विकास की अंधी दौड़ में हम जाने अनजाने में अपने परिवेश को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। पर देश में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने प्रयासों से इस वसुंधरा को हरा-भरा बनाए रखने की कोशिश में जुटे हैं। आइए रूबरू होते हैं कुछ ऐसे लोगों से जो पर्यावरण बचाने का प्रयास कर मिसाल कायम कर रहे हैं।
गूलर के पेड़ पर चल रही आर से निकल रहे पानी को देखकर विजयपाल बघेल का मन विचलित हो उठा। उन्होंने जीवन में पेड़ बचाने और लगाने की ठान ली। उनके इसी कार्य ने उनको ग्रीन मैन बना दिया। ग्रीन मैन की उपाधि उन्हें अमेरिका के उपराष्ट्रपति अल्गोर ने दी थी। उन्होंने दावा किया है कि अब तक 40 करोड़ पेड़ लगवा चुके हैं।
1975 में विजयपाल बघेल अपने गांव चंद्रगढ़ी से दादा दाताराम बघेल के साथ हाथरस जा रहे थे। रास्ते में उन्हें तीन लोग दिखाई दिए जो गूलर के पेड़ को काट रहे थे। पेड़ काटने पर उनमें से पानी की धार दिखाई दी। विजयपाल ने उत्सुकतावस यह बात अपने दादा से पूछी तो उन्होंने बताया कि पेड़ कटने पर रो रहा है। यहीं से विजय का मन विचलित हो उठा और उन्होंने पेड़ लगाने व बचाने की योजना बना डाली। 1976 में उन्होंने अपने जन्मदिन पर पहला पेड़ लगाया। इसके बाद तो वे रूके ही नहीं।
वे लोगों को पेड़ लगाने की प्रेरणा देते रहे और उनके इसी कार्य ने 1993 में आंदोलन का रूप ले लिया। 1993 में पर्यावरण सचेतक समिति बनाकर मेरा बनाकर मेरा वृक्ष योजना की शुरूआत की। लोगों के घर-घर जाकर पेड़ लगवाने शुरू कर दिए। उन्होंने अब तक पेड़ बचाने और लगाने के लिए सात आंदोलन चलाए, मेरा वृक्ष योजना, आपरेशन ग्रीन, ग्लोबल ग्रीन मिशन, मेरा पेड़ मेरी शान, मिशन सवा सौ करोड़, पेड़ लगाएं सेल्फी भेजे।
जब पर्यावरण संरक्षण की बात आती है तो सबसे पहले बरेली के समीर मोहन का नाम लिया जाता है। जो शहर व गांव की शुद्ध आबोहवा को सामुदायिक स्तर पर काम कर रहे हैं। आज से नहीं 10-15 सालों से शहर एवं गांव-गांव पर्यावरण संरक्षण को अलख जगा जा रहे हैं। खुशहाली फाउंडेशन के नाम से उनकी संस्था हैं, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग जुड़ चुके हैं।
लखीमपुर-खीरी में रहने वाले अनुराग मौर्य को पर्यावरण बचाने का जुनून है। वह सुबह से शाम तक सिर्फ पेड़ों की चिंता करते हैं। वह पर्यावरण की अपनी मुहिम को अनोखे अंदाज में चला रहे हैं। किसी के यहां शादी हो तो अनुराग उपहार में पौधा देते हैं। किसी के यहां बच्चे का जन्मदिन हो तो उसे पौधा देकर बच्चे के नाम से रोपने को कहते हैं।
रिटायर्ड लोग अक्सर आराम करते हैं लेकिन मेरठ के एच ब्लाक में शास्त्रीनगर स्थित वरिष्ठ नागरिकों के स्वयंसेवी संगठन क्लब-60 के 15 सदस्य जल, जीव, पेड़ व पर्यावरण बचाने के लिए अनवरत काम करते हैं। काॅलोनी को ईको फ्रेंडली और टैगोर पार्क को पर्यावरण और जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण बना लिया।
हरि विश्वोई के नेतृत्व में नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद कुल 15 लोगों ने क्लब-60 बनाया और पर्यावरण और जल संरक्षण की कमान संभाल ली। 15 लोगों के ग्रुप में हर किसी को कोई न कोई कार्य करने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी के जरिए पार्क को हरा-भरा और काॅलोनी को पर्यावरण और जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण बना लिया टैगोर पार्क में दो स्प्रिंकल सिस्टम के जरिए मार्च से जून तक पौंधों की सिंचाई करते हैं।
मेरठ के टीपीनगर निवासी प्रोफेसर डा. यशवंत राय पर्यावरण संरक्षण के लिए पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कार्य कर रहे हैं। वह दुर्लभ प्रजातियों के पौधे के बीजों को एकत्रित करते हैं। उन्हें उगाते हैं और फिर पौधारोपण करते हैं। वह कहते हैं कि 42 से 50 डिग्री तापमान पर उगने वाली प्रजाति के पौधे तापमान को नियंत्रित करेंगे।
लखीसराय के सूर्यगढ़ा प्रखंड के रामपुर निवासी महेंद्र सिंह सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। दिव्यांग महेन्द्र सिंह ने पर्यावरण के क्षेत्र में कई कार्य किए हैं। वे अब तक दस हजार से अधिक पौधे लगाए हैं। इनमें 80 प्रतिशत पौधे, पेड़ का रूप ले चुके हैं। उन्होंने एक कुआं भी खुदवाया है। जिसके लिए किसी से कोई चंदा नहीं लिया। इस कार्य के जुनून को लेकर ही उन्होंने शादी भी नहीं की और आज तक किसी से कोई चंदा नहीं लिया।
