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प्रवाल भित्ति का अर्थ, परिभाषा और महत्व

Author : इंडिया वाटर पोर्टल

प्रवाल भित्ति जल के नीचे पाए जाने वाले पादप हैं जो कोरल नामक औपनिवेशिक समुद्री अकशेरुकी के कंकालों से बने होते हैं। प्रवाल भित्ति या कोरल रीफ पृथ्वी पर सर्वाधिक जैविक रूप से विविध समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक हैं। प्रवाल भित्ति समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और समुद्र में वनस्पतियों को पोषण के साथ समुद्री जीवों को आवासीय सुविधा प्रदान करते हैं। 

प्रवाल भित्तियों के विकास हेतु परिस्थितियाँ 

  • 1.जल का तापमानः जल का तापमान 20°C से कम नहीं होना चाहिए। प्रवाल भित्तियों के विकास के लिए सबसे अनुकूल तापमान 23°C से 25°C के बीच होता है। 

  • 2.लवणताः प्रवाल केवल खारेपन की स्थिति में ही जीवित रह सकते हैं. जहाँ औसत लवणता 27% से 40% के बीच होती है। उथला जलः प्रवाल भित्तियाँ 50 मीटर से कम गहराई वाले उथले जल में बेहतर तरीके से विकसित होती हैं। जल की गहराई 200 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। 

प्रवाल भित्तियों का महत्त्व 

  • • जैव विविधता के केंद्रः प्रवाल भित्तियाँ जैव विविधता को बनाए रखती हैं, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के लिए महासागर के समकक्ष के रूप में कार्य करती हैं, हजारों प्रजातियों का समर्थन करती हैं और जैविक उत्पादकता को बढ़ाती हैं। 
  • • आवास और पोषण के स्रोतः प्रवाल भित्तियाँ समुद्री जीवों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास के रूप में कार्य करने के साथ समुद्री खाद्य शृंखलाओं के लिए आवश्यक आश्रय और पोषक तत्त्व प्रदान करती हैं तथा कार्बन और नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायता करती हैं। 
  • • आर्थिक महत्त्वः प्रवाल भित्तियाँ अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं, मछली पकड़ने और पर्यटन उद्योगों के माध्यम से सालाना अरबों डॉलर कमाती हैं, जैसे कि ग्रेट बैरियर रीफ का ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में सालाना $1.5 बिलियन से अधिक का योगदान है।
  • जलवायु का अभिलेख रखने वालाः ये ऐतिहासिक रूप से जलवायु संबंधी रिकॉर्ड प्रदान करते हैं, जो गत पर्यावरणीय स्थितियों को दर्शाते हैं और दूरस्थ उष्णकटिबंधीय महासागरों में दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन एवं मौसमी परिवर्तनशीलता को समझने में सहायता करते हैं। 
  • • प्राकृतिक आपदा बफर का कार्यः प्रवाल भित्तियों की संरचनाएँ बफर के रूप में कार्य करती हैं, साथ ही तरंगों और तूफानों से ऊर्जा को अवशोषित करती हैं। इसके अतिरिक्त तटरेखाओं को होने वाले नुकसान को कम करती हैं व कटाव को रोकती हैं एवं तटीय समुदायों पर प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करती हैं। 

प्रवाल भित्तियों को प्रभावित करने वाले कारक 

  • • जलवायु पर प्रभावः समुद्र के बढ़ते तापमान से वैश्विक स्तर पर प्रवाल भित्तियों को खतरा है, जिससे प्रवाल विरंजन और रोग के प्रति संवेदनशीलता बढ़ने के कारण व्यापक गिरावट आ रही है। 

  • • अत्यधिक मत्सयनः पारिस्थितिकी असंतुलन अत्यधिक मछली पकड़ने से उत्पन्न होता है, जो प्रवाल भित्तियों द्वारा समर्थित नाजुक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है। 

  • • तटीय विकासः प्रवाल भित्तियों के निकट बुनियादी ढाँचे और पर्यटक रिसॉर्ट्स का निर्माण उनकी नाजुक संरचना और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। 

  • • प्रदूषणः प्रदूषकों के सीधे डंपिंग से समुद्री जल में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे शैवाल की अधिक वृद्धि होती है और प्रवाल भित्तियों में विषाक्तता होती है। 

