देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने राष्ट्रीय दैनिक हिन्दुस्तान द्वारा आयोजित 'हिन्दुस्तान' शिखर समागम के दौरान उत्तराखंड में जल संरक्षण के क्षेत्र में: अहम भूमिका निभा रहे बीस लोगों को सम्मानित किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने पानी-पर्यावरण के क्षेत्र में सबके योगदान को सराहा।
पाणी राखो आंदोलन के सूत्रधार सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी गढ़वाल के उफरेंखाल में चाल-खाल से जलस्रोतों का संरक्षण किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में उनका उल्लेख कर चुके हैं। भारती ने डेढ़ सौ गांवों में 30 हजार से ज्यादा चाल-खाल बनाकर जल संरक्षण किया।
रुद्रप्रयाग के जखोली निवासी प्रकाश को जलशक्ति मंत्रालय जल प्रहरी सम्मान से नवाज चुका है। वे अभी रिलायंस फाउंडेशन संग काम कर रहे हैं। सामाजिक सहभागिता से उन्होंने चिरबिटया जल संरक्षण का सफल मॉडल तैयार किया, जिसके तहत करीब 11 लाख लीटर पानी संग्रहित हो पा रहा है।
बीज बम आंदोलन के संयोजक द्वारिका प्रसाद सेमवाल टिहरी-उत्तरकाशी के सीमांत क्षेत्रों में 'कल के लिए जल' अभियान चला रहे हैं। वे अभी तक अपने साथ 500 जलनायक जोड़ चुके हैं, जो आसपास के स्कूलों में छात्रों को प्रेरित करते हैं। उन्होंने ऐसे 3,500 जल कुंड सात महीने में चमकोट में बनाए। इसके लिए 70 महिलाओं का समूह 'गंगा सखी' भी बनाया।
मसूरी की तलहटी पर बसे सलाण गांव निवासी दीपक जोशी दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ 2017 में गांव लौटे तो पानी का संकट था। एकमात्रं जलस्रोत गर्मियों में सूख जाता था। उन्होंने इसे बचाने की मुहिम शुरू की। इसके कैचमेंट एरिया में बांज के साथ हिसालू का रोपण शुरू किया। पांच साल में ही यहां जंगल बन गया। जलस्रोत में पानी भी बढ़ा।
सुधीर 2014 में रिवर्स माइग्रेशन के तहत दिल्ली से एक चैनल छोड़कर गांव आए। अभी गांव में ही काम कर रहे हैं। उन्होंने जन सहभागिता से पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए 'बंजर खेत आबाद करो' मुहिम चलाई है। 12 हजार से ज्यादा फलदार, 15 हजार से ज्यादा बड़ी इलायची की पौध लगवाई। 20 जलाशय बनाए, जिसमें फीलगुड जलाशेय काफी प्रसिद्ध है।
जिले की सुदूरवर्ती उर्गम घाटी के 12 से अधिक गांवों में लक्ष्मण जल संरक्षण कर रहे हैं। 2010 में इसकी शुरुआत की। अब तक 3500 से ज्यादा चाल-खाल बनवा चुके हैं। बाकी लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं।
सेना से रिटायर होने के बाद टिहरी में चमियाला के स्कूल में सरकारी टीचर हैं। चेतराम ने देश के पहले सीडीएस रहे जनरल बिपिन रावत की पहली पुण्यतिथि पर 10 जलकुंड बनाए। खुद के साथ स्कूली बच्चों के जन्मदिन पर जलकुंड बनाते आ रहे हैं। हर हफ्ते एक घंटे बच्चों को जल संरक्षण की शिक्षा भी दे रहे हैं।
पौड़ी के सांगुड़ा निवासी विद्यादत्त शर्मा 87 साल के हो चुके हैं। 40 वर्ष पूर्व जब कोई वर्षा जल संरक्षण का नाम तक नहीं लेता था, तब गांव में एक लाख लीटर क्षमता का टैंक बनाया, जिससे पहाड़ पर हरियाली लौट आई। वे आज भी खेतों में काम करते हैं। इसी टैंक से मिलने वाले पानी से खेतों की सिंचाई होती है। वे कई किताबें भी लिख चुके हैं। मुक्त विवि मानद डॉक्टरेट उपाधि दे चुका है। उन पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'मोतीबाग' प्रतिष्ठित ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामित हुई थी।
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र देहरादून के वैज्ञानिक हैं। जल संसाधन प्रबंधन, संरक्षण एवं जल गवर्नेस पर उनका व्यापक शोध है। मैदानों-पहाड़ों में जल संरक्षण की विधियां, नौले-धारों के संरक्षण के तरीके, वर्षा जल संरक्षण एवं भूजल रिचार्ज पर उनके 55 से अधिक शोध पत्र, बुक चैप्टर प्रकाशित हो चुके हैं। वे छात्रों से नियमित संवाद संग प्रशिक्षण देते हैं। 10
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक लंबे समय से तालाबों के संरक्षण का काम कर रहे हैं। कई स्थानों पर अहम भूमिका भी निभाई, जहां भूजल रिचार्ज हुआ। वे तालाबों के किनारे केले के पौधे रोपने को प्रोत्साहन दे रहे हैं, ताकि तालाबों में गंदगी न जाए और गाद ना भरे। इससे तालाब में जल संग्रहण की क्षमता लंबे समय तक बनी रहती है।
पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट निवासी राजेंद्र सिंह बिष्ट करीब 30 वर्षों से जल संरक्षण में जुटे हैं। उनकी इस मुहिम ने आज हिमालयन ग्राम विकास समिति का रूप ले लिया है। उन्होंने 75 गांवों में जल प्रबंधन किया है। उनसे प्रेरित ग्रामीण अपने गांव की पेयजल योजनाओं का 20 वर्षों से रखरखाव कर रहे हैं। पांच गांवों की समस्या का समाधान वर्षा जल संग्रहण से किया।
बेरीनाग के झलतोला की ग्राम प्रधान ममता बोरा वन पंचायत में पौधे लगाकर जल स्रोत बचाने का काम कर रही हैं। यहां तालाब में बारिश का पानी जमा होता है और आसपास के जलस्रोत रिचार्ज हो रहे हैं। इसको अमृत सरोवर नाम दिया गया है। क्षेत्र के बाकी जल स्रोतों में जहां हर साल गर्मी में कमी देखी जा रही है, वहीं बोरा के संरक्षित जलस्रोतों से अब पर्याप्त पानी मिल रहा है।
तीस साल से भारत-चीन सीमा से लगे गुंजी, नाभीढांग, कालापानी सहित पूरे पिथौरागढ़ में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम चला रहे हैं। एक लाख से अधिक पौधे रोप कर हिमालय बचाओ अभियान चला रहे हैं। उन्होंने 'एक पौधा धरती मां के नाम' अभियान के तहत अब तक डेढ़ लाख लोगों को हिमालय प्रतिज्ञा दिलाई। आदि कैलास और मानसरोवर यात्रियों को पौधरोपण और कूड़ा वापस ले जाने को प्रेरित कर रहे हैं। केएमवीएन के पास शहीद वाटिका और आसपास क्षेत्र को हरा-भरा भी बनाया।
पेशे से शिक्षक मोहन कांडपाल द्वाराहाट-भिकियासैंण क्षेत्र में पांच हजार से अधिक चाल-खाल बना चुके हैं। बीस साल से जल संरक्षण करते हुए बच्चों और महिला समूहों की मदद से नौ जगह बांज के जंगल विकसित किए। द्वाराहाट में सूखने की कगार पर पहुंच चुकी रिस्कन नदी को पुनर्जीवित करने में जुटे हैं। इसके लिए उन्होंने 62 से अधिक गांवों में अभियान चलाया हुआ है।
बिष्ट एक दशक से जल संरक्षण में जुटे हैं। पर्यावरण के लिए खतरनाक पॉलीथिन का शानदार उपयोग जल संरक्षण में किया। रामगढ़ नदी से लगे गांवों में 1000 से अधिक पॉलीथिन से निर्मित टैंक बनाए। वर्तमान में यह पानी खेती और दूसरे कामों में उपयोग हो रहा है। रामगढ़ नदी संरक्षण के अलावा बिष्ट ने सूपी, सतबुंगा, लोद, बूढ़ी बना आदि गांवों में प्राकृतिक जलस्रोत और नौलों में नई जान फूंकने का काम किया।
जल संरक्षण के लिए अभी तक 6000 से अधिक खंतियां, चाल-खाल, पोखर बना चुके हैं। इससे करोड़ो लीटर पानी भूमिगत होकर भूजल के रूप में संरक्षित हो रहा है। उनकी पहल पर क्षेत्र में 65 हजार से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं। ओखलकांडा ब्लॉक के नाई गांव के आसपास 150 हेक्टेयर क्षेत्र को मॉडल जंगल के रूप में विकसित करने का काम भी किया।
चौखुटिया तहसील के खजुरानी चनौला गांव निवासी शंकर सिंह बिष्ट लंबे समय से जंगल और पानी बचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने डेढ़ हजार चाल-खाल बनाए। चनौला, खजुरानी, खुड़ा, खनसर बगड़ी, ताल नागाड़, भटकोट, सुनगढ़ी आदि गांवों में 10 हजार से अधिक पौधे रोप चुके हैं। उन्होंने 50 से अधिक बार 'संडे फॉर मदर नेचर' मुहिम सफलतापूर्वक चलाई।
जगदीश ने भवाली में शिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने का काम किया। इसके तहत 11 अक्तूबर 2015 से उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी की सफाई की जा रही है। नदी के आसपास 500 से अधिक चाल-खाल तैयार किए गए। इससे जलस्रोत रिचार्ज हो रहे हैं। उनकी पहल परं करीब 200 क्विटल पॉलीथिन बोतलों में भर कर सजावट के तौर पर क्यारियों में लगाया जा रहा है।
जल संरक्षण क्षेत्र में बागेश्वर के ग्राम लेटी के प्रधान गोविंद सिंह तीन वर्षों से मुहिम चला रहे हैं। उन्होंने गांव के नौले बचाने के लिए 172 खंतियां तैयार कीं। वन विभाग और हंस फाउंडेशन की मदद से 40 हजार पौधे रोपे। परिणाम यह हुआ कि नौले में पानी बढ़ गया है। गर्मियों में अक्सर सूख जाने वाला नौला लबालब रहता है। इससे करीब 90 परिवार लाभान्वित हो रहे हैं।
बागेश्वर के गरुड़ निवासी जगदीश ने 40 साल में अपनी बंजर पड़ी जेमीन पर मिश्रित वन उगा दिया। इससे सूख चुके स्रोत पुनर्जीवित हो गए हैं। साथ ही, महिलाओं को ईंधन-चारे के लिए 10 किलोमीटर दूर भी नहीं जाना पड़ता है। उन्होंने कई ऐसे पेड़ उगाए, जो केवल उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसके अलावा उन्होंने 400 नाली जमीन में चाय का बगीचा भी विकसित किया। वे लोगों को विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं।