जिस आर्थिक विकास की नोक पर आज का मानव विश्व में सिरमौर बनने का सपना हृदय में संजोए है, वह एक दिन मानव सभ्यता के पतन का कारण बनेगा। भावी पीढ़ी और पर्यावरण का ध्यान रखे बिना प्राकृतिक संसाधनों के निर्ममतापूर्वक दोहन से पारिस्थितिक तंत्र की प्रकृति बदल रही है। ऐसे में चिंता हर स्तर पर होनी चाहिए। न सिर्फ सरकारी, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी।