भारत में जल संकट गहराता जा रहा है। आए दिन कहीं न कहीं पानी की किल्लत या पानी को लेकर हंगामे के मामले सुर्खियों में रहते हैं। गर्मियों के दौरान जल संकट और ज्यादा गहराता है। जल के इस संकट का सामना सबसे ज्यादा महिलाओं को ही करना पड़ता है, क्योंकि भले ही घर में काफी सदस्य होते हैं, लेकिन जल का इंतजाम करने से लेकर खाना बनाने आदि की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है। जल संकटग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं का ज्यादातर समय पानी का बंदोबस्त करने और घर के कार्यों में ही निकल जाता है। इसके बावजूद भी कई इलाकों में न तो उन्हें पर्याप्त पानी नसीब होता है और न ही साफ पानी। जल की अपर्याप्ता और अशुद्धता ने लाॅकडाउन में समस्या को और बढ़ा दिया है, जिससे उड़ीसा के लोगों को दो-चार होना पड़ रहा है।
कोरोना के कारण हर तरफ साफ पानी से हाथ धोने और स्वच्छता बनाए रखने की अपील की जा रही है, लेकिन उड़ीसा के जाजपुर जिले में लोगों को प्रदूषित पानी पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है। सुकिंडा शहर में रह रहे ग्रामीण, विशेषकर कंसा, कालियापानी, रानसोन जैसे पहाड़ी इलाकों और पिंपुडिया में लोग प्रदूषित पानी का उपयोग करने के लिए मजबूर हैं। वहीं, अनियमित खनन ने यहां पानी की समस्या को और बढ़ा दिया है। दरअसल, इस इलाके में कई तालाब और ब्राह्मणी नदी है। आधुनिकीकरण के साथ साथ इलाके में तेजी से औद्योगिकरण हुआ, जिससे उद्योगों से निकलने वाले कचरे को सीधे तौर तालाबों और नदी सहित विभिन्न जलस्रोतों में फेंका जाने लगा। इससे तालाब और नदी का पानी प्रदूषित हो गया। इन इलाकों में पीने के पानी का कोई और इंतजाम या विकल्प न होने के कारण लोग तालाबों और नदी का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं।
लंबे समय से गंदा पानी पीने के कारण गांवों में पानी से होने वाली बीमारियां फैलती जा रही हैं। हालांकि कुछ लोग एहतियात के तौर पर पानी को गरम करते पीते हैं। गर्मी के यहां पहाड़ी इलाकों में पानी के स्रोत भी सूख गए हैं। इस इलाके में बड़े पैमाने पर खनन कार्य किया जाता है, जो नदी को प्रदूषित करने का कार्य कर रहा है। उद्योगों द्वारा बिना किसी अनुमति या मानकों का अनुपालन किए बिना बड़े पैमाने पर भूजल दोहन किया जा रहा है, जिसने इलाके में जल संकट को काफी गंभीर बना दिया है। गर्मियां शुरू होते ही ये संकट और ज्यादा गहरा जाता है। हालात ये हैं कि साफ पानी के लिए ग्रामीणों को दूर-दराज के इलाकों में लगभग 4 किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने के लिए ट्यूबवेल तक जाना पड़ता है। भीषण गर्मी और पानी लाने का थकावट भरा ये सफर उनके लिए अलग से समस्याएं लेकर आता है। दि न्यू लीम में प्रकाशित न्यूज के अनुसार, ‘‘पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रशासन टैंकरों से पानी की सप्लाई करवाता है।’’
भले ही प्रशासन टैंकरों से पानी की सप्लाई करवाता है, लेकिन लाॅकडाउन के कारण पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है, जिस कारण कोरोना के समय तब साफ पानी का मांग बढ़ गई है। सरकार और तमाम स्वास्थ्य संस्थाएं साफ पानी से हाथ धोने और स्वच्छता बनाए रखने की अपील कर रहे हैं, ऐसे में यहां के लोग, तालाबों और नदी का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं। इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रशासन और सरकार की प्राथमिकता में ग्रामीण नहीं बल्कि उद्योग हैं।
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