16 में जारी 1,556.73 करोड़ रुपए की तुलना में लगभग 28 प्रतिशत अधिक हैं।
वर्ष 2015-16 में सूक्ष्म सिंचाई के अधीन 5.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र लाया गया था। वर्ष 2016-17 में 8.39 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के तहत लाया गया, जोकि अब तक का सर्वाधिक क्षेत्र है। वर्ष 2017-18 के लिये ‘प्रति बूँद अधिक फसल’ के अन्तर्गत 3400 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है। सूक्ष्म सिंचाई के तहत वर्ष 2017-18 में 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को इसमें जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) तथा त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के तहत चिन्हित 99 परियोजनाएँ निर्धारित की गई हैं। इन्हें वर्ष 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इन परियोजनाओं में से 23 परियोजनाओं को प्राथमिकता के तहत 2016-17 तक एवं 31 परियोजनाओं को 2017-18 तक और शेष 45 परियोजनाओं को दिसम्बर 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पीएमकेएसवाई तथा एआईबीपी के अन्तर्गत नाबार्ड द्वारा 3,274 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं।
नाबार्ड ने आन्ध्र प्रदेश की पोलावरम सिंचाई परियोजना के लिये 1,981 करोड़ रुपए, महाराष्ट्र को 830 करोड़ रुपए तथा गुजरात को 463 करोड़ रुपए विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं के लिये वित्तीय सहायता के रूप में जारी किये हैं। एआईबीपी की 99 परियोजनाओं में से 26 परियोजनाएँ महाराष्ट्र में 8 आन्ध्र प्रदेश और एक गुजरात में है। महाराष्ट्र की सात परियोजनाएँ प्राथमिकता श्रेणी की परियोजनाएँ हैं। शेष 19 परियोजनाएँ प्राथमिकता 3 श्रेणी की हैं। आन्ध्र प्रदेश में सभी 8 परियोजनाएँ प्राथमिकता-2 श्रेणी की हैं। गुजरात में एकमात्र परियोजना सरदार सरोवर है और यह प्राथमिकता-3 श्रेणी की परियोजना है। इस परियोजना के 2018 के अन्त तक पूरा होने की सम्भावना है और इसकी लक्षित सिंचाई क्षमता 1792 हजार हेक्टेयर क्षेत्र है।
इस योजना की निगरानी के लिये टॉप टू बॉटम व्यवस्था बनाई गई है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सभी सम्बन्धित मंत्रालयों के मंत्रियों के साथ एक अन्तर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संचालन समिति (एनएससी) बनाई गई है। कार्यक्रम के कार्यान्वयन संसाधनों के आवंटन, अन्तर-मंत्रालयी समन्वय, निगरानी और प्रदर्शन के आकलन के लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी) है। राज्य के स्तर पर योजना का कार्यान्वयन सम्बन्धित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य-स्तरीय मंजूरी देने वाली समिति (एसएलएससी) करती है। इस समिति के पास परियोजना को मंजूरी देने और योजना की प्रगति की निगरानी करने का पूरा अधिकार है। कार्यक्रम को और बेहतर ढंग से लागू करने के लिये जिला-स्तर पर जिला-स्तरीय समिति भी होगी।
योजना के तहत कृषि-जलवायु की दशाओं और पानी की उपलब्धता के आधार पर जिला और राज्य-स्तरीय योजनाएँ बनाई जाती हैं। योजना में केन्द्र 75 प्रतिशत अनुदान देगा और 25 प्रतिशत खर्च राज्यों के जिम्मे होगा। पूर्वोत्तर क्षेत्र और पर्वतीय राज्यों में केन्द्र का अनुदान 90 प्रतिशत तक होगा।
केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने पीएमकेएसवाई परियोजना की निगरानी के लिये एमआईएस लांच किया। एमआईएस से पीएमकेएसवाई परियोजनाओं की शीघ्र निगरानी हो सकेगी। नई एमआईएस के अन्तर्गत परियोजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति की जानकारी के लिये परियोजनावार नोडल अधिकारी नामित किये गए हैं। एमआईएस को पब्लिक डोमेन में रखा गया है। एमआईएस में परियोजनावार प्राथमिकता अनुसार/राज्यवार भौतिक/वित्तीय ब्यौरे/टेबल/ग्राफ रूप में उपलब्ध हैं। इसमें तिमाही तौर पर परियोजना की प्रगति की तुलना की जा सकती है और परियोजना को प्रभावित करने वाली बाधाओं का विस्तृत वर्णन भी है।
इसके जरिए जिलास्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक बैठकें करके रणनीति बनाना। किसानों को स्थिति से अवगत कराना और उनकी जरूरतों को समझना।
देश भर में तमाम जमीनें पानी के अभाव में बंजर पड़ी हैं। ऐसी जमीनों को जिला-स्तर पर चिन्हित किया जाएगा। फिर उनका चयन करके उन्हें खेती योग्य बनाया जाएगा। मसलन, उसमें सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जाएगा। यदि मिट्टी खेती योग्य नहीं है तो उसे उपचारित करके खेती योग्य बनाया जाएगा।
सिंचाई के दौरान पानी का एक बड़ा हिस्सा निरर्थक रहता है। वह आस-पास के गड्ढों में भरकर जमीन को अनुपजाऊ भी बनाता है। लगातार पानी भरा होने की वजह से मिट्टी की अम्लीयता बढ़ती है। ऐसे में इस योजना के तहत पानी का अपव्यय रोकने की दिशा में भी काम किया जाएगा। कम पानी में अधिक मुनाफा कैसे लिया जा सकता है, इस पर जिला कमेटी अपनी रणनीति बनाएगी। कम-से-कम पानी का कैसे उपयोग किया जाये, इसके बारे में किसानों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा। ताकि पानी के अपव्यय को कम किया जा सके।
इसके जरिए सही सिंचाई और पानी को बचाने की तकनीक को अपनाया जाएगा। इस बारे में किसानों को ट्रेनिंग भी दी जाएगी। पानी की हर बूँद कीमती है। ऐसे में किसान कैसे हर बूँद को अपनी फसल में प्रयोग कर सकते हैं इसे समझाया जाएगा।
इसके जरिए हर खेत में पानी पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। उदाहरण के लिये नहरों से खेत तक पानी नहीं पहुँच पाता है। कुछ खेत पानी में डूब जाते हैं तो कुछ सूखे रह जाते हैं। इस समस्या का निदान किया जाएगा। सुनिश्चित सिंचाई (हर खेत को पानी) के तहत कृषि भूमि को बढ़ाया जाएगा। इसी तरह उचित प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों के माध्यम से जल के बेहतर उपयोग के लिये जल संसाधन का समेकन, वितरण और इसका दक्ष उपयोग किया जाएगा।
परिशुद्ध सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियों (अधिक फसल प्रति बूँद) के अपनाने में वृद्धि की जाएगी। जलभूत भराव में वृद्धि और सतत जल-संरक्षण पद्धतियों की शुरुआत की जाएगी। प्रभावी जल परिवहन और फार्म के भीतर क्षेत्र अनुप्रयोग उपकरणों यथा भूमिगत पाइप प्रणाली, पीवोट, रेनगन और अन्य अनुप्रयोग उपकरणों आदि को प्रोत्साहित किया जाएगा।
खेती में मृदा एवं जल संरक्षण जरूरी है। पानी के अधिक बहाव की वजह से मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है। इससे उपजाऊ मिट्टी बहकर नदियों तक चली जाती है। इसके जरिए एक तरह मृदा को बचाया जाएगा, दूसरी तरफ, जल संरक्षण की दिशा में भी काम किया जाएगा। इसी तरह भूजल के पुनर्भराव, प्रवाह बढ़ाना, आजीविका विकल्प प्रदान करना और अन्य एनआरएम गतिविधियों की ओर पन्नधारा दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए वर्षा सिंचित क्षेत्रों के समेकित विकास को सुनिश्चित करना भी योजना का लक्ष्य है।
