नमक और चीनी रोज के खाने का अभिन्न अंग होते हैं। और किसी भी रेसिपी में मसालों के साथ, वे व्यंजन की जरूरी अंग हैं। नमक स्वाद प्रदान करता हैं और पोषण के दृष्टिकोण से, सोडियम और ग्लूकोज इनसे मिलता है। पेट की चयापचय प्रक्रिया को बढ़ावा देने में ये दोनों मदद करते हैं। लेकिन, क्या होगा जब ये दोनों बीमारियों का प्रमुख कारण बन जाएं?
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, कंपनियां हर नमक और चीनी के पैकेट में स्वाद के साथ माइक्रोप्लास्टिक पेश कर रही हैं। बाजार में नमक और चीनी के कई ब्रांड - पैकेट और खुला दोनों, ऑनलाइन और स्थानीय बाजारों में बेचे जाते हैं। इनमें माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं। पर्यावरण अनुसंधान और एडवोकेसी के क्षेत्र में काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन ‘टॉक्सिक्स लिंक’ द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि आयोडीन युक्त पैकेज्ड नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा सबसे अधिक थी, जबकि कार्बनिक सेंधा नमक में सबसे कम थी।
‘टॉक्सिक्स लिंक’ की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, सभी भारतीय नमक और चीनी ब्रांड, चाहे बड़े हों या छोटे, पैकेट हों या खुला, उनमें सभी में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। ‘टॉक्सिक्स लिंक’ की ओर से बताया गया कि प्रयोगशाला परीक्षण के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले 10 प्रकार के नमक और पांच चीनी के नमूने ऑनलाइन और स्थानीय बाजारों से खरीदे गए थे। नमक के दो नमूने और चीनी के एक नमूने को छोड़कर बाकी सभी ब्रांडेड थे। परीक्षण किए गए दस नमक नमूनों में से तीन पैकेट आयोडीन युक्त नमक, तीन सेंधा नमक के नमूने (दो जैविक ब्रांड सहित), दो समुद्री नमक के नमूने और दो स्थानीय ब्रांड के थे।
अलग-अलग नमक के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा और आकार अलग-अलग था, जो सूखे नमक के वजन के प्रति किलोग्राम में 6.71 से 89.15 टुकड़े और आकार में 0.1 मिमी से 5 मिमी के बीच था। वे फाइबर, छर्रों, फिल्म और टुकड़ों के रूप में पाए गए। चीनी के नमूनों में पाए गए माइक्रोप्लास्टिक की आकार सीमा समान रही; यहाँ, वे अधिकतर फ़ाइबर के रूप में थे, उसके बाद फ़िल्म और बारीक टुकड़ों के रूप में थे। चीनी और नमक के नमूनों में पाए गए माइक्रोप्लास्टिक आठ अलग-अलग रंगों के थे: पारदर्शी, सफेद, नीला, लाल, काला, बैंगनी, हरा और पीला।
टॉक्सिक्स लिंक के संस्थापक और निदेशक रवि अग्रवाल ने कहा कि “हमारे अध्ययन का उद्देश्य माइक्रोप्लास्टिक्स पर मौजूदा वैज्ञानिक डेटाबेस और जानकारियों को समृद्ध करना था, ताकि वैश्विक प्लास्टिक संधि इस मुद्दे को ठोस और केंद्रित तरीके से संबोधित कर सके। रिसर्च का उद्देश्य नीतिगत कार्रवाई को गति देना और माइक्रोप्लास्टिक्स के जोखिम को कम करने के लिए संभावित तकनीकी हस्तक्षेप के लिए शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करना भी है। माइक्रोप्लास्टिक्स या नैनोप्लास्टिक्स का एक्सपोजर एक प्रमुख वैश्विक चिंता के रूप में उभर रहा है क्योंकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
भारी मात्रा में पन्नी, थैले, नलकों, कपड़ों आदि के प्लास्टिक से माइक्रोप्लास्टिक्स उत्पन्न होता है जो दुनिया भर के प्राकृतिक वातावरण में मिल रहा है। कई रिसर्च में माइक्रोप्लास्टिक्स पानी, मिट्टी और साथ ही वायुमंडल में भी मौजूद पाया गया है। यूरोपीय यूनियन के एक अनुमान के अनुसार वार्षिक मात्रा में 5 से 13 मिलियन टन प्लास्टिक फाइबर और रबर शामिल होते हैं जो सूक्ष्म रूप से छोटे कणों में विघटित होकर वातावरण में मिल जाते हैं। ये कण न केवल खराब पुनर्चक्रण प्लास्टिक कचरे के कारण होते हैं, बल्कि कुछ प्रकार के व्यक्तिगत सौंदर्य उत्पादों जैसे टूथपेस्ट, शैंपू और वस्त्रों में उपयोग किए जाने वाले तथाकथित माइक्रोबीड्स और सिंथेटिक फाइबर में भी पाए जाते हैं।
मछली, शंख और समुद्री नमक जैसे समुद्री मूल के खाद्य पदार्थों की कई श्रेणियों में माइक्रोप्लास्टिक स्थापित सत्य बन चुका है। माइक्रोप्लास्टिक नमक, चीनी, शहद, बीयर, जमीन और नल के पानी में भी पाए गए हैं। और अभी हाल ही में, हमारे पास अमेरिका से समाचार रिपोर्टें थीं कि माइक्रोप्लास्टिक अब प्रसिद्ध ब्रांडों द्वारा बेचे जाने वाले बोतलबंद पानी (प्लास्टिक और कांच की दोनों बोतलों) में भी पाए गए हैं।
खतरनाक प्रदूषक के रूप में समुद्री और स्थलीय वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक्स (माइक्रोप्लास्टिक) की सर्वव्यापी उपस्थिति अच्छी तरह से स्थापित है और इस पर काफी रिसर्च हैं कि समुद्र प्लास्टिक प्रदूषण का शिकार है। कई अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि नमक में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण विनिर्माण प्रक्रिया या पैकेजिंग और भंडारण कार्यों से भी आ सकता है। हालांकि समुद्री वातावरण से नमक जैसे खाद्य स्रोतों में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण पर अध्ययन अभी कई और हो रहे हैं, और होने चाहिए।
नमक भोजन में महत्वपूर्ण सामग्रियों में से एक है, और इसीलिए, व्यावसायिक नमक में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को कम करने या समाप्त करने की रणनीतियाँ बेहतर और स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। जलीय निकायों में प्रदूषण खासकर प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, इसे रोकने पर काम होना होगा।