कृषि

विजय जड़धारी को मिला 'हिमालय प्रहरी सम्मान'

एक दुर्लभ मौका था जब सम्मान देने वाले और लेने वाले 'शख्स दोनों की ऊंचाई और गहराई की थाह हॉल में मौजूद लोगों के दिल में बहुत गहरे से बैठी थी। सम्मानों के इस दौर में यह सम्मान समारोह वाकई दुर्लभ था, जहां सम्मान देने वाला, लेने वाला और संस्तुति करने वाला एक से बढ़कर एक हो। सुंदर लाल बहुगुणा जी की स्मृति में विमला बहुगुणा-मेघा पाटेकर - विजय जड़धारी की त्रिमूर्ति ने इस पल को हमेशा के लिए यादगार बना दिया, क्योंकि एक कर्मठ, समर्पित, सच्चे जन नायक का सम्मान उसी कद के दूसरे जननायक द्वारा होना बड़ी बात है।

Author : कुसुम रावत

टिहरी जनपद की रमणीय हरी-भरी रौतियाली हेंवलघाटी को एक बार फिर से 21 मई 2023 की तपती दोपहरी को अपने पर इतराने इठलाने का मौका मिला, जब हेवलघाटी के चिपको आंदोलन के पुरोधा जमनालाल बजाज पुरूस्कार विजेता सर्वोदयी धूम सिंह नेगी जी के बाद उनके ही कर्मठ शिष्य चिपको कार्यकर्त्ता और विश्व विख्यात बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता सर्वोदयी विजय जड़धारी को 'हिमालय प्रहरी सम्मान 2023' से नवाजा गया। सर्वोदयी पद्मविभूषित पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा जी की स्मृति में उनकी धर्मपत्नी सर्वोदयी विमला बहुगुणा जी द्वारा हिमालय प्रहरी सम्मान 2022 में शुरू किया गया। पर्यावरण संरक्षण हेतु विशिष्ट योगदान के लिए यह सम्मान किसी जमीनी नायक को हर साल देने की परिकल्पना की गई है। आंदोलनों की जननी हेवलघाटी के लिए गौरव की बात है कि पहला हिमालय प्रहरी सम्मान 2022 में धूमसिंह नेगी जी को मिला। हिमालय प्रहरी सम्मान 2023 सुंदरलाल बहुगुणा जी के ही साथ विभिन्न आंदोलनों में दशकों सक्रिय रहने वाले हेंवलघाटी  के विजय जड़धारी को सम्मानित करके खुद भी सम्मानित हुआ है। हेंवलघाटी का वाशिंदा होने के नाते मैं आदरणीय विमला दीदी की आभारी हूँ कि उन्होंने अपनी अनुभवी आँखों के सामने ही एक ऐसे जीवंत जमीनी नायक को सम्मानित कर खुद सम्मान बटोरा है, जिसने उनकी ही अगुवाई में दशकों तक जंगल बचाने से लेकर, टिहरी बांध, दलित उत्थान, मद्य निषेध सहित कई सामाजिक जन क्रांतियों में अपने को खपा सा दिया है। 

देहरादून के टाऊन हॉल में जुझारू और सौम्य स्वभाव के विजय जड़धारी को जब देश-दुनिया में कमतरों और हाशिए पर रहने वाले लोगों की बेहद खास और बुलंद आवाज 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' की अगुवा मेधा पाटेकर जी ने सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच गांधी जी के ही खादी के सूत से बनी माला और शॉल पहनाकर सम्मानित किया तो मैं निश्चित तौर पर कह सकती हूँ बादलों के बीच कहीं जरूर सुंदर लाल बहुगुणा जी की आत्मा अपने जुझारू और काबिल साथी को सम्मानित होते देख बेहद खुश हुई होगी। यह एक खास मौका था जब मेधा पाटेकर के हाथों विजय जड़धारी का सम्मान हुआ। मुख्य अतिथि सौम्य व संवेदनशील मेधा पाटेकर और विनम्र हिमालय प्रहरी विजय जड़धारी दोनों ही झुकी झुकी भीगी निगाहों से मौन भाषा में एक दूसरे के संघर्षो को मन ही मन याद कर कृतज्ञतावश एक-दूसरे का आभार प्रकट कर रहे थे। यह एक दुर्लभ मौका था जब सम्मान देने वाले और लेने वाले 'शख्स दोनों की ऊंचाई और गहराई की थाह हॉल में मौजूद लोगों के दिल में बहुत गहरे से बैठी थी। सम्मानों के इस दौर में यह सम्मान समारोह वाकई दुर्लभ था, जहां सम्मान देने वाला, लेने वाला और संस्तुति करने वाला एक से बढ़कर एक हो। सुंदर लाल बहुगुणा जी की स्मृति में विमला बहुगुणा-मेघा पाटेकर - विजय जड़धारी की त्रिमूर्ति ने इस पल को हमेशा के लिए यादगार बना दिया, क्योंकि एक कर्मठ, समर्पित, सच्चे जन नायक का सम्मान उसी कद के दूसरे जननायक द्वारा होना बड़ी बात है। यह पल अपनी गरिमा के लिए हमेशा याद रखा जायेगा। सुंदरलाल जी के अभिन्न सहयोगी धूम सिंह नेगी जी की कमी समारोह में बहुत खली। समारोह के आमंत्रण पत्र पर विजय जड़धारी का नाम घोषित न होने से उनके कई प्रशंसक सम्मान समारोह के सुंदर पलों के साक्षी न बन सके। हां वयोवृद्ध सर्वोदयी शशीप्रभा रावत दीदी, सर्वोदयी दयाल भाई की उपस्थिति ने जन आंदोलनों के दौर को जीवंत कर दिया।