जल प्रबन्धन और किसानों के लिये फसल संयोजन तथा जमीनी स्तर के क्षेत्रकर्मियों से सम्बन्धित विस्तार गतिविधियों को प्रोत्साहित करना। इसके जरिए नए जलस्रोतों का निर्माण, जीर्ण जलस्रोतों का पुनर्स्थापन और पुनरुद्धार, ग्रामीण-स्तर पर परम्परागत जल तालाबों की भराव क्षमता बढ़ाई जाएगी।
पेरी शहरी कृषि के लिये उपचारित नगरपालिका अपशिष्ट जल के पुनरुपयोग की व्यवहार्यता खोजी जाएगी।
सिंचाई में महत्त्वपूर्ण निजी निवेश को आकर्षित करना। यह अवधि में कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाएगा और फार्म आय में वृद्धि करेगा। वैज्ञानिक आर्द्रता संरक्षण की वृद्धि करना और भूजल पुनर्भरण सुधार के लिये आवाह नियंत्रण उपाय करना ताकि शैलों ट्यूब/डगवैल के माध्यम से पुनर्भरित जल तक पहुँच के लिये किसानों हेतु अवसरों का निर्माण किया जा सके।
राष्ट्रीय परियोजनाओं सहित जारी मुख्य और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से पूर्ण करने पर फोकस करना।
लघु सिंचाई, सतही और भूजल दोनों के माध्यम से नए जलस्रोतों का जल संग्रहणों की मरम्मत, सुधार और नवीकरण, परम्परागत स्रोतों की वहन क्षमता को बढ़ाना। जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना; कमांड एरिया विकास करना; खेत से स्रोत तक वितरण नेटवर्क का सुदृढ़ीकरण और मजबूत करना। क्षेत्रों में जहाँ यह प्रचुर मात्रा में हो, भूजल विकास करना ताकि उच्चतम वर्षा मौसम के दौरान आवाह/बाढ़ जल का भण्डारण करने के लिये तालाब का निर्माण हो सके। उपलब्ध संसाधनों जिनकी क्षमता का पूर्ण दोहन नहीं हुआ है, से लाभ उठाने के लिये जल तालाबों के लिये जल प्रबन्धन और वितरण प्रणाली में सुधार। कम-से-कम 10 प्रतिशत कमांड एरिया सूक्ष्म परिशुद्ध सिंचाई के तहत कवर किया जाना। विभिन्न स्थानों के स्रोतों से जहाँ कम पानी के अधिक क्षेत्र आस-पास हो, में जल विचलन, सिंचाई कमांड के निरपेक्ष में आईडब्ल्यूएमपी और मनरेगा के अलावा आवश्यकता को पूरा करने के लिये निचाई पर स्थित जल निकायों नदी से लिफ्ट सिंचाई की व्यवस्था करना। परम्परागत जल-भण्डारण प्रणालियों जैसे जल मन्दिर आदि का व्यवहार्य स्थानों पर निर्माण और पुनरुद्धार करना शामिल है।
इसमें कार्यक्रम प्रबन्धन, राज्यों व जिला सिंचाई योजना की तैयारी, वार्षिक कार्ययोजना का अनुमोदन, मूल्यांकन आदि शामिल है। प्रभावी जल परिवहन और फार्म के भीतर क्षेत्र अनुप्रयोग उपकरणों यथा भूमिगत पाइप प्रणाली, पीवोट, रेनगन (जल सिंचन) का प्रोत्साहन किया जाएगा। पानी ले जाने वाले पाइपों, भूमिगत पाइप प्रणाली सहित पानी खींचने वाले उपकरणों जैसे डीजल, इलेक्ट्रिक, सौर पम्पसेट का इन्तजाम करना शामिल हैं। इसी तरह वर्षा और न्यूनतम सिंचाई आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण करना भी शामिल है।
क्षमता निर्माण, न्यून लागत प्रकाशनों सहित प्रशिक्षण और जागरुकता अभियान, सामुदायिक सिंचाई सहित तकनीकी, कृषि विज्ञान और प्रबन्धन प्रणालियों के माध्यम से क्षमता उपयोग जलस्रोत को बढ़ावा देने के लिये पीको प्रोजेक्टर और कम लागत फिल्मों का उपयोग कर लोगों को ट्रेनिंग देना भी शामिल है।
