लेख

क्‍या हमारे अपने हाथ में बैक्‍टीरिया पैदा होते रहते हैं

Author : दुष्‍यंत कुमार अग्रवाल

सूक्ष्म बैक्टीरिया सर्वत्र विद्यमान होते हैं। हम सामान्यतः उनको देख नहीं पाते हैं। क्या हमारे हाथों में भी ये बैक्टीरिया होते हैं? क्या ये हाथों में सदैव विद्यमान रहते हैं? क्या सामान्य विधि से हम इनको देख सकते हैं? आइए घर पर ही प्रयोग कर यह सब जानने का प्रयास करते हैं।

सामग्री कहाँ से मिलेगी?

1. काँच या प्लास्टिक का एक छोटा वायुरोधी (एयरटाइट) पात्र (घर में उपलब्ध हो सकता है)

2. जिलेटिन डेजर्ट (घर में उपलब्ध/ बाजार से )

3. पानी

4. पानी गर्म करने का पात्र (घर में उपलब्ध)

5. एक चम्मच (घर में उपलब्ध)

6. गर्म करने के लिये हीटर/गैस स्टोव/स्टोव (घर में उपलब्ध)

7. रेफ्रिजरेटर (घर में उपलब्ध)।

क्या करना है ?

1. सर्वप्रथम एक पात्र में 100 मिलिलीटर पानी लेकर गर्म कीजिए

2. इस गर्म पानी में 20-25 ग्राम जिलेटिन डालिये। इस मिश्रण को चम्मच से अच्छी तरह से तब तक हिलाइए जब तक कि जिलेटिन ठीक से घुल नहीं जाए। इस पर कुछ बूँदें अंगूर के रस की डालिये

3. अब इस गर्म मिश्रण को वायुरोधी पात्र में डालिये।

4. इस पात्र को ढक्कन से अच्छी तरह से बंद कर दीजिए।

5. इस पात्र को एक रात के लिये रेफ्रिजरेटर में रख दीजिए ताकि मिश्रण ठोस रूप में आ जाए।

6. मिश्रण के ठोस हो जाने पर पात्र को रेफ्रिजरेटर से बाहर निकाल लीजिए।

7. पात्र का ढक्कन हटा कर ठोस मिश्रण को अपने हाथ से स्पर्ष कीजिए तथा फिर से ढक्कन लगा दीजिए।

8. अब इस पात्र को कमरे के तापमान पर रख दीजिए। कुछ दिन तक कमरे के तापमान पर रखा रहने दें।

9. पाँच-छः दिन बाद जिलेटिन की सतह को ध्यानपूर्वक देखिए।

देखिए क्या होता है?

आप देखेंगे कि ठोस मिश्रण की सतह पर कुछ सफेद धब्बे उभर आए हैं। ये सफेद धब्बे और कुछ नहीं आपके हाथ के बैक्टीरिया की पतली परत ही हैं। इस प्रयोग को दोहरा कर देखिए, हाँ इस बार ठोस मिश्रण को स्पर्ष करने से पूर्व हाथों को अच्छी प्रकार साबुन से धो लीजिए। इस बार भी आप देखेंगे कि बैक्टीरिया विकसित हुए हैं।

आइए समझें कि ऐसा क्यों होता है?

सूक्ष्म बैक्टीरिया सर्वत्र विद्यमान रहते हैं परंतु हम उनको देख नहीं पाते क्योंकि वे अत्यंत सूक्ष्म और बिखरे हुए होते हैं। इस प्रयोग में हाथ में उपस्थित बैक्टीरिया ठोस जिलेटिन को स्पर्ष करने से उसमें आ जाते हैं। जिलेटिन के रूप में उनको भोजन मिल जाता है। इस उपयुक्त वातावरण में उनका विकास तेजी से होता है और सफेद धब्बों के रूप में वे दिखाई देने लगते हैं। पर्याप्त पोषक भोजन उपलब्ध होने से वे विभाजित होकर कई गुना बढ़ जाते हैं तथा जगह-जगह एकत्र होते जाते हैं और उनको हम देख सकते हैं।

सम्पर्क

दुष्यन्त कुमार अग्रवाल

135, इंद्रप्रस्थ, कॉम्पलेक्स-बी, सेक्टर-14, उदयपुर-313002, (राजस्थान), ई-मेल : dushyantkagarwal@gmail.com

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