यदि जलकुंभी से बिजली बनती है तो मनपा प्रशासन नदी के उन क्षेत्रों से भी जलकुंभी एकत्र करना शुरू करेगा, जिसे इन दिनों छोड़ दिया जाता है। जलकुंभी नदी में पानी से ऑक्सीजन को भी सोख लेती है, जिससे पानी ट्रीट करने की लागत बढ़ जाती है।
यदि जलकुंभी से बिजली बनाने का प्रयोग सफल रहा तो मनपा की डम्पिंग साइट में दफन हो रही हजारों टन जलकुंभी आने वाले दिनों में रुपया उगलेगी। केन्द्र की पहल पर एसवीएनआईटी ने प्रस्ताव तैयार कर डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीओएसटी) को भेजा है। वहाँ से मंजूरी के बाद मनपा के साथ मिलकर इस पर काम शुरू किया जाएगा।
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत देशभर के तकनीकी संस्थानों को साइट पर डम्प हो रहे कचरे को उपयोगी बनाने के प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू करने के लिए कहा था। इसके तहत संस्थानों को प्रोजेक्ट के डवलपमेंट पर हो रहे खर्च की राशि देने का भी आश्वासन दिया गया था। इसके बाद शहर के तकनीकी संस्थान एसवीएनआईटी ने मनपा की साइट में डम्प हो रही तापी से निकलने वाली जलकुंभी से बिजली बनाने का प्रस्ताव तैयार किया। एसवीएनआईटी ने इसका प्रजेंटेशन डीओएसटी को भेजने के साथ ही मनपा से सहयोग मांगा है। यदि डीओएसटी प्रस्ताव को मंजूर करता है और प्रयोग सफल रहा तो देश में अपने किस्म का यह पहला प्रोजेक्ट होगा।
तापी नदी से निकलने वाली जलकुंभी को मनपा प्रशासन मशीन से खींचकर नदी किनारे पर जमा करता है। यहाँ से जलकुंभी को मनपा की डम्पिंग साइट पर भेज दिया जाता है। इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए मनपा प्रशासन डम्पिंग साइट में भेजने वाली जलकुंभी को एसवीएनआईटी की लैब में भेजेगी। साथ ही ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला सीवेज का स्लज भी जरूरत पड़ने पर प्रोजेक्ट पर काम कर रही टीम को मुहैया कराया जाएगा।
नदी से निकलने वाली जलकुंभी को होटल किचन वेस्ट के साथ प्रोसेस करने से बायोगैस उत्पन्न होगी। बायोगैस से बिजली बनाई जाएगी। तकनीकी जानकारों के मुताबिक जलकुंभी बगैर होटल वेस्ट लिए भी बायोगैस बनाने में सक्षम है, लेकिन होटल वेस्ट लेने से उस कचरे को भी बिजली उत्पादन में इस्तेमाल किया जा सकेगा। साथ ही किचन वेस्ट मिलने से जलकुंभी के गैस उत्पादन की प्रक्रिया और बेहतर तथा तेज हो जाएगी।
प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली तो टेक्निकल सिस्टम एंड डवलपमेंट प्रोग्राम के तहत एक करोड़ रुपये की राशि मिलेगी। प्रयोग के तौर पर पहले आधा टन का प्लांट लगाया जाएगा, जिससे 50 किलोवाट बिजली उत्पादन हो सकता है। प्रयोग सफल रहा तो कम से कम 25 टन का प्लांट लगाया जा सकता है। डीओएसटी से मंजूरी के बाद प्रोजेक्ट पूरा होने में करीब दो साल का समय लग सकता है।
मानसून के दौरान नदी में तेज बहाव के कारण जलकुंभी पानी के साथ सीधी दरिया में बह जाती है। मानसून के अलावा बाकी आठ माह तक रोजाना करीब 25 टन जलकुंभी निकलती है, जिसे डम्पिंग साइट पर भेजा जाता है। यदि जलकुंभी से बिजली बनती है तो मनपा प्रशासन नदी के उन क्षेत्रों से भी जलकुंभी एकत्र करना शुरू करेगा, जिसे इन दिनों छोड़ दिया जाता है। जलकुंभी नदी में पानी से ऑक्सीजन को भी सोख लेती है, जिससे पानी ट्रीट करने की लागत बढ़ जाती है।