लेख

भारत के पंजाब राज्य में भूजल प्रदूषकों फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट प्रभावित क्षेत्रों का मानचित्रण

तीव्र गति से बढ़ते कृषि विकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूजल संसाधन के स्रोतों पर दवाव बढ़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप भूजल संसाधनों का अतिदोहन और संदूषण हुआ है। उत्तरी भारत में लगभग 109 घन किमी भूजल की हानि हुई है जिसके कारण बंगाल की खाड़ी में समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हुई है। पंजाब में फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा भटिंडा और फरीदकोट जिलों में क्रमशः 10 मिलीग्राम/लीटर और 90 मिलीग्राम/लीटर तक पायी है। प्राकृतिक रूप से होने वाले फ्लोराइड की उच्च सांद्रता ने दक्षिणी और उत्तर पश्चिमी भारत में लगभग 66 मिलियन लोगों को प्रभावित किया है।

Author : अंजु चौधरी, डॉ. गोपाल कृष्ण

जलवायु परिवर्तन एवं अन्य प्राकृतिक परिवर्तनों के परिपेक्ष में भूजल संसाधन, जल के महत्वपूर्ण संसाधन हैं हालांकि कुछ प्राकृतिक एंव कुछ मानव जनित कारणों ने इन संसाधनों के पुनर्भरण की मात्रा एवं गुणवत्ता को प्रभावित किया है। मानवीय गतिविधियों एवं प्राकृतिक रूप से अकार्बनिक रसायन, मृदा, तलछट एवं चट्टानों से बिंदु स्रोत या गैर बिंदु स्रोत के रूप में भूजल प्रणाली में प्रवेश करते हैं जिसके कारण भूजल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और यह जल पीने हेतु तो बेकार हो ही जाता है यहां तक कि यह सिंचाई हेतु भी व्यर्थ हो जाता है। इन दूषित पदार्थों से प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने से ऐसे क्षेत्रों में भूजल के उपचार में मदद मिलती है। इस अध्ययन के माध्यम से भारत के पंजाब राज्य में फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट जैसे अकार्बनिक रसायन प्रदूषकों से प्रभावित क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया है ताकि भविष्य में पीने और सिंचाई के लिए जल को उपयोगी बनाने हेतु उपचारात्मक उपाय किए जा सकें। सी.जी.डब्लू.बी. के आंकड़ों के अनुसार संगरूर जिले में फ्लोराइड और नाइट्रेट की सांद्रता क्रमशः 1.71-11.30 मिलीग्राम/लीटर, 110-1180 मिलीग्राम/लीटर और भटिंडा जिले में आयरन की सांद्रता 1.02-25 मिलीग्राम/लीटर पाई गई।

तीन प्रदूषकों में नाइट्रेट अनियोजित और अनियंत्रित मानव गतिविधियों के कारण अधिक तीव्र और व्यापक रूप से फैला हुआ पाया गया। फ्लोराइड का स्रोत मध्य हिमालय में स्थित है और यह अपक्षय, फ्लोराइट, फ्लोर एपेटाइट, टोपाज, क्वार्ट्ज और माइका खनिजों से आता है परिणामस्वरूप जल - संसाधनों में प्रवेश करता है। जब यह आवरन रॉक फोर्मेशन्स में पाया जाता है और वर्षा जल इन फोर्मेशन्स से गुजरता है तो यह पानी में घुल जाता है और जलभृतों में इक्ट्ठा हो जाता है और नीचे बहने वाले तलछट से आयरन प्रदूषक जल में मिश्रित हो जाता है। इस अध्ययन हारा यह अनुशंसा की जाती है कि इन अकार्बनिक प्रदूषकों की मात्रा को कम करने के लिए इन गतिविधियों को जन जागरूकता और कानून द्वारा नियंत्रित किया जाना अति आवश्यक है।