  • • अवसादनः तटीय विकास से मृदा का कटाव नदियों में तलछट को बढ़ाता है, जिससे कोरल को आवश्यक प्रकाश से वंचित करके उनका दम घुटता है। 

  • • आक्रामक प्रजातियों का खतराः तिरुवनंतपुरम और कन्याकुमारी के तटों पर खोजे गए स्नोफ्लेक प्रवाल (Carijoa Riisei) ने प्रवाल भित्ति जैव विविधता के लिए एक नया खतरा उत्पन्न कर दिया है, जिससे चुनौतियाँ और बढ़ गई हैं। 

चुनौतियां तथ्य 

ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क (जीसीआरएमएन) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में दुनिया ने अपनी लगभग 14% प्रवाल भित्ति खो दी हैं। 

  • • आईपीसीसी ने भविष्यवाणी की है कि 2100 तक 1.5°C की वैश्विक तापमान वृद्धि से वैश्विक रूप से प्रवाल भित्ति की संख्या में 70-90% की कमी दर्ज की जाएगी और यदि यह 2°C या उससे अधिक होता है तो ये विलुप्त हो जाएँगी। 
  • • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टः संयुक्त राष्ट्र ने बताया है किः पृथ्वी की 70% प्रवाल भित्तियाँ खतरे में हैं, 
  • • 20% नष्ट हो चुकी हैं और उनके पुनः जीवित होने की कोई उम्मीद नहीं है, 24% के जल्द ही नष्ट होने का खतरा है, और, अतिरिक्त 26% दीर्घकालिक खतरों के कारण जोखिम में हैं। 
  • • तमिलनाडु जलवायु शिखर सम्मेलन 2.0 ने 'मन्नार की खाड़ी की प्रवाल भित्तियाँ: स्थिति और प्रबंधन प्रतिमानों में दशकीय परिवर्तन' शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की, जिसमें वर्ष 2005 में 37% से घटकर 2021 में 27.3% तक जीवित प्रवाल आवरण में गिरावट पर प्रकाश डाला गया।

प्रवाल के पूर्वावस्था के तरीके 

  • • जैविक पुनर्स्थापनाः जैविक पुनर्स्थापना में प्रवाल भित्ति को मूल रूप में लाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए प्रत्यारोपण से जुड़ी विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। 
  • • संरचनात्मक पुनर्स्थापनाः संरचनात्मक बहाली में आम तौर पर कृत्रिम रीफ का निर्माण, मलबे को डुबोना या चट्टानों/मृत कोरल शीर्षों को स्थानांतरित करना शामिल होता है। 
  • • भौतिक पुनर्स्थापनाः भौतिक बहाली में उन स्थितियों को संबोधित किया जाता है जिनमें प्रवाल अपने स्वास्थ्य, विकास दर या प्रजनन क्षमता में सुधार करने के लिए बढ़ रहे हैं। 

प्रवाल भित्ति की सुरक्षा के लिए पहल 

• वैश्विक पहलः • 

  • 1 - इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिवः इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) राष्ट्रों और समूहों के बीच एक अनौपचारिक साझेदारी है जो दुनिया भर में प्रवाल भित्ति और संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने का प्रयास करती है।

  • 2 - कोरल रीफ ब्रेकथ्रू इनिशिएटिवः आईसीआरआई (ICRI) द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य वर्ष 2030 तक कम से कम 125,000 वर्ग किलोमीटर उथले जल के उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्ति को संरक्षित, सुरक्षित और बहाल करना है, जिसमें लगभग $12 बिलियन का निवेश किया जाएगा। यह प्रयास वैश्विक स्तर पर आधे बिलियन से अधिक लोगों की तन्यकता को लक्षित करता है। 

  • 3 - ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क (GCRMN): यह शोधकर्ताओं के वैश्विक नेटवर्क के माध्यम से प्रवाल भित्ति की पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य, उनके संरक्षण और प्रबंधन के बारे में सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने के लिए कार्य करता है। 

