लेख

जल समस्या के कारण और निवारण (Water Problem: Causes and Prevention in Hindi)

डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय

दूर संचार माध्यमों, प्रचार साधनों के माध्यम से जल-संकट की समस्या जन-जन तक पहुँचाकर जन-मानस को सचेत करने की भी आवश्यकता है। गंदे नालों में बहते मल-जल तथा उद्योगों द्वारा निष्कासित प्रदूषित जल के भी नियंत्रण की आवश्यकता है। वर्षा के जल को एकत्रित कर उसे उपयोग में लाना होगा ताकि उसका सदुपयोग हो सके। इस प्रकार जल संकट से मुक्ति मिल सकती है।

वारि, नीर, अम्बु, वन, जीवन, तोय, सलिल, उदक।
गर करें सदुपयोग इस जल का, पशु पक्षी सभी-फुदक।।
“हम एक ऐसे विश्व में हैं, जिसमें जल गंभीर चुनौती बन रहा है। प्रतिवर्ष 8 करोड़ नए लोग विश्व के जल संसाधन पर हक जता रहे हैं। दुर्भाग्यवश, अगली अर्द्धशताब्दी में पैदा होने वाले 3 अरब लोग उन देशों में जन्म लेंगे जहाँ घोर जल संकट है। सन 2050 तक भारत में 52 करोड़, पाकिस्तान में 20 करोड़, चीन में 21 करोड़ लोग जन्म लेंगे। मिस्र, ईरान तथा मैक्सिको की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाएगी। ये करोड़ों लोग जल निर्धनता से ग्रस्त होंगे। विश्व के भूमिगत जलागारों में प्रतिवर्ष 16 अरब घनमीटर का ह्रास हो रहा है। एक टन अनाज पैदा करने में लगभग एक हजार टन जल की आवश्यकता होती है। अतः उक्त जलस्तर ह्रास का अर्थ है- प्रतिवर्ष 16 करोड़ टन अनाज की क्षति।”

पेय-जल संकट

“ग्लोबल वाटर पॉलिसी प्रोजेक्ट की सांद्रा के अनुसार जल को बेच सकने की क्षमता से जल की बर्बादी कम होगी और जीवों का भला होगा। अब समस्त देशों को पानी की समस्या पर तीव्र गति से कार्य प्रारंभ कर देना चाहिए। फ्रांस ने जल आपूर्ति का निजीकरण एक शताब्दी पहले ही कर दिया। इंग्लैंड में 1989 में दस क्षेत्रीय जल प्राधिकरणों का निजीकरण कर दिया गया। विकासशील देशों में भी इस दिशा में पहले से ज्यादा आवश्यकता है, कि वह योजना सही दिशा-निर्देश तथा तेजी से कार्य जारी रखते हुए एक निश्चित परिणाम तक पहुँच सके।”

भारत में जल-प्रदूषण के कारण

नागरिक दायित्व

लेखक परिचय

डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय
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