लेख

भारत के पर्वतीय जल स्रोतों (स्प्रिंग्स) की स्थिति और इनके सतत प्रबंधन हेतु जल शक्ति मंत्रालय के प्रयास (भाग 1)

विभिन्न संगठनों द्वारा मानचित्रित किये गए कुल स्प्रिंग्स की संख्या और नीति आयोग की रिपोर्ट में देश भर में संभावित स्प्रिंग्स की संख्या (लगभग 30 से 50 लाख) को संज्ञान में रखते हुए जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा स्प्रिंगशेड प्रबंधन हेतु गठित समिति द्वारा यह महसूस किया गया कि इनकी सम्पूर्ण देश में वास्तविक गणना अति आवश्यक है। इस क्रम में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में प्रथम स्प्रिंग सेन्सस हेतु नोडल एजेंसियां चिन्हित कर अगस्त, 2023 में राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण कार्यक्रम नई दिल्ली में आयोजित किया गया।

Author : डॉ. सोबन सिंह रावत, डॉ. दीपक सिंह बिष्ट

पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर जनसंख्या इन्हीं प्राकृतिक जल स्रोतों के निकट पाई जाती है। हालांकि, इस क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या और अनियोजित शहरी विकास के कारण ये जल स्रोत निरंतर शुष्क या मौसमी हो रहे हैं और उनके जलप्रवाह में निरंतर कमी हो रही है। खनन, सड़कों, राजमार्गो और सुरंगों के निर्माण सहित मानवजनित गतिविधियां इस पूरे क्षेत्र में तेजी से फैल रही हैं, जिससे आंतरिक जलविज्ञानिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है। भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में हिमालयी जल स्रोतों के महत्व के बावजूद, इन जल स्रोतों पर कोई व्यवस्थित आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालाँकि, केंद्र सरकार, राज्य सरकार के विभिन्न संस्थान तथा विभिन्न गैर-सरकारी संगठन, विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत, विभिन्न स्तरों पर स्प्रिंग्स की जानकारी एकत्रित करने के लिए कार्यरत हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, स्प्रिंग्स पर कार्यरत विभिन्न संगठनों के बीच समुचित समन्वय स्थापित नहीं है, जो राष्ट्रीय स्तर पर पर्वतीय क्षेत्रों के जल स्रोतों के जल प्रबंधन में एक मुख्य बाघा है।

पर्वतीय जल स्रोत, पृथ्वी की सतह पर भूजल की दृश्यमान अभिव्यक्ति के रूप में कार्य करते हैं और ये पर्वत श्रृंखलाओं के लाखों निवासियों के लिए जल के प्रमुख स्रोत या सरलता से उपलब्ध जल के एक मात्र स्रोत हैं। सम्पूर्ण भारत में लगभग 20 करोड़ भारतीय इन पर्वतीय जल स्रोतों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर हैं। ये पर्वतीय जल स्रोत मुख्यतः भारतीय हिमालयी क्षेत्र, पश्चिमी घाट (सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला जो कि महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, राज्यों से होकर गुजरती है); पूर्वी घाट (उत्तरी ओडिशा, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु) एवं मध्य भारत (सतपुड़ा और विंध्य पर्वत) में पाए जाते हैं। पर्वतीय जल स्रोत, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक होने के साथ ही कई प्रमुख नदियों के स्रोत भी हैं जो राष्ट्र के कृषि और औद्योगिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र में कई आर्द्रभूमियों, झीलें और झरने भी शामिल हैं जो कि जलीय प्रजातियों और क्षेत्र की जैव विविधता के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं।

भारत के पर्वतीय क्षेत्र में प्राकृतिक जल स्रोतों (स्प्रिंग्स) की उपलब्धता एक सामान्य बात है। नदियों, झीलों और जलाशयों जैसे अन्य जल निकायों की तुलना में इस क्षेत्र में जल स्रोत सामान्यतः आकार में छोटे होते हैं। ये तव उत्पन्न होते हैं जब भूगर्भीय और स्थलाकृतिक कारकों के कारण भूजल स्तर से जल सतह पर प्रवाहित होता है। भारत के पर्वतीय क्षेत्र में कई गर्म और ठंडे जल स्रोत पाए जाते हैं जो लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के साथ ही अपने उपचारात्मक गुणों के लिए भी विख्यात हैं। हालाँकि स्प्रिंग्स अपने छोटे आकार एवं नदियों की तुलना में सूक्ष्म जल प्रवाह के कारण कई बार महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होते हैं, तथापि कई क्षेत्रों में जीवन को बनाए रखने में ये महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करते हैं, विशेषकर उन पर्वतीय क्षेत्रों में जहां ये स्थानीय समुदायों के लिए पेयजल का एकमात्र स्रोत होते हैं। इसके अतिरिक्त, स्प्रिंग्स विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण घटक हैं जो इन जीवों के जीवन को अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत भी सिंचाई के लिए स्प्रिंग्स पर निर्भर होते हैं, जिससे ये कृषि व बागवानी की दृष्टि से भी उपयोगी हो जाते हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर जनसंख्या इन्हीं प्राकृतिक जल स्रोतों के निकट पाई जाती है। हालांकि, इस क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या और अनियोजित शहरी विकास के कारण ये जल स्रोत निरंतर शुष्क या मौसमी हो रहे हैं और उनके जलप्रवाह में निरंतर कमी हो रही है। खनन, सड़कों, राजमार्गों और सुरंगों के निर्माण सहित मानवजनित गतिविधियां इस पूरे क्षेत्र में तेजी से फैल रही हैं, जिससे आंतरिक जलविज्ञानिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है। भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में हिमालयी जल स्रोतों के महत्व के बावजूद, इन जल स्रोतों पर कोई व्यवस्थित आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हालाँकि, केंद्र सरकार, राज्य सरकार के विभिन्न संस्थान तथा विभिन्न गैर-सरकारी संगठन, विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत, विभिन्न स्तरों पर स्प्रिंग्स की जानकारी एकत्रित करने के लिए कार्यरत हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, स्प्रिंग्स पर कार्यरत विभिन्न संगठनों के बीच समुचित समन्वय स्थापित नहीं है, जो राष्ट्रीय स्तर पर पर्वतीय क्षेत्रों के जल स्रोतों के जल प्रबंधन में एक मुख्य बाधा है।

इसे ध्यान में रखते हुए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने दिनांक 27 सितंबर 2022 को भारतीय पर्वतीय क्षेत्रों में स्प्रिंगशेड (स्प्रिंग का जल ग्रहण क्षेत्र) मैपिंग हेतु एक संचालन समिति का गठन किया। इस कमेटी में देश भर में स्प्रिंगशेड मैनजमेंट के क्षेत्र में कार्यरत केन्द्र, राज्य और विभिन्न गैर-सरकारी एजेंसियों संस्थाओं के विशेषज्ञों अधिकारियों को सम्मिलित किया गया है। संचालन समिति का कार्य देश में स्प्रिंग्स पर उपलब्ध आंकड़ों एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा किये जा रहे कार्यों को संग्रहीत कर देश में स्प्रिंगशेड प्रबंधन के कार्यों को बढ़ावा देना तथा इस क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के क्षमता विकास हेतु स्प्रिंगशेड प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर संसाधन सामग्री विकसित करना है।

यह लेख संचालन समिति द्वारा स्प्रिंग जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन अर्थात स्प्रिंगशेड प्रबंधन से संबंधित तीन प्रमुख क्षेत्रों (1) देश में स्प्रिंग्स के आंकड़ों की उपलब्धता की वर्तमान स्थिति, (2) विभिन्न संगठनों द्वारा स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए अपनाई जा रही कार्यप्रणाली, और (3) स्प्रिंगशेड प्रबंधन के क्षेत्र में क्षमता निर्माण की आवश्यकताओं पर केंद्रित है। संचालन समिति द्वारा इन तीनों बिंदुओं पर विभिन्न एजेंसियों से जानकारी एकत्र कर स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए पथप्रदर्शक तैयार करने हेतु इसका विश्लेषण किया गया।

स्प्रिंग पर उपलब्ध सूचना

संबंधित केंद्र सरकार के संगठनों, राज्य सरकार के विभागों, और सम्पूर्ण भारत में स्थित गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) से विभिन्न पहलुओं पर उनके पास उपलब्ध जानकारी प्रदान करने के लिए संपर्क किया गया। इस क्रम में 17 संगठनों द्वारा जानकारी साझा की गई, जिसमें 04 केंद्र सरकार के संस्थान, 9 राज्य सरकार के विभाग और 04 एनजीओ शामिल हैं।

एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए आंकड़ों में उपलब्ध जानकारी से ज्ञात होता है कि ये आंकड़े साझा मंच के अभाव के कारण बिखरे हुए थे। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जी.एस.आई.) के पास मुख्य रूप से भारतीय हिमालयी क्षेत्र में (203) गर्म स्प्रिंग्स के आंकड़े उपलब्ध है।