भूजल, सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है, जो पृथ्वी पर ताजे पानी के संसाधनों का लगभग 30 प्रतिशत है। भारत में इसे घरेलू, औद्योगिक और सिंचाई जल आपूर्ति के लिए प्रदूषित सतही जल की तुलना में सुरक्षित माना जाता है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के तहत, वैश्विक जल और खाद्य सुरक्षा के लिए भूजल का सामरिक महत्व और भी बढ़ने की संभावना है। तीव्र गति से बढ़ते कृषि विकास, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूजल संसाधन के स्रोतों पर दबाव बढ़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप भूजल संसाधनों का अतिदोहन और संदूषण हुआ है। उत्तरी भारत में लगभग 109 घन किमी भूजल की हानि हुई है जिसके कारण बंगाल की खाड़ी में समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हुई है। पंजाब में फ्लोराइड और नाइट्रेट की मात्रा भटिंडा और फरीदकोट जिलों में क्रमशः 10 मिलीग्राम लीटर और 90 मिलीग्राग/ लीटर तक पायी है। प्राकृतिक रूप से होने वाले फ्लोराइड की उच्च सांद्रता ने दक्षिणी और उत्तर पश्चिमी भारत में लगभग 66 मिलियन लोगों को प्रभावित किया है। इन तथ्यों का संज्ञान लेते हुए इस अध्ययन के माध्यम से पंजाब में फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट से प्रभावित क्षेत्रों का पता लगाने का प्रयास किया गया है। यह देखा गया है कि भारत के पंजाब राज्य में कुछ स्थानों पर कुछ घटकों की सांद्रता अनुमत सीमा से कहीं अधिक है। फ्लोराइड और आयरन भूजल संदूषक भू-गर्भीय उत्पत्ति के कारण हैं, जबकि नाइट्रेट मानव गतिविधियों का परिणाम है।

पंजाब राज्य देश के सबसे अधिक कृषि उत्पादक क्षेत्रों में से एक है और इस राज्य को 'भारत का ब्रेड बास्केट' कहा जाता है। पंजाब राज्य उत्तर-पूर्व में जम्मू और कश्मीर प्रांत, पूर्व और दक्षिण-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में हरियाणा राज्य एवं दक्षिण और पश्चिम में राजस्थान राज्य द्वारा घिरा है एवं पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है (चित्र 1)। तीन बारहमासी नदियां व्यास, सतलुज और रावी अपनी सहायक नदियों के साथ मिलकर राज्य में बहती हैं। पंजाब में प्रमुख नहर प्रणालियां यथा सरहिंद नहर प्रणाली, बिस्ट दोआब नहर प्रणाली, भाखड़ा मेन लाइन (BML) नहर प्रणाली, ऊपरी बड़ी दोआब नहर प्रणाली, कश्मीर नहर, फिरोजपुर फीडर/सिरी फीडर प्रणाली, पूर्वी नहर प्रणाली, मखु नहर प्रणाली, शाहनेहर नहर प्रणाली और कंडी नहर प्रणाली इत्यादि हैं। पंजाब के मध्यवर्ती जिलों में वाटर टेबल घट रही है, जबकि दक्षिण पश्चिमी भागों में जल जमाव की समस्या बढ़ रही है। अधिकांश ट्यूब वैलों को सबमर्सिबल पंपों द्वारा बदल दिया गया है, जिससे अतिरिक्त जल की मांग की पूर्ति एवं फसलों की सिंचाई की जा रही है, विशेष रूप से धान की खेती पंजाब में भूमिगत जल स्तर में गिरावट के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है।

परिणाम एवं चर्चा

फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन की अनुमेय सीमा से अधिक की सांद्रता वाले क्षेत्रों को चित्र-2 द्वारा दर्शाया गया है।

