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मैंग्रोव का अर्थ और मैंग्रोव वनों की विशेषता

इंडिया वाटर पोर्टल

मैंग्रोव लवण सहिष्णु वनस्पति (Salt-Tolerant Vegetation) है जो नदियों और मुहाने के अंतर्ध्वारीय क्षेत्रों में उगती है। इन्हें 'ज्वारीय वन' कहा जाता है और ये 'उष्णकटिबंधीय आर्द्रभूमि वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र' की श्रेणी में आते हैं। वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वन दुनिया भर के 30 देशों के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 2,00,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। 

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

वन सर्वेक्षण रिपोर्ट (FSR), 2021 का अनुमान है कि भारत में 4,992 वर्ग किलोमीटर भूमि मैंग्रोव से आच्छादित है। मैंग्रोव भूमि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है। • पिछली शताब्दी में, देश ने अपने मैंग्रोव कवर का 40% भाग खो दिया। उदाहरण के लिए, एक शोध के अनुसार, केरल ने पिछले तीन दशकों के दौरान अपने 95% मैंग्रोव क्षेत्र खो दिए हैं।

मैंग्रोव का महत्त्व 

  • • एज इफ़ेक्ट (Edge Effect): मैंग्रोव विभिन्न आवासों के बीच सामंजस्य स्थापित कर उच्च रूप से प्रजातियों में विविधता प्रदर्शित करते हैं साथ ही 3000 से अधिक मछली की प्रजातियों के लिए आवास और नर्सरी के रूप में ये कार्य करते हैं।

  •  • कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration): मैंग्रोव वन कार्बन का दीर्घकालिक भंडारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  •  • पारिस्थितिक निकेत (Ecological Niches): मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के जीवों के लिए भोजन, प्रजनन और पौधशाला के मैदान प्रदान करते हैं। ये मत्स्य पालन हेतु महत्त्वपूर्ण हैं और लकड़ी तथा अन्य ईंधन संबंधी संसाधन प्रदान करते हैं।

  •  • जल निस्पंदन और शुद्धिकरण (Water Filtration & Purification): मैंग्रोव प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करते हैं, साथ ही नदियों और बाढ़ के मैदानों से समुद्र में बहने वाले जल को शुद्ध करते हैं। यह निस्पंदन प्रवाल भित्तियों सहित तटीय पारिस्थितिकी की रक्षा करने में मदद करता है। 

  • • रोजगार में सहायकः मैंग्रोव स्थानीय समुदायों को रोजगार के अनेक अवसर प्रदान करने के साथ, लकड़ी और ईंधन के मूल्यवान स्रोत के रूप में कार्य करते हैं तथा मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में आजीविका को बढ़ावा देते हैं।

  •  • आघात अवशोषण (Shock Absorption): मैंग्रोव उच्च ज्वार और लहरों के प्रभाव को कम करने के साथ, तटरेखा को कटाव से बचाते हैं एवं चक्रवात और सुनामी जैसी आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करते हैं।


मैंग्रोव के हास के कारण 

• समुद्र तल में वृद्धि और तटीय कटावः ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। बढ़ते समुद्र स्तर ने मैंग्रोव वनों के बड़े क्षेत्रों को जलमग्न कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप वे कम हो गए हैं।

• नदी के जलस्तर में कमीः मैंग्रोव उन क्षेत्रों में व्याप्त हैं, जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं। इस प्रणाली को जीवित रहने के लिए नमक और मीठे जल के बीच एक शानदार संतुलन की आवश्यकता होती है। विदेशी प्रजातियों का आक्रमणः पादपों और जानवरों की गैर-देशी और विदेशी प्रजातियों के आने से इस क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियों के लिए खतरा पैदा हो रहा है। 

नदियों पर बाँध निर्माणः नदी के मार्गों पर बनाए गए बाँध मैंग्रोव वनों तक पहुँचने वाले जल और तलछट की मात्रा को कम कर देते हैं, जिससे उनके लवणता स्तर में बदलाव आता है। प्रदूषणः मैंग्रोव को उर्वरकों, कीटनाशकों, घरेलू सीवेज और नदी प्रणालियों द्वारा बहाए गए औद्योगिक अपशिष्टों के कारण भी गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है। 