मेघा पाटेकर ने सुंदरलाल बहुगुणा, विमला बहुगुणा और विजय जड़धारी समेत देश के जन सरोकारों से जुड़े आंदोलनों, कार्यकर्त्ताओं और उनके संघर्षो पर चर्चा करते हुए आज के महत्वपूर्ण सवालों पर खुलकर बात की। मेघा पाटेकर का सौम्यता भरा प्रभावशाली व्यक्तित्व व लुभावना वक्तव्य सबको मंत्रमुग्ध कर गया। मैंने कई बरसों बाद मेधा दीदी को देखा पर उम्र बढ़ने के बावजूद उनकी ताजगी और ओजस्विता में कोई अंतर नहीं है। वह तप सी गई हैं संघर्ष करते-कराते।

हिमालय प्रहरी विजय जड़धारी खुद में ही एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। विजय जड़धारी हॅवलघाटी से उपजा एक ऐसा नाम है, जिसने अपने काम, संघर्ष, जुझारूपन, सादगी, सौम्यता, कर्मठता और जिजीविषा से देश-दुनिया में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वह चिपको आंदोलन, बीज बचाओ आंदोलन, असकोट से आराकोट यात्रा समेत उत्तराखंड में अनेक सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों का मुख्य हस्ताक्षर हैं। अपने खास 'हेवलिया करंट' के लिए मशहूर हेंवलघाटी चिपको, मद्यनिषेध, बीज बचाओ, महिला सशक्तीकरण, खनन विरोधी, टिहरी बांध विरोधी, दलित आंदोलन, पहाड़ी खान-पान के प्रति व्यापक जागरूकता समेत सामाजिक जन जाग्रति के कई आंदोलनों व नायकों के अनूठे कामों की गवाह रही है। हेंवलघाटी के शिखर पुरुषों में युगवाणी के संस्थापक आचार्य गोपेश्वर कोठियाल जी धूमसिंह नेगी जी, विजय जड़चारी, कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर दयाल माई, बचनी देवी, सुदेशा बहन, सौंपा देवी, दुलारी बहन समेत सैकड़ों लोगों ने यहाँ के जंगलों, प्राकृतिक संसाधनों को बचाने व लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए चार दशकों में अलख जगाकर दुनिया को आर्थिकी से पारिस्थितिकी की ओर मोड़कर एक नया दर्शन दिया। विजय जड़चारी चिपको आंदोलन के दौरान 1978 में 14 दिनों तक जेल में रहे। हेंवलघाटी  के चिपको कार्यकर्त्ताओं की यह टोली सत्तर के दशक में सुंदर लाल बहुगुणा और विमला बहुगुणा के साथ उत्तराखंड में कंधे से कंधा मिलाकर हर मोर्चे पर सक्रिय रही। मैं उल्लेख करना चाहूँगी कि हेंवलघाटी  के आंदोलन के बाद ही 1980 में भारत सरकार द्वारा हिमालय में 1000 मीटर से ऊपर पेड़ों के कटान पर रोक लगाई थी। मैं बड़े सम्मान के साथ चिपको आंदोलन की रीढ़ लोकगायक घनश्याम सैलानी, पर्यावरण मंत्रालय में नियुक्त पर्यावरण के प्रति संवेदनशील विरले नौकरशाह एन. डी. जयाल समेत उस पीढ़ी के तमाम भूले-बिसरे नायकों को भी उनके अविस्मरणीय योगदान हेतु विनम्रता के साथ याद करना चाहूँगी
8-10-1953 को जन्में विजय जड़चारी मूलतः बुमुंड पट्टी के जड़धार गाँव के हैं। गांधी विचारधारा के प्रति युवा अवस्था ही रूचि रही। वह चम्बा नामक कस्बे मेंकिताबों की दुकान चलाते थे। व्यवसायअच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन सर्वोदय विचारधारा से प्रभावित होकर नियति उनको सार्वजनिक जीवन की ओर ले गई। यह कठिन निर्णय था, लेकिन सैद्धांतिक जीवन में मोलभाव नहीं किया जाता और न ही लाभ हानि का आंकलन वहाँ सिर्फ एक बड़े उद्देश्य के लिए कड़े निर्णय व्यापक जनहित में लिए जाते हैं। ऐसा ही विजय जधारी ने किया। चिपको कार्यकर्त्ता के साथ-साथ उनकी खास पहचान बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता के तौर पर है। बीजों के साथ दोस्ती कर उनसे बतियाकर जल, जंगल, जमीन, जन और बीजों की धड़कनों को महसूस कर उनकी नैसर्गिक ताकत को पहचानना और पादप प्रजातियाँ को प्राकृतिक व जैविक तौर तरीकों से जिंदा रखना उनका प्रिय शौक है। बीजों के साथ उनकी दोस्ती और बीज बचाने के उनके शौक ने ही बीज बचाओ आंदोलन को दुनिया में एक अलग पहचान दी। वह जनहित में आंदोलन करने के साथ ही लेखनी के भी धनी है। आंदोलनों व पदयात्राओं के दौरान आस-पास की घटनाओं का अध्ययन, विश्लेषण एवं प्राप्त जानकारियों को किताबों, लेखों व डायरियों में संकलित करना उनकी आदत में शामिल है