फ्लोराइड

चट्टानों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सभी तत्वों में से फ्लोरीन सबसे अधिक विद्युत ऋणात्मक एवं प्रतिक्रियाशील है। फ्लोरीन, चट्टानों में, फ्लोराइड के रूप में होता है। साधारणतः फ्लोराइड वाले खनिज फ्लोरस्पार, क्रायोलाइट, फ्लोराइड और फ्लोरापैटाइट हैं। चट्टानों का प्रकार, जलवायु परिस्थितियाँ, भूवैज्ञानिक गठन की प्रकृति और भूजल के ठहराव का समय, ठहराव का स्थान इत्यादि भूजल में इसकी उपस्थिति के लिए जिम्मेदार घटक हैं। पेय जल हेतु फ्लोराइड की अनुमेय सीमा 1.0 मिलीग्राम/लीटर है, जिसे 1.5 मिलीग्रगाम/लीटर (बी.आई.एस., 2012) तक बढ़ाया जा सकता है और फ्लोरोसिस में फ्लोराइड की उच्च सांद्रता 1.5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक होती है। कम सांद्रता वाला फ्लोराइड मानव की ह‌ड्डियों को कमजोर करता है एवं फ्लोराइड की उच्च सांद्रता दांतों और ह‌ड्डियों को नुकसान पहुंचाती है। पंजाब में, 1.5 मिलीग्राम/लीटर की अनुमेय सीमा से अधिक फ्लोराइड की सांद्रता वाले क्षेत्रों को चित्र 2 में दशाया गया है। अमृतसर, गुरदासपुर, फरीदकोट, फिरोजपुर, भंटिंडा, मनसा, मुक्तसर, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब और संगरूर जिलों के कुछ हिस्सों में फ्लोराइड अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया, जिसे तालिका । में दर्शाया गया है। पंजाब के संगरूर जिले में फ्लोराइड की सांद्रता, 11.30 मिलीग्राम/लीटर तक है, जो विषाक्त सीमाओं से बहुत अधिक है। फ्लोराइड को वहन करने वाले खनिज आमतौर पर ग्रेनाइट, ग्रेनाइट-गनीस, एगेन- गनीस इत्यादि होते हैं। पंजाब राज्य की भौगोलिक स्थिति शिवालिक की चट्टानों द्वारा निर्मित इंडोगंगेटिक जलोढ़ पर है। जलोढ़क स्वाभाविक रूप से स्रोत के रूप में नहीं है। यह काफी संभव है कि प्री क्रिस्टियन और इओसीन ग्रेनाइट सेंट्रल क्रिस्टलीय रूप में उत्पन्न होने वाले निस्स के साथ फ्लोराइड का स्रोत बनाते हैं।

आयरन

मृदा एवं भूजल में आयरन तत्व एक सामान्य घटक है जो भूजल में भौतिक रासायनिक, सूक्ष्मजीवी वातावरण द्वारा नियंत्रित होकर घुलनशील आयरन के रूप में मौजूद होता है। वायु के संपर्क में आने पर फेरस आयरन ऑक्सीकरण के कारण लालिमा लिए हुए भूरे रंग के फेरिक ऑक्साइड में बदल जाता है। आयरन के मुख्य स्रोतों में आयरन युक्त खनिज हेमेटाईट, मैग्नेटाइट एवं आयरन का सल्फाइड, जिसे पाइराइट कहा जाता है, आदि हैं। भारतीय मानक ब्यूरो, 2012 के अनुसार, भूजल में आयरन की अनुमेय सांद्रता पेय जल हेतु 0.3 मिलीग्राम/लीटर से कम है जबकि यह पंजाब राज्य के कुछ जिलों में अनुमेय सीमा (> 1.0 मिलीग्राम/लीटर) से गुरदासपुर, होशियारपुर, रूपनगर, फतेहगढ़, संगरूर, मनसा, भटिंडा, फरीदकोट और फिरोजपुर जिलों के कुछ हिस्सों में आयरन अनुमेय सीमा से अधिक पाया गया, जिसे तालिका । में दशर्शाया गया है। हिमालय के दक्षिणी ढलान के साथ वहने वाली नदियां शिवालिक सिस्टम की चट्टानों के पार बहती हैं। शिवालिक सिस्टम की चट्टानें असमेकित हैं और इन नदियों द्वारा लाए गए तलछट द्वारा जल में आसानी से आयरन के प्रदूषक को फैलाती हैं। यह देखा गया है कि शिवालिक में स्थित जलभृतों के भूजल में आवरन स्वाभाविक रूप से अधिक होता है।

नाइट्रेट

नाइट्रेट नाइट्रोजन चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसकी वायुमंडलीय उत्पत्ति है, नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया पौधों में नाइट्रोजन का प्रतिष्ठापन करते हैं और नाइट्रेट के निर्माण में मदद करते हैं। पौधों में स्थिरीकरण के बाद वायुमंडलीय नाइट्रोजन को जैविक रूप में परिवर्तित किया जाता है।