कौन बनेगा करोड़पति के मंच से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले मोतिहारी के सुशील कुमार अब चंपारण की पहचान चंपा पौधे को बचाने और उसके रोपण में जुटे हैं। ‘चंपा से चंपारण’ अभियान के जरिये सुशील और उनकी टीम ने एक साल में पचास हजार से अधिक पौधे लगाए हैं। इस अभियान का दोहरा मकसद है, एक तो चंपाविहीन चंपारण को उसकी पहचान दिलाना और दूसरा पर्यावरण के गंभीर संकट से लड़ने के लिए पेड़ों को औजार बनाना। सुशील कुमार बताते हैं कि 22 अप्रैल 2018 को उन्होंने यह अभियान शुरू किया है। सुशील प्रतिदिन सुबह अपनी स्कूटी पर झोले में चंपा के पौधे लेकर निकलते हैं। रास्ते में किसी व्यक्ति के घर या परिसर में लगाकर पानी डालते हैं।
केबीसी विनर सुशील कुमार।
गुरूग्राम शहर के लोग वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। प्रदूषण के कारण मिलेनियम सिटी की विश्व स्तर पर बदनामी हो रही है। ऐसे में शहर के सैकड़ों लोग पर्यावरण को बचाने के लिए छोटे अभियान और कुछ बदलाव कर पर्यावरण को बचाने की पहल काफी समय से कर रहे हैं। ऐेसे ही एक 77 वर्षीय बुजुर्ग पर्यावरण को बचाने के लिए पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं और लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।
डीएलएफ फेज-4 निवासी अनिल कपूर ने बताया कि वह शहर में प्रदूषण को देखते हुए पर्यावरण बचाने के लिए मुहिम शुरू की। अनिल के मुताबिक, जब वह सुबह सैर करने निकलते हैं तो वह बैग लेकर साथ चलते हैं। इस दौरान पार्क और सड़क पर मिलने वाले प्लास्टिक को उठाकर बैग में रखते हैं। उसके बाद डस्टबिन में डालते हैं।
हल्द्वानी में मरीजों को देखने वाले डाॅक्टर आशुतोष पंत जहरीली हो रही आबोहवा को सुधारने की डाॅक्टरी में भी लगे हुए हैं। वह पिछले 31 सालों से पेड़ लगाने के अभियान में जुटे हुए हैं। वह अब तक 2.58 लाख पौधे लगा चुके हैं। हर साल उनका 15 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रहता है।
डाॅक्टर आशुतोष का मानना है कि अधिक से अधिक पौधे लगाकर ही जहरीली हो रही हवा की सफाई की जा सकती है। वह लोगों को अपने खर्च से लोगों को पौधे बांटते हैं। वो बताते हैं कि गर्मी में लगाए जाने वाले पौधों का जीवित रहना बहुत मुश्किल होता है। जिसके चलते पर्यावरण दिवस पर गर्मी में लगाए जाने वाले पौधे हर साल दम तोड़ते हैं। इस तरह से 40 डिग्री तापमान के बीच हम कितने पौधों को बलि देते रहेंगे।
रांची में मल्टी स्टोर बिल्डिंग और अपार्टमेंट बनाने की होड़ मची है। इस क्रम में खाली जमीन पर खड़े हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं। कभी ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में रांची का तापमान लगातार बढ़ रहा है। चौड़ीकरण में ठेला-खोमचा लगाने वालों और राहगीरों के लिए सड़क किनारे पेड़ की छाया मयस्सर नहीं है। ऐसे में सरकारी नौकरी में होने के बावजूद डाॅ बीके अग्रवाल पिछले 30 साल से हरियाली के लिए काम कर रहे हैं। वह कांके स्थित बिरसा कृषि विवि के मुख्य वैज्ञानिक हैं और मृदा विज्ञान के विशेषज्ञ हैं।
वो उम्र जो स्कूल जाने, होमवर्क करने और फिर खेलकूद में बिताने की होती है। उसी उम्र में देहरादून के सैकड़ों के स्कूली बच्चे दून घाटी के पर्यावरण को बचाने के लिए ‘मेकिंग ए डिफरेंस बाय बीइंग दि डिफरेंस’ की छतरी के तले जमा हुए हैं। बीते आठ साल से काम कर रही स्कूली बच्चों की यह संस्था भविष्य की पीढ़ी को न सिर्फ पर्यावरण के प्रति जागरुक कर रही है। बल्कि अपने कई अभियानों के जरिए इसे जमीन पर भी उतार रही है।
मैड का सबसे बड़ा योगदान देहरादून की पहचान रही रिस्पना और बिंदाल के प्रति सरकारी नजरिए में बदलाव लाने का है। इस संस्था ने अपने प्रयासों से पहले पहले राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की मदद से रिस्पना में बहाव का सर्वे कराया और इस तरह रिस्पना के फिर से जिंदा करने की मुहिम आगे बढ़ी। सिटीजन फाॅर ग्रीन दून संस्था पिछले दस साल से पर्यावरण संरक्षण के लिए राज्य मे काम कर रही है। संस्थान ने राज्य में आल वेदर रोड में हजारों पेड़ कटने से बचाएं, देहरादून परेड ग्राउंड के आसपास पेड़ों के कटान पर भी रोक लगवाई।