उनकी मुख्य पुस्तकों में पहाड़ी खेती किसानों का पारंपरिक विज्ञान, खेती अनमोल धरोहर, उत्तराखंड में पौष्टिक खान-पान की संस्कृति, बारहनाजा, बीज एवं लोक ज्ञान, पारंपरिक बीज संरक्षण को जैविक पद्धतियाँ, अन्न स्वराज, उत्तराखंड की प्राकृतिक खाद्य प्रजातियां आदि शामिल हैं। वह पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक जैविक खेती पर विभिन्न विश्वविद्यालयों, संस्थानों एवं किसान समूहों में सैकड़ों व्याख्यान व शोध पत्र प्रस्तुत कर चुके हैं। राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं,आकाशवाणी, दूरदर्शन में उनकी दर्जनों कहानियाँ एवं वार्ताओं का प्रसारण हो चुका है। खेती किसानी एवं पर्यावरण संबंधी कई लेखों का प्रकाशन हुआ है। विजय जड़धारी ने जैविक, प्राकृतिक खेती और जैवविविधता पर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में नेपाल, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, बेलजियम व जर्मनी आदि में अपनी प्रस्तुति दी है। उनको संस्कृति पुरुस्कार दिल्ली 1998 इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरूस्कार 2009, गढ़ गौरव सम्मान, राज्य खान-पान विशेष सम्मान, 2007 में गाँधी शांति प्रतिष्ठान समेत देश भर के कई पुरूस्कारों से अंलकृत किया जा चुका है। बीज बचाओ आंदोलन को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देकर उनके काम को आगे बढ़ाया जा रहा है। वह उत्तराखंड जैवविविधता बोर्ड व उत्तराखंड आर्गेनिक बोर्ड के विषय विशेषज्ञ रहे हैं। 1980 के दशक में विजय जड़धारी को अहसास हुआ कि उत्तराखंड में पारंपरिक बीजों की जगह हाइब्रिड बीजों का दौर शुरू हो गया है उनको डर था कि भविष्य में हमारे अपने बीज नहीं बचेंगे। उन्होंने अपने चिपको आंदोलन के मित्रों धूमसिंह नेगी, कुंवर प्रसून, सुदेशा बहन, दयाल भाई से विचार विमर्श कर बीज बचाओ आंदोलन की शुरूआत की। हरित क्रांति के दौर में गाँव-गाँव जाकर किसानों को बीज संरक्षण व पारंपरिक खेती का महत्व बताया तो सब ने मजाक बनाया लेकिन उन्होंने हार न मानी। वह जो कहते, उसका प्रयोग अपने खेतों में करते। वह जितने बीज संरक्षित कर सकते थे, करते चले गये। उन्होंने किसानों को परंपरागत तरीके से एक ही खेत में समय के अनुसार अलग-अलग फसलों को उगाने के तरीके भी सिखाये अपने सालों की इस बीज यात्रा में वह लाखों किसानों की दहलीज तक पहुँचे होंगे। शुरू में किसान उनकी बात नहीं मानते थे क्योंकि पारंपरिक बीज व खेती में बहुत मेहनत लगती है। दूसरी ओर हरित क्रांति के दौर में सरकार नए किस्म के बीज व उर्वरक सस्ते दामों पर दे रही थी। लेकिन समय चक्र में बहुत बदलाव आया।  