जलवायु परिवर्तनः असामान्य रूप से कम वर्षा और समुद्र की सतह और हवा के अत्यधिक उच्च तापमान के कारण मैंग्रोव वनों के अस्तित्व को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया।

इन मैंग्रोव वनों को संरक्षित करने के लिए किए गए प्रयास  - 

• मिष्टी योजनाः केंद्रीय बजट 2023-24 में मिष्टी योजना की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य भारत के समुद्र तट के साथ-साथ लवणीय भूमि पर मैंग्रोव वृक्षारोपण की सुविधा प्रदान करना है। 

• राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रमः मैंग्रोव और कोरल रीफ के संरक्षण और प्रबंधन पर राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के तहत केंद्रीय क्षेत्र की योजना।

• SAIME पहलः सतत् झींगा पालन हेतु समुदाय-आधारित पहल (Sustainable Aquaculture In Mangrove Ecosystem-SAIME) के तहत पश्चिम बंगाल में किसानों ने 30 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगा पालन की शुरुआत की है, साथ ही किसान पश्चिम बंगाल में झींगा तालाबों के आसपास मैंग्रोव के वृक्ष लगा रहे हैं। 

• वैश्विक मैंग्रोव गठबंधन (GMA): भारत COP 27 के दौरान वैश्विक मैंग्रोव गठबंधन में शामिल हुआ। इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक मैंग्रोव कवरेज को मौजूदा स्तरों से दोगुना करना है। 

• भविष्य के लिए मैंग्रोव (MFF): आईयूसीएन (IUCN) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) इस पहल के सह-अध्यक्ष हैं। रिपोटों के अनुसार, संगठन कई एशियाई देशों में लिंग-एकीकृत मैंग्रोव बहाली और सतत विकास पहल कर रहा है। 

• ब्लू कार्बन इनिशिएटिवः ब्लू कार्बन इनिशिएटिव तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण एवं बहाली के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने पर केंद्रित है।

• इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर मैंग्रोव इकोसिस्टम (ISME): आईएसएमई एक गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1990 में मैंग्रोव के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य उनके संरक्षण, तर्कसंगत प्रबंधन और सतत उपयोग को बढ़ाना है। 

आगे की राह 

• मौजूदा मैंग्रोव की व्यवस्थित और आवधिक पर्यावरणीय निगरानीः इन वनों पर निर्भर विभिन्न जीव प्रजातियों का दस्तावेज़ीकरण होना चाहिए।
 • मैंग्रोव के क्षत-विक्षत भागों को पुनर्जीवित करने के लिए जैव-पुनर्स्थापना का उपयोगः ये तकनीकें मूल जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करती हैं। पारिस्थितिक पुनरुद्धार प्राकृतिक पुनर्जनन की तुलना में मैंग्रोव को तेज गति से पुनर्जीवित करती है।
 • संरक्षण और प्रबंधन के लिए सामुदायिक भागीदारीः इन वनों पर निर्भर समुदायों को इन मैंग्रोव के सतत उपयोग को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक आर्थिक गतिविधियों को अपनाने के लिए समर्थन दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए: बॉन बीबी एक वन देवी हैं जिसकी पूजा सुंदरबन में विभिन्न धर्मों (हिंदू और मुस्लिम) के लोग करते हैं।

केस स्टडी 

गुयाना में मैंग्रोव का पुनरुद्धार एक बेहतरीन उदाहरण है। गुयाना के समुद्र तटों पर बाढ़ और तटीय कटाव के प्रतिरोध को मजबूत करने की उनकी पहल में, महिलाओं ने प्रमुख रूप से नेतृत्व किया। • मैंग्रोव जागरूकता और पुनरुद्धार के लिए महिलाओं के नेतृत्व में एक स्वयंसेवी समूह ने कड़ी मेहनत की साथ ही मधुमक्खी पालन के संबंध में प्रशिक्षण और संसाधनों का उचित दोहन करने के लिए 'मैंग्रोव सहकारी समिति' की स्थापना की गयी। इस प्रकार महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप सकारात्मक परिणाम देखने को मिले।

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