जी.वी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा के पास से 11 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के 25 जिलों के 6,124 स्प्रिंग्स की उपलब्धता की जानकारी प्राप्त हुई। राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की ने 2,200 स्प्रिंग्स की जियोटैगिंग करते हुए मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश के रावी नदी जलग्रहण क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर के तवी नदी जलग्रहण क्षेत्र और महाराष्ट्र और कर्नाटक में पश्चिमी घाट के कुछ भागों के आँकड़े एकत्र किये हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थित राज्य सरकार के विभागों ने स्प्रिंग्स की जियोटैगिंग में उल्लेखनीय प्रगति की है। राज्यों के पास उपलब्ध स्प्रिंग्स के आंकड़ों में 95% से अधिक स्प्रिंग्स के आंकड़े केवल उत्तर-पूर्वी राज्यों के पास उपलब्ध हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में मेघालय राज्य सरकार के विभागों ने इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्रगति की है, जिसमें मेघालय राज्य सरकार के प्राकृतिक संसाधन संस्थान और जल संसाधन विभाग ने अकेले ही क्रमशः 17,005 और 7,859 स्प्रिंग्स की जानकारी एकत्र की है।

गैर-सरकारी संगठनों में, ग्रामपारी के पास सतारा जिला, महाराष्ट्र के लगभग 200 स्प्रिंग्स की जानकारी तथा चिराग के पास भारत के हिमाचल और उत्तराखंड राज्यों के 2,458 स्प्रिंग्स की जानकारी उपलब्ध है। अन्य दो एनजीओ के पास एक बहुत बड़ा डेटाबेस है जिसमें जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन के उन्नत केंद्र (CWADAM), पुणे ने देश भर में वृहद पैमाने पर कार्य किया है जिसमें उत्तरी भारत में जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर भारत में असम, सिक्किम, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पूर्वी भारत में विहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और पश्चिमी और दक्षिणी भारत से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्य शामिल हैं। भारतीय हिमालयी क्षेत्र के अधिकांश भाग में इस कार्य को पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट, देहरादून द्वारा भी किया गया है, हालाँकि इनके पास उपलब्ध जानकारी अधिकांशतः उत्तराखंड राज्य के स्प्रिंग्स पर केंद्रित है। उपलब्ध आंकडों के अनुसार देश के 525 जिलों में उद्गमित होने वाले 48113 स्प्रिंग्स का राज्यवार विवरण सारणी-2 में दिया गया है।

सभी संगठनों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया गया और भौगोलिक सूचना तंत्र का प्रयोग करके सम्पूर्ण देश में स्प्रिंग्स के उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर एक स्थानिक मानचित्र तैयार किया गया।

सूचनाओं का संग्रहण

सूचनाओं को संग्रहीत करने का उद्देश्यः संबंधित स्प्रिंगशेड प्रबंधन के क्षेत्र में स्प्रिंग्स की स्थिति, आंकड़ों, स्प्रिंगशेड प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली और क्षमता निर्माण के बारे में जानकारी एकत्र करने में सहायता प्राप्त करना है। अतः स्प्रिंग के आंकड़ों के लिए प्रश्नों के विभिन्न सेट तैयार किए गए है, इसमें पहला सेट स्प्रिंग के मानचित्रण के विवरण के बारे में प्रयोग की जाने वाली विधियों व स्प्रिंग पर एकत्र किए गए मापदंडों पर केंद्रित हैं। विभिन्न एजेंसियों द्वारा कवर किए गए क्षेत्र की सीमा की जानकारी प्राप्त करने और अब तक चयनित किये गए स्प्रिंग्स की संख्या का प्रारंभिक आंकलन करने के लिए स्प्रिंग का मानचित्रण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह देखते हुए कि स्प्रिंग का मानचित्रण एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, स्प्रिंग के मानचित्रण के लिए उपयोग की जाने वाली पद्धतियों को समझना भी अनिवार्य है। इसके अलावा, यह जानना भी आवश्यक है कि विभिन्न संगठन इस कार्य के लिए अपने पास उपलब्ध कार्यबल का उपयोग किस प्रकार सुनिश्चित कर रहे हैं। 