नाइट्रेट भूजल का सबसे सामान्य संदूषक है और इसे मानवजनित प्रदूषण का सूचक माना जाता है। इसका सदूषण साधारणतः मानव गतिविधि के परिणामस्वरूप होता है और यह रासायनिक उर्वरकों, पशु खाद, मानव मल की लीचिंग से भूजल तक पहुंचता है। सेप्टिक टैंकों और सीवर पाइपों से रिसाव आदि सतही जल में नाइट्रेट परिवर्धन के सामान्य कारण हैं। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS, 2012) के दिशानिर्देशों के अनुसार, पेयजल में नाइट्रेट सांद्रता की अधिकतम अनुमेय सीमा 45 मिलीग्राम/लीटर है जिसमें कोई छूट नहीं है। भूजल में 45 मिलीग्राम/लीटर की अनुमेय सीमा से ऊपर नाइट्रेट की उपस्थिति को चित्र 2 में दर्शाया गया है। पंजाब राज्य के अमृतसर, गुरदासपुर, कपूरथला, नवांशहर, रूपनगर, लुधियाना, फतेहगढ़, पटियाला, संगरूर, मुक्तसर, मनसा भंटिडा, फरीदकोट और फिरोजपुर जिलों के कुछ भाग में यह प्रदूषण पाया गया है। पंजाब राज्य में, नाइट्रेट प्रदूषण बहुत सामान्य बात है एवं इसकी सांद्रता 1180 मिलीग्राम/लीटर तक पाई गई है।

निष्कर्ष

पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और यहां औद्योगिक विकास तीव्र गति से हो रहा है। वर्ष 1988 के बाद से हरित क्रांति के तीसरे चरण में, नए बीजों के आगमन, उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग, कीटनाशकों एवं आधुनिक तकनीक के उपयोग ने कृषि में जल की लागत में वृद्धि की है। भूजल निकासी की दर में बढ़ोत्तरी हुई है। मानव जनित गतिविधियों का प्रभाव पंजाब में भूजल संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों पर पड़ रहा है। यह अध्ययन बताता है कि पंजाब के 11 जिलों की भूजल गुणवत्ता फ्लोराइड से प्रभावित है, 9 जिले आयरन से प्रभावित हैं और 17 जिले नाइट्रेट से प्रभावित हैं। तीन प्रदूषको में नाइट्रेट अधिक है और व्यापक रूप से भी फैला हुआ है। यह मानव गतिविधियों से संबंधित है और उपयुक्त उपाय करके इसे कम किया जा सकता है। फ्लोराइड के अधिकांश स्रोत मध्य हिमालायी क्षेत्र में हैं। फ्लोराइड और नाइट्रेट की अधिक मात्रा खनिज पदार्थों के पानी के संपर्क में आने से और उसमें घुल जाने से प्राकृतिक रूप में बढ़ती है जिसमें पर्यावरण भी भूमिका निभाता है। मध्य हिमालय में स्थित हैं और यह अपक्षय सेलाईट से फ्लोराइड सैलाइट, फ्लोराइट, फ्लोर एपेटाइट, टोपाज, क्यार्ज और माइका खनिजों से आता है तथा पर्यावरणीय कारणों के परिणामस्वरूप जल संसाधनों में प्रवेश करता है। आयरन, रॉक फोर्मेशन्स में पाया जाता है और जब वर्षा जल इन फोर्मेशन्स से गुजरता है तो यह पानी में घुल जाता है और जलभूतों में इकट्ठा हो जाता है और नीचे बहने वाले तलछट से आयरन प्रदूषक जल में मिश्रित हो जाता है। अतः इस क्षेत्र में इन गतिविधियों को बड़े पैमाने पर जागरूकता और कानून द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। वर्तमान में इस भूभाग में सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि उत्पादन खतरे की स्थिति में हैं अतः इनके सम्न्चित प्रबंधन के लिए, उपयुक्त विकल्प एवं उपयोग की बेहतर दक्षता की आवश्यकता है।

संर्पक करें - गोपाल कृष्ण और अंजु चौधरी, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की-2476 67 इमेलः drgopal.krishan@gmail.com

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