पनधारा आधारित आवाह जल का प्रभावी प्रबन्धन एवं उन्नत मृदा और आर्द्रता संरक्षण गतिविधियों जैसे रिज क्षेत्र उपचार, निकासी लाइन उपचार, वर्षाजल संचयन, आर्द्रता संरक्षण एवं अन्य सम्बद्ध गतिविधियाँ शामिल हैं। परम्परागत जल तालाबों के नवीकरण सहित चिन्हित पिछड़े वर्षा सिंचित ब्लॉकों में पूरी क्षमता हेतु जलस्रोतों के निर्माण के लिये मनरेगा के साथ अभिसरण आदि।
जिला सिंचाई योजनाए पीएमकेएसवाई की योजना बनाने और कार्यान्वयन के दौरान अन्य जारी योजनाओं (राज्य और केन्द्रीय दोनों) जैसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ), सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीएलएडी) योजना, विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास (एमएलएएलएडी) योजना, स्थानीय निकाय निधियों आदि के रूबरू राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिये पहले से तैयार जिला कृषि योजना (डीएपी) पर विचार करने के पश्चात डीआईपी सिंचाई अवसंरचना में कमी (गैप्स) को चिन्हित करती है।
प्रत्येक जिले को जिला सिंचाई योजना की तैयारी के लिये एक बार की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। पीएमकेएसवाई की शुरुआत से तीन महीने की अवधि के भीतर डीआईपी और एसआईपी को अन्तिम रूप दिया जाता है। एसआईपी की तैयारी और व्यापक सिंचाई विकास के लिये राज्य सरकारों को परामर्श प्रदान करने में राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) का सहयोग होगा। जिला सिंचाई योजना तैयार करते समय संसद सदस्य, स्थानीय-विधायक के सुझाव लिये जाएँगे और जिला सिंचाई परियोजना में सम्मिलित किया जाएगा। इस जिला-स्तरीय परियोजना को अन्तिम रूप देते समय स्थानीय संसद सदस्य के उपयोगी सुझावों को प्राथमिकता दी जाएगी।
अन्तर विभागीय कार्यसमूह (आईडीडब्ल्यूजी) में कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, जल संसाधन/सिंचाई, कमांड क्षेत्र विकास, पनधारा विकास, मृदा संरक्षण, पर्यावरण और वन, भूजल संसाधन, पेयजल, नगर योजना, औद्योगिक नीति, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित विभाग और जल क्षेत्र से सम्बन्धित सभी विभागों के लाइन विभागों के सचिव शामिल हैं। आईडीडब्ल्यूजी कृषि उत्पादन आयुक्त/विकास आयुक्त की अध्यक्षता में होगा। जिन विभागों में अलग से सचिव नहीं हैं, वहाँ निदेशक आईडीडब्ल्यूजी के सदस्यों के रूप में कार्य करेंगे। निदेशक (कृषि) मुख्य अभियन्ता (जल संसाधन/सिंचाई) आईडीडब्ल्यूजी के सह-संयोजक के रूप में कार्य करेगा।
राज्य के भीतर स्कीम कार्यकलापों के दैनिक समन्वय और प्रबन्धन के लिये आईडीडब्ल्यूजी उत्तरदायी होगा। आईडीडब्ल्यूजी प्रत्येक जल बूँद के बेहतर सम्भावित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये समग्र जलचक्र का व्यापक एवं समग्र दृष्टिकोण के लिये जल बचाव/उपयोग/रिसाइक्लिंग/संरक्षण में लगे सभी मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों/अनुसन्धान/वित्तीय संस्थानों को एक मंच पर लाने के लिये समन्वय एजेंसी होगी। यह दिशा-निर्देशों के साथ अनुरूपता में परियोजना प्रस्तावों/डीपीआर की छँटाई को प्राथमिकता देगा और यह कि वे तकनीकी मानकों और वित्तीय मानदण्डों के साथ अनुरूप होने के बावजूद यह एसआईपी/डीआईपी से निर्गत होंगे।
