लेख

हिमालय को चाहिएं हमदर्द

Author : महेश पाण्डे और प्रवीन कुमार भट्ट

भारतभूमि के मस्तक हिमालय का भला महज सम्मान से ही नहीं हो सकता, उसे अलग नीति चाहिए जो उसके दुख-दर्द को ध्यान में रखकर बनाई गई हो। पर्वतीय राज्यों के लिए अलग हिमालय नीति की मांग जोर-शोर से उठ रही है।

हिमालय और हिमालय से जुड़े सवालों को जानने-समझने और उठाने से जुड़ी मुहिम धीरे-धीरे रंग लाने लगी है। हिमालयी परिवेश को सुरक्षित-संरक्षित रखने की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं ने पिछले साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। दूसरे ही साल यह इतना लोकप्रिय हो गया कि अकेले देहरादून शहर में छह से अधिक स्थानों पर हजारों लोगों ने अपने-अपने तरीके से हिमालय दिवस मनाया। हिमालय दिवस असल में उस पूरी प्रक्रिया और लड़ाई की एक कड़ी के रूप में है जहां देश-दुनिया के हिमालय प्रेमी भौगोलिक रूप से भिन्न इस भूभाग के लिए अलग रीति-नीति की बात कर रहे हैं। इस बार का हिमालय दिवस संस्थाओं, दबाव समूहों, रंग-संस्कृति कर्मियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने तो मनाया ही, पहली बार स्कूलों में भी हिमालय दिवस के कार्यक्रम आयोजित किए गए।

सब तरफ दिख जाते हैं ऐसे विरोध से भरे नारे

पर्यावरणविद् सुरेश भाई ने कहा कि हिमालय का जनजीवन एवं उनकी जीविका का आधार मुख्य रूप से प्राकृतिक संसाधन हैं जिन पर अब भी आम लोगों का अधिकार नहीं है। हिमालय की नदियों से देश को 60 प्रतिशत जलापूर्ति होती है। यह जलापूर्ति भविष्य में भी जारी रहे इसके लिए नदियों के उद्गम वाले हिमालयी राज्यों में नदियों का जल बहाव निरंतर एवं अविरल रखना जरूरी है। पलायन रोकने के लिए पहाड़ों में नए सिरे से भूमि प्रबंधन किए जाने की जरूरत है।

'हम' के लिए गांव-गांव से देहरादून पहुँची महिलाएं

महिला समाख्या कार्यकर्ता डॉ. चंद्रा भंडारी ने कहा कि महिलाएं हिमालयी जनजीवन की रीढ़ हैं। घर-गृहस्थी से लेकर कृषि कार्य तक सब कुछ महिलाएं ही संभालती हैं। पहाड़ में महिलाओं को चारा-पानी सहित रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए लंबी-लंबी यात्राएं व कठिन श्रम करना पड़ता है। महिला केंद्रीत ऐसी नीतियां बनाए जाने की जरूरत है जिनसे महिलाओं के ऊपर से काम का बोझ कम होने के साथ ही, उन्हें आर्थिक रूप से स्वाबलंबी भी बनाया जा सके।

हिमालय दिवस के अवसर पर देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम

हिमालय दिवस मनाने के साथ ही जनसंगठनों ने हिमालय लोकनीति नाम से एक ड्राफ्ट भी तैयार किया है। इस लोकनीति में जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों के अधिकार की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभाओं का अधिकार होना चाहिए तथा वन और भूमि से संबंधित सरकारी विभागों को तकनीकी व आर्थिक सहयोगी के रूप में रहना चाहिए। वन, वनभूमि और वनौषधी को लेकर भी हिमालय लोकनीति में कहा गया है कि अगर वनों पर ग्रामीणों का अधिकार होगा तो प्रत्येक गांव का अपना जंगल होगा जहां से वह घास, लकड़ी व चारे की आपूर्ति कर सकता है। परियोजनाओं और विकास के बढ़ते बोझ के कारण अब कई ऐसे गांव हैं जिनका कोई जंगल नहीं बचा है। अंतर्राष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग के अनुबंधों से हिमालय क्षेत्र को मुक्त रखने की बात भी हिमालय लोकनीति में कही गई है। लोकनीति का कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण हिमालय क्षेत्र में पड़ने वाले प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन स्थानीय लोगों के साथ मिलकर ही किया जना चाहिए। अध्ययन के बाद तापमान वृद्धि को रोकने के उपाय भी स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर ही किए जाने चाहिए। लोकनीति हिमालय में शिक्षा, पर्यटन और रोजगार के अवसर बढ़ाने की भी मांग करती है। लोकनीति में हिमालय राज्यों के लिए केंद्र सरकार सेहिमालय विकास मंत्रालय बनाने की भी मांग की गई है।

हिमालय पर मंडरा रहा है खतरा

'हम' की एक रैली में अपनी मांगो के साथ शामिल लोग

Email:- mahesh.pandey@naidunai.com

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