चोंपड़ा मंदिर वह पुरातन स्थल है जहाँ महाराजा छत्रसाल जी ने प्राणनाथ जी को पूर्ण ब्रह्मस्वरूप मानकर किलकिला नदी के अमराई घाट से पालकी में बैठाकर और अपने कंधों द्वारा उठाकर सर्वप्रथम पन्ना नगर में सन् 1683 (संवत् 1740) में लाकर एवं प्रमुख द्वार से अपनी पाग और रानी की साड़ी के पांवड़े बिछाकर आरती उतारकर स्वागत किया था। यह मंदिर महान तपोभूमि है, जहाँ कई ब्रह्म मुनियों ने पूर्ण ब्रह्म परमात्मा के साक्षात् दर्शन किये हैं।