  • 4 - ग्लोबल कोरल रीफ अलायंस (GCRA): जीसीआरए (GCRA) स्वयंसेवी वैज्ञानिकों, गोताखोरों, पर्यावरणविदों और अन्य व्यक्तियों और संगठनों का एक विश्वव्यापी गठबंधन है, जो कोरल रीफ संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। 

  • 5 - ग्लोबल कोरल रीफ आरएंडडी एक्सेलेरेटर प्लेटफॉर्म: जलवायु परिवर्तन और अन्य दबावों के मद्देनजर प्रवाल भित्तियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक विज्ञान और प्रौद्योगिकी को अगली पीढ़ी तक बढ़ाया जाएगा।

राष्ट्रीय पहलः 

  • 1 - खनिज अभिवृद्धि प्रौद्योगिकी: भारत में, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI), गुजरात के वन विभाग की सहायता से, 'बायोरॉक' या खनिज अभिवृद्धि प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया का प्रयास कर रहा है। 
  • 2 - राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रमः इसका उद्देश्य देश में प्रवाल भित्तियों की रक्षा करना और उन्हें बनाए रखना है। 
  • 3 - तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) संरक्षणः प्रवाल भित्तियों सहित सभी समुद्री संसाधन 1991 के तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) के तहत संरक्षित है। CRZ-1 वर्गीकरण प्रवाल भित्तियों पर होटल या रिसॉर्ट के निर्माण को प्रतिबंधित करता है।
  • 4 - सरकारी निगरानीः पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देशों और कानूनों का पालन सुनिश्चित करता है। इसके अतिरिक्त, राज्य वन्यजीव विभाग प्रवाल भित्तियों वाले क्षेत्रों में स्थित संरक्षित क्षेत्रों में प्रवाल की देखभाल का जिम्मा संभालता है। 

प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) 

जब तापमान, प्रकाश या पोषण में परिवर्तन होता है तो प्रवालों पर तनाव बढ़ता है, जिससे वे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवालों को त्याग देते हैं जिसके कारण विरंजित (पूरी तरह सफेद) हो जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं। गौरतलब है कि ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क ने दुनिया भर में प्रवाल भित्तियों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की है। 

प्रवाल विरंजन के कारण 

  • • समुद्र के तापमान में वृद्धि एवं एल नीनोः समुद्र के तापमान में वृद्धि, विशेष तौर पर एल नीनो की घटनाओं के दौरान, प्रवालों को नुकसान पहुँचाता है, जिससे वे विरंजित हो जाते हैं और सफ़ेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • • महासागरीय अम्लीकरणः समुद्री जल में बढ़ी हुई अम्लता प्रवालों के कैल्केरियस कंकालों के निर्माण को प्रभावित करके उनकी वृद्धि में बाधा डालती है।
  • • सौर और पराबैंगनी विकिरणः मौसम के पैटर्न में बदलाव के कारण बादलों का आवरण कम हो जाता है और विकिरण का जोखिम बढ़ जाता है, जिससे प्रवाल विरंजन होता है। 
  • • संक्रामक रोगः वाइब्रियो शिलोई जैसे बैक्टीरिया गर्म जल में पनपते हैं, जिससे प्रवाल को प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने में बाधा उत्पन्न होती है। इससे उन्हें और अधिक नुकसान होता है। 
  • • रासायनिक प्रदूषण और अवसादनः पोषक तत्त्वों का अपवाह फाइटोप्लांकटन की वृद्धि को बढ़ावा देता है, जिससे प्रवाल के साथ स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा होती है, जबकि अवसादन प्रकाश की उपलब्धता को कम करता है, जिससे प्रवाल को प्रकाश संश्लेषण करने और विकास में बाधा आती है। 
  • • मानव-जनित खतरेः अत्यधिक मत्स्यन, औद्योगिक प्रदूषण, प्रवाल खनन और तटीय विकास प्रवाल भित्तियों के क्षरण को बढ़ाते हैं।