आंकड़ा संग्रहण के दौरान यह पाया गया कि आंकड़े संग्रहीत करने वाली संस्थाएं दो विधियों से आंकड़े संग्रहीत कर रही हैं: (i) पेपर आंकडा संग्रह विधि और (ii) इलेक्ट्रॉनिक आंकडा संग्रह विधि। पेपर आंकड़ा संग्रह विधि अधिक समय लेने वाली, बोझिल, महंगी और त्रुटि के लिए अतिसंवेदनशील है, जबकि आंकडा संग्रहण विधि त्रुटि रहित, समय बचाने वाली एवं सरल है। इसके अलावा, यह भी पाया गया कि अधिकांश संगठन अभी भी कागज आधारित सर्वेक्षण पर विश्वास करते हैं, जो अधिक समय लेने वाली और कम प्रभावी विधि है, यह उपयोगकर्ता के लिए अनुकूल इंटरफेस के साथ- साथ एक सामान्य अनुप्रयोग की आवश्यकता को दर्शाती है, जिसका उपयोग विभिन्न एजेंसियों द्वारा किया जा सकता है। सामान्यतः यह महसूस किया गया है कि यह कोई स्वीकार्य मानदंड नहीं है क्योंकि अलग-अलग संगठन स्प्रिंग्स को अलग-अलग तरीके से मानचित्रण कर रहे हैं। हालाँकि, प्रमुख रूप से, गाँव की सीमा के भीतर स्थित, या सुलभता से उपलब्ध स्प्रिंग्स का मानचित्रण किया जा रहा है। यह देश भर में आंकडा संग्रह दृष्टिकोण में विसंगतियों से बचाव के लिए, स्प्रिंग्स के चयन हेतु सामान्य दिशानिर्देशों की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। स्प्रिंग मानचित्रण करते समय सूचना संग्रह के लिए कोई स्पष्ट स्प्रिंग मानचित्रण मानदंड व दिशानिर्देश उपलब्ध नहीं हैं। कुछ संगठन केवल स्प्रिंग्स के अक्षांश-देशांतर एकत्र कर रहे हैं जबकि कुछ बहुत व्यापक डेटाबेस बना रहे हैं। इस प्रकार विभिन्न तकनीकों से तैयार की गयी आंकडा सूची में विभिन्न स्प्रिंग्स के लिए अलग-अलग स्तर का विवरण उपलब्ध होगा। अतः आंकड़ा सूची की न्यूनतम आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए आंकडा संग्रह हेतु उपयुक्त दिशानिर्देश होना अनिवार्य है।

सारणी-1: स्प्रिंग्स से सम्बंधित उपलब्ध प्रासंगिक जानकारी एवं आंकड़े प्रदान करने वाले संस्थान

क्र.सं. 

संस्थान का नाम

स्प्रिंग्स की संख्या

केंद्र शासित संस्थान

1

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (उत्तरी, पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र), खान मंत्रालय, भारत सरकार

203

2

गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार

6124

3

राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार

2217

4

राष्ट्रीय जलविज्ञान परियोजना, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार

11471

राज्य शासित विभाग

5

राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी, WDC-PMKSY, असम सरकार

36

6

जलविभाजक प्रबंधन के लिए राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी, मणिपुर सरकार

254

7

जल संसाधन विभाग, मेघालय सरकार

7859

8

प्राकृतिक संसाधन संस्थान, मेघालय सरकार

17005

भूमि संसाधन विभाग, नागालैंड सरकार

2885

10

ग्रामीण विकास विभाग, सिक्किम सरकार

1800

11

वन विभाग, उत्तराखंड सरकार

120

12

सिंचाई अनुसंधान संस्थान, उत्तराखंड सरकार

135

13

जलागम प्रबंधन निदेशालय (PMKSY-WDC 2.0), उत्तराखंड सरकार

808

गैर-शासकीय संगठन

14

ग्रामीण एवं पर्यावरण केंद्र (ग्रामपारी), महाराष्ट्र

200

15

जल संसाधन विकास एवं प्रबंधन का उन्नत केंद्र (ACWADAM), पुणे, महाराष्ट्र

10000+

16

सेंट्रल हिमालयन रूरल एक्शन ग्रुप (CHIRAG), उत्तराखंड

2458

17

पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (PSI), देहरादून

1172

अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ है कि भूजल विज्ञान दृष्टिकोण गतिमान है तथा इस क्षेत्र में कार्यरत लगभग आधे संगठन स्प्रिंगशेड या पुनर्भरण क्षेत्र को चित्रित करने के लिए इसका अनुसरण कर रहे हैं। भूजल वैज्ञानिक दृष्टिकोण में स्प्रिंगशेड को चित्रित करने के लिए भूवैज्ञानिक और जलविज्ञान संबंधी

( . . . . . . . .  जारी)

स्रोत - जलचेतना, जनवरी 2024

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