पेड़-पौधे हमें भोजन के अलावा प्राणवायु यानी आक्सीजन भी देते हैं। आदिकाल से ही हम इनका उपभोग करते आए हैं। यह भी बिना कुछ बोले चुपचाप सिर्फ हमें देते ही रहे हैं। लेकिन परोपकार में लगे रहने वाले पेड़-पौधे कभी-कभी बीमार भी हो जाते हैं। इनकी बीमारी का पता लगाना व इसका उचित इलाज करने के लिए विज्ञान की एक शाखा निर्धारित की गई है। इस शाखा को पादप रोग विज्ञान कहते हैं। पौधों को होने वाली बीमारियों का मुख्य कारण या तो कीट होते हैं या फिर पर्यावरणीय प्रदूषण। कीटों से होने वाली बीमारी से पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
आंकड़ों के अनुसार पौधों को होने वाली बीमारियों के कारण होने वाला नुकसान करीबन दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। प्लांट पैथालोजी के अंतर्गत पादप संरक्षण तकनीक की शिक्षा दी जाती है। पादप रोग विज्ञान के विस्तृत क्षेत्र को देखते हुए इसे कई शाखाओं में विभाजित किया गया है। ये हैं फफूंद, बैक्टीरिया, वायरस, वायरोड्स, वायरसोचडस, फाइटोप्लाज्मा,प्लांट एंटोमोलॉजी, प्लांट निमेटोलॉजी, खरपतवार विज्ञापन आदि। इन सभी क्षेत्रों में कार्य करने के लिए कुशल वैज्ञानिकों की मांग हमेशा बनी रहती है। बढ़ते प्रदूषण व तरह-तरह के कीटों का फसलों को प्रभावित करने के चलते इस क्षेत्र में अभी भी व्यापक विस्तार होना बाकी है। पादप रोग विज्ञान करिअर के लिहाज से एक ऐसा क्षेत्र है जो तब तक अस्तित्व में रहेगा जब तक पेड़-पौधे धरती पर उपस्थित रहेंगे। प्लांट पैथोलॉजी के अंतर्गत पौधों को बीमारियों से बचाना, बीमारियों की पहचान करना व दोबारा यह बीमारी पौधों को प्रभावित न कर पाए इसके लिए कुछ न कुछ उपाय या कीटनाशी का निर्माण करना भी शामिल है।
पादप संरक्षण कृषि विज्ञान की शाखा है। इससे संबंधित विषयों के अध्ययन हेतु उम्मीदवार को प्रवेश परीक्षा देनी होती है। देश के सभी नामी कृषि संस्थान अपने यहां चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराते हैं। इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद उम्मीदवार पौधों के बचाव संबंधी विषयों का अध्ययन करने के लिए बैचलर इन एग्रीकल्चर या बायोलाजिकल साइंस में प्रवेश ले सकते हैं। बैचलर इन एग्रीकल्चर में सीधे प्रवेश के लिए 12वीं में बायोलाजिकल साइंस या एग्रीकल्चर विषय का होना आवश्यक है। इंट्रेन्स इग्जाम के जरिये छात्र देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों में किसी एक बेहतर का चुनाव कर सकता है। देश भर के कृषि विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए दो प्रकार की प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। इनमें से एक है आल इंडिया आईसीएआर इंट्रेन्स तथा दूसरा स्टेट वाइस एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी टेस्ट।देशभर में पादप रोग विज्ञान के अध्ययन के लिए 34 राज्य स्तर के विश्वविद्यालय, 3 डीम्ड एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और 3 केंद्रीय विश्वविद्यालय उपलब्ध हैं। इन सभी विश्वविद्यालय में कृषि में चार साल की अंडर ग्रेजुएट आनर्स डिग्री और दो साल की पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री दी जाती है। प्लांट प्रोटेक्शन के मास्टर डिग्री में प्रवेश के लिए वही छात्र आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने बैचलर डिग्री प्राप्त कर ली हो या जिनका बैचलर डिग्री का अंतिम वर्ष है।
व्यक्तिगत व्यवसाय : प्लांट पैथोलाजी में डिग्री प्राप्त करने के बाद आप नौकरी के अलावा स्वयं का व्यवसाय भी कर सकते हैं। व्यवसाय के रूप में कीट निदान एवं प्रबंधन सेवा केंद्र या पौधों की क्लीनिक खोली जा सकती है। इनमें पौधों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल किया जा सकता है और इसके लिए काम के अनुसार भुगतान मिलता है। कांट्रेक्ट के आधार पर पूरे साल पौधों की देख-रेख का काम भी किया जाता है।
वेतन : पादप रोग विज्ञानी मुख्यत: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन, कृषि विकास संगठनों के अधीन, अनुसंधान प्रयोगशाला के अलावा विश्वविद्यालयों में बतौर शिक्षक या प्रोफेसर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इस विषय में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद व केंद्र और राज्य स्तर के विश्वविद्यालयों में वरिष्ठï अनुसंधान अध्येता और रिसर्च एसोसिएट के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। इसके लिए 16 हजार से 25 हजार प्रति माह वेतन निर्धारित किया गया है जो कि योग्यता व विभिन्न वित्तपोषण एजेंसियों पर निर्भर करता है।
पादप रोग विज्ञान से संबंधित प्रमुख संस्थान :1. आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय राजेन्द्रनगर, हैदराबाद।
2. असम कृषि विश्वविद्यालय जोरहाट, असम।
3. डा. बाला साहेब सावंत, कोंकण कृषि विद्यापीठ दापाली (रत्नागिरी)।
4. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कांके, रांची।
5. विधान चंद्र राय कृषि विश्वविद्यालय, मोहनपुर।
6. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार।
7. सीएस आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर।
8. चौधरी श्रवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर।
9. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय कृषकनगर, रायपुर।
10. जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर।
11. केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशर।
12. मराठावाड़ा कृषि विश्वविद्यालय परभणि, महाराष्ट्र।
13. महात्मा फूले कृषि विद्यापीठ राहुड़ी, महाराष्ट्र।
14. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।
15. राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर।