आज के हालात में यह न केवल जरूरी है, बल्कि हम सभी के लिए बेहद फायदेमन्द भी है। हमने पानी का अन्धाधुन्ध दोहन किया जिससे भूगर्भीय जल के भण्डार लगातार खाली होते गए। यही स्थिति जारी रही तो जल्दी ही धरती भूगर्भीय जल भण्डारों से विहीन हो जाएगी। हम भूजल का उपयोग भी करते रहें और भण्डार खाली भी न हों, इसके लिए जरूरी होगा कि उनमें कम-से-कम उतना पानी तो पहुँचता ही रहे, जितना हम दोहन कर रहे हैं। यह वर्षा जल संरक्षण से ही सम्भव है। जल संकट को लेकर हमें हाथ पर हाथ धरकर नहींं बैठ जाना चाहिए। इससे हमें निपटना होगा, क्योंकि तभी हमारा आज और कल सुरक्षित रहेगा। इसके लिए कई वैज्ञानिक तरीके हैं जिनमें सबसे कारगर है वर्षा जल संरक्षणइजराइल, सिंगापुर, चीन, आॅस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में वर्षा जल संरक्षण पर काफी काम किया जा रहा है। सवाल है कि क्या भारत में इसे प्रोत्साहित और प्रेरित नहींं किया जा सकता? वर्षा जल संरक्षण का अपने देश में भी वैसे ही प्रोत्साहन की जरूरत है, जैसा कि विदेशों में है। यह सुनने में तो बहुत जटिल तकनीक लगती है, लेकिन है बेहद आसान।
इसका मकसद यही है कि बरसात के पानी को व्यर्थ बहने से रोका जाए और उसे छतों के जरिए इस तरह से संग्रहित किया जाए कि उसका फिर से इस्तेमाल सम्भव हो सके। ऐसा भूगर्भीय जल भण्डारों को भरकर, बोरवेल-कुओं को चार्ज करके या किसी टैंक इत्यादि में पानी को एकत्रा कर किया जा सकता है।
आज के हालात में यह न केवल जरूरी है, बल्कि हम सभी के लिए बेहद फायदेमन्द भी है। हमने पानी का अन्धाधुन्ध दोहन किया जिससे भूगर्भीय जल के भण्डार लगातार खाली होते गए। यही स्थिति जारी रही तो जल्दी ही धरती भूगर्भीय जल भण्डारों से विहीन हो जाएगी। हम भूजल का उपयोग भी करते रहें और भण्डार खाली भी न हों, इसके लिए जरूरी होगा कि उनमें कम-से-कम उतना पानी तो पहुँचता ही रहे, जितना हम दोहन कर रहे हैं। यह वर्षा जलसंरक्षण से ही सम्भव है।
छत के पानी को हैंडपम्प या कुएँ के माध्यम से भूगर्भ में डाला जा सकता है। वर्षा जल संरक्षण में सबसे आसान दो तरीके हैं। एक, छत के बरसाती पानी को गड्ढे या खाई छत के पानी को हैण्डपम्प या कुएँ के माध्यम से भूगर्भ में डाला जा सकता है। वर्षा जल संरक्षण में सबसे आसान दो तरीके हैं। एक, छत के बरसाती पानी को गड्ढे या खाई के जरिए सीधे जमीन के भीतर उतारना तथा दूसरा छत के पानी को किसी टैंक में एकत्र करके सीधा उपयोग करना। एक हजार वर्ग फीट की छत वाले छोटे मकानों के लिए यह तरीका बहुत ही उपयुक्त है।
बरसात के मौसम में इस छोटी-सी छत से लगभग एक लाख लीटर पानी जमीन के भीतर उतारा जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले जमीन में 3 से 5 फीट चौड़ा और 6 से 10 पफीट गहरा गड्ढा खोदना होगा। खुदाई के बाद इसमें सबसे नीचे मोटे पत्थर (कंकड़), बीच में मध्यम आकार के पत्थर (रोड़ी) और सबसे ऊपर बारीक रेत या बजरी डाल दी जाती है। यह तरीका फिल्टर का काम करता है। छत से पानी एक पाइप के जरिए गड्ढे में उतार दिया जाता है। गड्ढे से पानी धीरे-धीरे छनकर जमीन के भीतर चला जाता है। इसी तरह फिल्टर के जरिए पानी को टैंक में भी एकत्र किया जा सकता है।
निम्नलिखित तरीके से भी वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है:
सीधे जमीन के अन्दर :
इसमें बरसाती पानी को एक गड्ढे के जरिए सीधे धरती के भूगर्भीय जल भण्डार में उतार दिया जाता है।
खाई बनाकर रिचार्जिंग :
बड़े संस्थानों के परिसर की दीवार के पास बड़ी नालियाँ बनाकर पानी को जमीन के भीतर उतारा जाता है।
कुओं में पानी उतारना :
छत के बरसाती पानी को पाइप के जरिए घर के या पास के कुएँ में उतारा जाता है। इस तरीके से न केवल कुआं रिचार्ज होता है, बल्कि कुएँ से पानी जमीन के भीतर भी चला जाता है।
टैंक में जमा करना :
भूगर्भीय जल भण्डार को रिचार्ज करने के अलावा छत से बरसाती पानी को सीधे किसी टैंक में भी जमा किया जा सकता है।
वर्षा जल संरक्षण को कई देशों में सफलता के साथ आजमाया जा चुका है। अब बारी भारत की है। जल संकट की समस्या से निपटने के लिए इसे अमल में लाना ही होगा।
1. एक हजार वर्ग फीट की छत से एक बरसाती मौसम में लगभग एक लाख लीटर पानी जमीन के भीतर उतारा जासकता है।
2. वर्षा जल संरक्षण में 6.95 पीएच मान का पानी मिलता है जिसे पानी की गुणवत्ता के मामले में आदर्श माना जाता है।
3. महज एक घण्टे की बारिश का पानी उतारने पर ही लगभग सूख चुके कुएँ या ट्यूबवेल फिर से पानी देने लगते हैं।
4. जमीन के नीचे पानी कम होने से उसमें फ्लोराइड की मात्रा बढ़ती जा रही है।
5. वर्षा जल संरक्षण के जरिए इस समस्या पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
6. यह इतनी आसान तकनीक है कि इसमें केवल पीवीसी पाइप और फिल्टर की जरूरत पड़ती है।