विजय जड़धारी ने पहाड़ों की प्रचलित 'बारहनाजा खेती' पद्धति को जीवित करने का बड़ा काम किया। इस तकनीक में मौसम के अनुकूल एक साथ एक खेत में 12 अनाजों को बोया जाता है। इनमें अन्न, दहन, तिलहन, सब्जियां सब मौजूद होती हैं। यह किसान की भोजन की टोकरी में पौष्टिकता स्वाद और संपूर्णता का समावेश कर उसे 'खाद्य सुरक्षा' का अहसास कराती है। यह फसलें प्राकृतिक आपदाओं के वक्त भी आसानी से उगाई जा सकती हैं। मौसम बदलाव के इस दौर में बारहनाजा की सदियाँ से जांची परखी खेती की तकनीक किसानों के लिए खाद्य सुरक्षा का बड़ा विकल्प है। 1980 के आस-पास बारहनाज तकनीक विलुप्त हो रही थी। ऐसे दौर में जब हरित क्रांति का डंका दुनिया में बज रहा था उस वक्त वैज्ञानिकों से देशी खाद-बीज और तकनीकियों की बात करना खुद की हंसी कराना सा था। ऐसे में बीज बचाओ आंदोलन का संघर्ष आसान न था। उन पर किसानों को बहकाने का इल्जाम भी लगता था। समय-समय पर आम लोग एवं वैज्ञानिक उनके खिलाफ खड़े हुए। लेकिन समय ने विजय जड़धारी के बीजों के सच एवं उसके फायदों को लोगों के सामने रख दिया कि उत्तराखंड में जब-जब सूखा, बारिश या कोई आपदा आई तो ऐसे में हमारी पारंपरिक फसलें ही बच पाई। एक वक्त आया कि विजय जड़धारी की मोटे अनाजों और बीजों को बचाने और जैविक व पारंपरिक खेती की आवाज सारे देश दुनिया की आवाज बनी। आज प्रसन्नता होती है सारी दुनिया में 'मिलेट मिशन' का डंका बजते देख यह बीज बचाओ आंदोलन के लिए सुखद पल है कि उनको बरसों पहले उठी आवाज आज दुनिया की आवाज बन चुकी है।

साल 2020 में हर कोई विजय जड़धारी के प्रयोगों से हैरान था। उन्होंने बिना खेत जोते अपने खेतों में गेंहू की फसल तैयार कर एक असंभव प्रयोग किया। इसे उन्होंने  'जीरो बजट खेती' का नाम दिया। नवंबर 2019 में जब उनके धान के खेत खाली हुए तो उन्होंने वहाँ गेहूं बोकर  उसे पराली से ढक दिया। पराली सूखते ही वहाँ गेहूं  के बीज अंकुरित मिले। कुछ समय बाद यह कटाई लायक हो गये। जीरो बजट खेती पर वार्ता हेतु उनको कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा असम बुलाया गया। जड़धारी जो बताते हैं कि इस क्षेत्र में वैज्ञानिक समुदाय और शोधकर्ताओं की धारणा भी धीरे-धीरे बदल रही है। मुझे जब पता चला कि यहाँ पर शून्य बजट प्राकृतिक खेती पर चर्चा होगी तो यह बात मेरे मन को छू गई। विजय जड़चारी ने अपने गाँव जड़धार  गाँव में एक बड़े क्षेत्रफल पर गाँववालों की मदद से बांज बुरांश का जंगल तैयार कर समझाया कि खुशहाली का पाठ घर से ही शुरू होता है। पर्यावरण के क्षेत्र में अपने विशिष्ट कार्यों हेतु विजय जड़धारी को 2009 में 'इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरूस्कार' मिला। हालांकि उनके किये निस्वार्थ कामों का मोल किसी पुरूस्कार से नहीं लगाया जा सकता है। वह बताते हैं कि आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियां किसानों की बीज संपदा को लूटने की साजिश कर रही हैं। यह कम्पनियां अपने बीज देती हैं बीमारियां फैलाती हैं और फिर उनके इलाज के लिए कीटनाशक और खरपतवारनाशक बेचती हैं। यह एक दुश्चक्र है। कर्ज के दुश्चक्र में फंसे किसानों को आत्महत्याएं उनको व्यथित करती हैं। यह बीज बचाओ आंदोलन के अथक प्रयास का परिणाम है कि भारत सरकार ने मोटे अनाजों को अब पौष्टिक भोजन या 'श्री अनाज का नाम दिया है। विजय जड़धारी गर्व से कहते हैं कि कोरोना महामारी के बाद जिन लोगों ने पारंपरिक खाद्यान्नों को छोड़ दिया था, अब उन्होंने इन अनाजों के पोषक मूल्यों और बीमारियों से लड़ने की क्षमता के कारण पारंपरिक खाद्यों को अपनाया है।