प्रवाल विरंजन का प्रभाव 

  • • खाद्य शृंखला प्रभावितः प्रवाल पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन उन जीवों पर प्रभाव डाल सकते हैं जो उन पर निर्भर हैं, जिनमें मछली और अकशेरुकी शामिल हैं जो भोजन और शरण के लिए जीवित प्रवाल का प्रयोग करते हैं। इस तरह के समुद्री जानवरों के नुकसान का असर पूरी खाद्य शृंखला पर पड़ सकता है।
  •  • जैव विविधता का ह्रासः जब प्रवाल विरंजन के परिणामस्वरूप मृत हो जाते हैं, तो आनुवंशिक और प्रजातियों की विविधता में गिरावट आ सकती है। 
  • • अर्थव्यवस्था में गिरावटः गोताखोर और अन्य पर्यटक स्वस्थ प्रवाल भित्तियों की ओर आकर्षित होते हैं। प्रवाल भित्तियाँ जो विरंजित और खराब हो चुकी हैं, वे आगंतुकों को आकर्षित नहीं करेंगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँच सकता है।
  • • खाद्य उपलब्धता प्रभावितः प्रवाल विरंजन से मछली के पारिस्थितिकी तंत्र में काफी बदलाव आ सकता है, जिसका भोजन की उपलब्धता पर असर पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप मछली पकड़ने पर असर पड़ सकता है, जिससे खाद्य की उपलब्धता और संबंधित आर्थिक गतिविधि पर प्रभाव पड़ सकता है। 
  • • तटीय संरक्षण पर प्रभावः समुद्र से तरंग ऊर्जा को लगातार अवशोषित करके, प्रवाल भित्तियाँ तटों को कटाव और बाढ़ के साथ-साथ तूफान से होने वाली क्षति से बचाती हैं।

आगे की राह • 

वैश्विक जलवायु कार्रवाई: प्रवाल भित्ति की सुरक्षा के लिए COP 21 लक्ष्यों के अनुरूप ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के प्रयासों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

 • सामाजिक आंदोलन का गठनः सामाजिक व्यवहार को संवहनीयता की ओर ले जाने व प्रवाल भित्ति के ऊपर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए एक प्रमुख आंदोलन को बढ़ावा देना चाहिए। 

• बहु-हितधारक जुड़ावः प्रवाल भित्ति के संरक्षण पर चर्चा करने के साथ लोगों को शिक्षित कर जागरूक बनाने की आवश्यकता है, साथ ही उद्योग के शीर्ष प्राधिकारियों, सरकारी अधिकारियों और वित्त से जुड़े मंत्रालयों को आपस में समन्वय स्थापित करना चाहिए, जिससे प्रवाल भित्ति के संरक्षण को सहायता मिले। 

अभिनव समाधानः प्रवाल भित्ति से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक, प्रबंधकीय और नीति समाधानों सहित अंतःविषय दृष्टिकोणों को अपनाए जाना चाहिए।

केस स्टडी - ग्रेट बैरियर रीफ का क्षय 

यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलियाई तट पर स्थित 'ग्रेट बैरियर रीफ' को विश्व धरोहर स्थलों की 'खतरे की सूची' में जोड़े जाने की सिफारिश की है। 

चिंताएँ:

  •  • समुद्र का बढ़ता तापमानः जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जल के तापमान में वृद्धि हुई है, जिसके कारण 2,300 किलोमीटर लंबी चट्टान के बड़े भाग में मूँगे समाप्त हो गए हैं, जिससे कंकाल के अवशेष बचे हैं, जिसे प्रवाल विरंजन के रूप में जाना जाता है। 
  •  • प्रवाल विरंजनः जब प्रवाल तापमान, प्रकाश या पोषक तत्त्वों जैसी स्थितियों में परिवर्तन के कारण तनाव का सामना करते हैं तो वे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवाल 'जुजैथिली' (Zooxanthellae) को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे पूरी तरह से सफेद हो जाते हैं। इस घटना को प्रवाल विरंजन कहा जाता है।
  •  • ऑस्ट्रेलियाई स्थिति में बदलावः वर्ष 2019 में, ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ग्रेट बैरियर रीफ आउटलुक रिपोर्ट ने रीफ की स्थिति को 'खराब' से घटाकर 'बहुत खराब' कर दिया। ऐसे में 'ग्रेट बैरियर रीफ' को विश्व धरोहर स्थलों की 'खतरे की सूची' में जोड़े जाने पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार विचार कर रही है।


 

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