किसानों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ देने के लिये रजिस्ट्रेशन करना होता है। इससे योजना में किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाईश अपने आप खत्म हो जाती है। इस योजना के जरिए एक किसान को सीधे तौर पर एक ही बार फायदा दिया जाता है। वह अन्य सामूहिक योजनाओं के जरिए अलग-अलग फायदा ले सकता है।
उदाहरण के तौर पर यदि किसी किसान को स्प्रिंकलर योजना में लाभ लेना है तो उसे इस साल उद्यान विभाग प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर वन ड्रॉप मोर क्रॉप के जरिए फायदा मिलेगा। इस योजना से खेतों में स्प्रिंकलर व ड्रिप का इस्तेमाल किया जाएगा। बागवानी, कृषि एवं गन्ना फसल में अधिक दूरी एवं कम दूरी वाली फसलों के लिये ड्रिप सिंचाई पद्धति को लगाकर उन्नतिशील उत्पादन एवं जल संचयन किया जा सकेगा। इसी तरह मटर, गाजर, मूली सहित विभिन्न प्रकार की पत्तेदार सब्जियों के लिये सेमी परमानेंट के लिये स्प्रिंकलर या रेनगन का प्रबन्ध किया जाएगा। इस सिंचाई पद्धति को अपनाकर 40.50 प्रतिशत पानी की बचत के साथ ही 35.40 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
किसानों को रजिस्ट्रेशन के लिये योजना के पोर्टल पर जाना होगा। विभाग की वेबसाइट पर क्लिक करके अपना पंजीयन करें। http://upagriculture.com/pm_sichai_yojna पर जाकर पंजीकरण कर सकते हैं।
पंजीकरण हेतु किसान के पहचान के लिये आधार कार्ड, भूमि की पहचान हेतु खतौनी एवं अनुदान की धनराशि के अन्तरण हेतु बैंक पासबुक के प्रथम पृष्ठ की फोटोकापी लगाना अनिवार्य है। प्रदेश में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली स्थापित करने वाली पंजीकृत निर्माता फर्मों में से किसी भी फर्म से कृषक अपनी इच्छानुसार स्प्रिंकलर खरीद सकते हैं। निर्माता फर्मों के स्वयं मूल्य प्रणाली के आधार पर भारत सरकार द्वारा निर्धारित इकाई लागत के सापेक्ष जनपद-स्तरीय समिति द्वारा भौतिक सत्यापन के उपरान्त अनुदान की धनराशि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर द्वारा सीधे लाभार्थी के खाते में अन्तरित की जाएगी।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से मिलने वाले लाभ के लिये जिला कमेटी बाकायदा कैटेगरी तैयार करती है। इस योजना का लाभ सभी वर्ग के किसानों को दिया जाता है। योजना का लाभ प्राप्त करने हेतु इच्छुक कृषक के पास खुद की भूमि एवं जलस्रोत उपलब्ध होना चाहिए। ऐसे लाभार्थियों को भी योजना का लाभ अनुमन्य होगा जो संविदा खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करते हैं। इसमें उन किसानों को भी फायदा मिलेगा जो सात साल के लिये लीज एग्रीमेंट के आधार पर बागवानी या खेती करते हैं। लाभार्थियों को अनुदान के साधन या उनके ऋण के स्रोत से भेजे गए धन की राशि देने में सक्षम होगा।
योजनान्तर्गत लाभार्थी कृषकों का दो दिवसीय प्रशिक्षण, प्रदेश से बाहर कृषक भ्रमण एवं मंडल स्तर पर कार्यशाला गोष्ठी का आयोजन कर इस विधा के अंगीकरण हेतु लाभार्थी कृषकों के लिये तकनीकी जानकारी एवं कौशल अभिवृद्धि की सुविधा उपलब्ध है।
चंद्रभान यादव
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। कृषि एवं किसानों के मुद्दे पर नियमित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कर रहे हैं।)
ईमेल : chandrabhan0502@gmail.com
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