1985 से सामाजिक जीवन में सक्रिय विजय जड़धारी एक गांधीवादी विचारक हैं। दुनिया में फैलाया। खेती-बाड़ी भी वह अहिंसक तौर-तरीकों से कर प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हैं। अब तक वह 320 किस्म की धान, राजमा को 220 किस्में, गेहू की 30 किस्में भट्ट की 5, नौरंगी की 25, मक्का की 10 किस्में, मंडुआ की 12 चीलाई की 4, सोयाबीन की 9 किस्मों, लोबिया की 10 किस्में को पुर्नजीवित कर चुके हैं। खाधान्न के साथ-साथ तिलहन दालों, सब्जियों और मसालों को कई किस्मों को उन्होंने अपने ही खेतों में पुनर्जीवित किया है। वह अब तक लगभग 600 से ज्यादा प्रजातियों का संरक्षण कर चुके हैं। जब कई प्रजातियां, फसलें और अनाज विलुप्ति के कगार पर थीं, ऐसे समय में  विजय जड़धारी का देशी बीजों का संरक्षण कर जी. एम. बीजों और जैविक व प्राकृतिक खेती की वकालत कर रासायनिक खेती को चुनौती देना खेती के इतिहास में एक अतुलनीय योगदान है। बीज बचाओ आंदोलन ने कृषि जैव विविधता संरक्षण, स्थाई कृषि को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर खेती-बाड़ी से जुड़े पारंपरिक ज्ञान को बचाने और साझा करने का बड़ा काम किया है। विजय जड़धारी की मदद से 120 प्रजाति के बीजों का संरक्षण 'बायोडाइवर्सिटी पार्क हलद्वानी में किया गया है। बीज बचाओ आंदोलन द्वारा उत्तराखंड में पहले 'आर्गेनिक कमोडिटी बोर्ड' की स्थापना में मदद दी गई। इस आंदोलन ने देश भर में न सिर्फ मिलेट मिशन नेटवर्क की स्थापना करने में बड़ा योगदान दिया बल्कि यह भी पूरे जोश से उद्घोषित किया कि यह मोटे अनाज ना होकर पोषक तत्वों से भरपूर अन्न हैं। बीज बचाओ आंदोलन के प्रचार-प्रसार का यह बड़ा योगदान है कि भारत सरकार द्वारा मोटे अनाजों को 10 अप्रैल 2018 के बजट नोटिफिकेशन द्वारा "न्यूट्री सिरियल " घोषित किया गया। यह आंदोलन देश के कई राज्यों में अपने साथी संस्थाओं के माध्यम से सक्रिय है। विजय जड़धारी ने IUCN की बैठक में दक्षिण अफ्रीका भाग लेकर पारंपरिक खेती और बीजों के संरक्षण का संदेश दुनिया को दिया। उन्होंने 'फूड सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस बेल्जियम, नेपाल, मलेशिया, यूरोपियन इन्वायरमेंट फांउडेशन की बैठकों में समय-समय पर भाग लेकर अपना संदेश दुनिया में फैलाया।  

विजय जड़धारी के जनहित के कामों का चमकता इतिहास उनको 'हिमालय प्रहरी 20023 के दमदार हकदार होने की सार्थकता को सिद्ध करता है। हेंवलघाटी  के ही उनके आंदोलनों के साथी बचनी देवी, कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर, सुदेशा वहन, घनश्याम सैलानी समेत कई क्रांतिकारी नाम आगामी सालों में 'हिमालय प्रहरी सम्मान' के दमदार हकदारों में पूरे दमखम के साथ खड़े नजर आते हैं। मेरी उम्मीद है कि आने वाले समय में हिमालय प्रहरी सम्मान वलघाटी के इन भूले बिसरे पर्यावरण नायकों को भी सम्मानित कर अपने 'हिमालय प्रहरी' होने की सार्थकता को सिद्ध करेगा।  

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