भारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती माँग के कारण सन् 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84% से घटकर 74% तक होने का अनुमान है। इसलिए सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसलों की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है। सिंचाई जल का सही समय प उचित मात्रा में उपयोग न केवल फसलों द्वारा पानी उपयोग की उच्च दक्षता को सुनिश्चित करता है बल्कि पोषक तत्वों के निक्षालन (Leaching) का भी कम करता है। परिणाम स्वरूप मिट्टी में बेहतर वायु संचरण से फसलों की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार होता है।
किसी समय पर फसल को कितना मृदा जल उपलब्ध है तथा कब और कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी के लिए मृदा नमी का आंकलन बहुत उपयोगी है। सिंचाई में मृदा नमी आंकड़ों का उपयोग जल और ऊर्जा के संरक्षण, सतही और भूमिगत जल के प्रदूषण को कम करने तथा फसलों की इष्टतम पैदावार बनाए रखने में भी सहायक है। मृदा नमी को मापने की बहुत सारी विधियाँ व उपकरण उपलब्ध हैं जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य मृदा नमी के मापन को विभिन्न कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
सारणी 1 विभिन्न मृदाओं के लिये सिंचाई की गहराई का विवरण | |
मृदा का प्रकार | सिंचाई जल (मिमी) प्रति मीटर गहराई (मृदा नमी की 50 प्रतिशत उपलब्धता पर) |
रेतीली | 25 से 50 |
रेतीली दोमट | 45 से 80 |
मृत्तिका दोमट | 80 से 120 |
मृत्तिका | 100 से 140 |
सारणी 2 - मृदा जल की उपलब्धता के अनुसार मृदा तनाव रीडिंग | |||
मृदा के प्रकार | क्षेत्रजल धारण क्षमता | मृदा चूषण मृदा नमी की उपयुक्त सीमा | सेन्टीबार 50 प्रतिशत मृदा नमी पर (सिंचाई आवश्यक) |
रेतीली दोमट | 10-15 | 30-50 | 45-60 |
दोमट/गाद दोमट | 10-20 | 35-55 | 50-70 |
मृत्तिका दोमट/ मृत्तिका | 15-20 | 40-60 | 60-100 |