केन्द्र की इस योजना के तहत केन नदी के अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी तक पहुंचाया जाना प्रस्तावित है तथा इसमें बनाये जाने बांध, बैराज और नहरों से पूरे बुंदेलखण्ड को हरा-भरा किया जाना है। इसके तहत मकोरिया, रिछान, बरारी और केसरी नामक स्थानों पर बांध बनाये जाने हैं तथा इसी में से नहरें निकलेंगी।
बुंन्देलखण्ड से बड़ी संख्या में पलायन थम नहीं रहा है बुंदेलखण्ड की वीर गाथाएं न जाने कहां खो गयी हैं। अब तो यहां चहुं ओर सिर्फ करुण कहानियों का बोलबाला है। बुंदेलखण्ड देश का दूसरा विदर्भ बनता जा रहा है। केन्द्र और राज्य सरकारों के तमाम घोषित उपायों के बावजूद यहां के किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। स्थिति की भयावहता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समाचार पत्रों में छप रही आत्महत्याओं की खबरों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केन्द्र व उ.प्र. सरकार से कैफियत तलब की है। इस क्षेत्र की बदहाली के लिए प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ राजनीतिक कारण कितने जिम्मेदार हैं, इसको इस तथ्य से समझा जा सकता है कि केन्द्र द्वारा गत वर्ष बुंदेलखण्ड को अतिरिक्त सहायता के मद में दिए गए 800 करोड़ रुपये को उ.प्र. सरकार खर्च ही नहीं कर पाई है और उसने बीते मार्च माह तक मात्र 73 करोड़ यानी सिर्फ 09 प्रतिशत धनराशि का उपयोग प्रमाण पत्र दिया है! जानना दिलचस्प होगा कि केन्द्र सरकार ने बुंदेलखण्ड के विकास और राहत कार्यों के लिए कुल लगभग 8000 करोड़ रुपयों का भारी-भरकम विषेश पैकेज दे रखा है लेकिन वहां प्रशासनिक स्तर पर घोर अव्यस्था के चलते स्थिति सुधारने के बजाय और बिगड़ती ही जा रही है।
बीते 15 जून को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उक्त मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए न सिर्फ केन्द्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया है बल्कि अग्रिम आदेश तक इस क्षेत्र में सभी प्रकार की राजकीय व साहूकरी वसूली पर रोक भी लगा दी है। आत्म हत्याओं के ऑकड़े से चिंतित न्यायालय ने उ.प्र. के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वे ऐसे प्रत्येक प्रकरण में अस्पताल,थाना तथा ब्लाक मुख्यालय से विस्तृत जानकारी तथा किसानों को शासन द्वारा दी जाने वाली कुल सहायता का ब्यौरा एक माह के भीतर न्यायालय में पेश करें। न्यायालय की चिंता को किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं के इन आकड़ों से समझा जा सकता है कि वर्ष 2009 से अब तक यानी मात्र दो वर्षों में 1670 किसानों ने कर्ज व गरीबी से तंग आकर अपनी जान दे दी है। बुंदेलखण्ड मध्य प्रदेश और उ.प्र. के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनता है। इसमें उ.प्र. के बॉदा, जालौन, हमीरपुर, झॉसी, चित्रकूट, महोबा और ललितपुर जिले हैं। केन्द्र से पर्याप्त धनराशि आने के बावजूद प्रदेश सरकार की प्रशासनिक अक्षमता के कारण योजनाओं पर अमल नहीं हो पा रहा है जिससे हताश किसान अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर ले रहे हैं।
बुंदेलखण्ड की प्रमुख समस्या सूखा है। एक तो यह समूचा क्षेत्र वैसे ही पथरीला और असमतल है दूसरे बीते एक दशक से यहां नियमित बरसात न होने के कारण स्थिति इतनी विकराल हो गई है कि जगह-जगह जमीन फट जाती है और दरारों में से बेतहाशा धुंआ निकलने लगता है। उ.प्र. में इस बार जब बसपा की सरकार सत्तारुढ़ हुई तो उसने तीन साल पहले 2008 में बुंदेलखण्ड के सूखे से चिन्तित होकर वहां कृत्रिम बरसात कराने की घोषणा की और इसके लिए विदेशों से तकनीकी जानकारी भी प्राप्त की गई। यह प्रक्रिया इसमें सिल्वर आयोडाइड (चांदी का एक अवयव) इस्तेमाल होने के कारण महंगी तो थी लेकिन इसके व्यापक असर को देखते हुए इस पर अमल करने का निश्चय किया गया। अब पता नहीं कोई प्रशासनिक अड़चन आयी या लगभग उसी दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी ने बुंदेलखण्ड पर थोड़ा ध्यान देना शुरु कर दिया, जो भी हो, राज्य सरकार ने इस अत्यन्त उपयोगी योजना को किसी तहखाने में डाल दिया।
आज बुंदेलखण्ड के दोनों हिस्सों की मुख्य समस्या पानी की किल्लत और इससे उत्पन्न समस्याएं जैसे कि फसल का सूखना तथा चारे व पेयजल की कमी आदि ही हैं। जाहिर है कि ये समस्याएं हल की जा सकती हैं और इनको हल करने के लिए तमाम योजनाएं वहां लागू भी है लेकिन वे सब प्रशासनिक लूट-खसोट की शिकार होकर उत्पीड़नकारी हो गयी हैं। वहां गांवों में सामुदायिक रसोई चलाकर जरुरतमंदों को भोजन देने की योजना है तो जानवरों के लिए चारा बैंक भी है। पेयजल के सचल टैंकरों से जलापूर्ति की व्यवस्था है तो मनरेगा जैसी योजनाओं की मार्फत कार्य के अवसर भी उपलब्ध कराये जा रहे है और मनरेगा के श्रम का उपयोग तालाबों की खुदाई, उनका सुदृढ़ीकरण तथा बरसाती जल को रोकने के लिए मेंड़ व बांध बनाने में भी किया जा रहा है। किसानों की ऋण माफी योजना वहाँ भी लागू की गई है। यें सब है लेकिन इन सबके वहां काम न कर पाने का मुख्य कारण प्रशासनिक भ्रष्टाचार है जिसके कारण जरुरतमंद लोग कोई भी लाभ नहीं पा रहे हैं और उनके सामने अंतिम विकल्प अपनी जान गंवा देने का ही है।
बुंदेलखण्ड के लोगों की हताशा और विषाद का मुख्य कारण पानी है। इसका हल हुए बगैर वहां जन जीवन सामान्य नहीं हो सकता। तमाम कारगर और तस्वीर बदलने मे सक्षम योजनाएं वहां राजनीतिक खींचतान में उलझी पड़ी हैं। इसलिए आवश्यकता वहां जलागम की कोई केन्द्रीय योजना शुरु करने की है। इसी समस्या के हल के लिए बहुउद्देश्यीय केन-बेतवा नदी जोड़ने की योजना बनाई गई है। केन्द्र की इस योजना के तहत केन नदी के अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी तक पहुंचाया जाना प्रस्तावित है तथा इसमें बनाये जाने बांध, बैराज और नहरों से पूरे बुंदेलखण्ड को हरा-भरा किया जाना है। इसके तहत मकोरिया, रिछान, बरारी और केसरी नामक स्थानों पर बांध बनाये जाने हैं तथा इसी में से नहरें निकलेंगी। प्रारम्भ में 1800 करोड़ रुपये की अनुमानित यह योजना अब 9000 करोड़ रुपये की बतायी जा रही है, लेकिन इसका क्रियान्वयन बुंदेलखण्ड की सूरत बदल सकता है।