‘टेरी’ (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट) के महानिदेशक और जल-वायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद के सदस्य डॉ. अजय माथुर।
प्रदूषण से निपटना है तो परिवहन और खेती में नई तकनीक लानी होगी। किसानों को पराली की कीमत दिलानी होगी। आधुनिक तकनीक और नए इनोवेसन पर जोर देना होगा। यह कहना है ‘टेरी’ (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट) के महानिदेशक और जल-वायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद के सदस्य डॉ. अजय माथुर का। इसी तरह वे मास्क और एयर प्यूरीफायर जैसे उत्पादों से परहेज की बात नहीं करते, मगर समस्या की जड़ तक पहुँचना जरूरी बताते हैं। उनसे मुकेश केजरीवाल की बातचीत के अंशः
दिल्ली के 6-7 प्रतिशत वायु प्रदूषण का कारण कारें हैं। कई तरह की छूट के बाद इस दौरान लगभग 65 प्रतिशत कारें चल रही होती हैं। 50 फीसदी कारें भी रोक दी जाएँ तो अधिकतम 3 प्रतिशत का असर हो सकता है। नम्बर प्लेट की बजाय इसे गाड़ियों के प्रदूषण स्तर से जोड़ें।
बीएस-1.2 और 3 वाली गाडियों को इस दौरान रोका जाए और सिर्फ बीएस-4 को चलने दिया जाए। यही वे गाड़ियाँ हैं जो कारों से होने वाले प्रदूषण में 60 फीसदी का कारण हैं। साथ ही आरामदेह सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध करवाने पर जोर देना होगा।
कोई भी शहर ले लें, जरूरी संख्या में बसें ही नहीं हैं। सड़कों पर बसों के रास्ते पर कारें चलती हैं और दोनों की रफ्तार धीमी हो जाती है। इससे प्रदूषण बढ़ता है। दोनों के लिए चलने की जगह अलग-अलग रखनी होगी। बसों के अलावा मिनी बसें और कम सवारियों वाले आरामदेह वाहन भी चलाने होंगे। कैब सेवाओं में पूल व्यवस्था भी एक विकल्प हो सकती है।
यह बात सही है कि इनका प्रभाव सीमित होता है, किन्तु लगता है कुछ तो राहत मिली। इसीलिए ये बिक रहे हैं। लेकिन यह समाधान नहीं है। समाधान तो प्रदूषण को कम करना ही है।
पहली बार सरकार ने प्रदूषण को एक समस्या मान राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है। इसमें शहरों के स्तर पर फोकस किया। तीन पहलू हैं- शहरों के स्तर पर प्रदूषण का स्रोत पता करना, कार्य योजना बनाना और तीसरा स्थानीय निवासियों की भागीदारी। यह कार्यक्रम मददगार हो सकता है।
शहरों में मैकेनिकल स्वीपर (सड़कें बुहारने वाली गाड़ियों) के प्रयोग को बढ़ावा देना होगा। साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि इन गाड़ियों से उठाई जाने वाली धूल का निष्पादन सही हो। इनके रूट ऑप्टमाइजेशन और बेहतर प्लानिंग की भी जरूरत है।
इसका उपयोग कम करें। बहुत से विकल्प हैं। 20 साल पहले हम कपड़े का थैला लेकर बाजार जाते थे। फिर जा सकते हैं। टूथ ब्रश में इतना बड़ा प्लास्टिक हैंडल होता है। अब तक जितने ऐसे ब्रश आपने इस्तेमाल किए, वे कहीं व कहीं वैसे ही जमा हैं, डिकम्पोज नहीं हुआ। क्या लकड़ी का हैंडल नहीं हो सकता? ऐसे विकल्प तलाशने होंगे। साथ ही रिसाइकल करना होगा।
एनर्जी इंटेसिटी के मामले में हम दुनिया के शीर्ष 6 देशों में आ चुके हैं। लेकिन काम खत्म नहीं हुआ है। अब खासतौर पर छोटे और मंझोले स्तर के उद्योगों को आकर्षक बिजनेस मॉडल उपलब्ध करवाने होंगे। इसी तरह परिवहन के क्षेत्र में भी ऊर्जा दक्षता लाना है, क्योंकि हमारा पेट्रोलियम उत्पाद 70 फीसदी तो आयातित होता है। इलेक्ट्रिक वाहन मददगार हो सकते हैं। तीसरी जरूरत है खेती में बिजली के उपयोग को ऊर्जा दक्ष बनाने की।
एयर कंडिशनर का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इससे हमारी जिंदगी अच्छी होती है और उत्पादकता भी बढ़ती है। लेकिन कम बिजली से चलने वाले एसी लाने पर ध्यान देना होगा।
सौर ऊर्जा में भारत ने काफी सक्रिय और अग्रणी भूमिका निभाई है। हमें परिवहन और उद्योगों में भी कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
सड़कों से बीएस-4 पहले के मानक की गाड़ियाँ जल्द हटाएँ, खासतौर पर बड़ी गाड़ियाँ। इसके लिए कोई आर्थिक मदद दें। सौर ऊर्जा जैसी पहल बिजली चलित वाहनों को बढ़ावा देने और उद्योगों में कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए भी करें।
राजस्थान में सौर ऊर्जा को लेकर सम्भावनाएँ काफी हैं। यह देश का पॉवर हाउस बन सकता है। सौर ऊर्जा में समस्या यह है कि बिजली तब मिलेगी जब धूप हो। इन दिनों बिजली की माँग सबसे ज्यादा होती है रात 8 से 11 बजे तक, जब धूप बिल्कुल नहीं होती। लेकिन राजस्थान के पास पर्याप्त जमीन है। फोटोवोल्टेइक्स (पीवी) के साथ बैट्री बैंक भी बना सकते हैं। दिन में बिजली जमा हो और जरूरत के समय उपयोग हो। इस तरह राजस्थान की पूरी अर्थव्यवस्था बदल सकती है। राज्य बिजली बेचें और सौर पम्पर का उपयोग कर अपनी खेती को बढाएँ।
इस मौसम में उत्तर भारत में बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण अचानक जो बढ़ता है, उसकी वजह पंजाब और हरियाणा में फसलों के अवशेषों को जलाया जाना ही है। इसे तुरन्त रोकना होगा। कई कोशिशें हो रही हैं। भारत सरकार ने इसके लिए उपकरणों पर सब्सिडी दी है। लेकिन आवश्यक प्रभाव नहीं हुआ है। कृषि अनुसंधान विभाग का शोध है कि पराली को जमीन में मिलाने से अगली पैदावार में 15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन किसानों को इसका विश्वास दिलाना होगा।
पहले धान हाथ से काटे जाते थे तो जमीन से एक इंच ऊपर फसल काटी जाती थी। अब थ्रेशर सिर्फ ऊपर के आठ इंच काटता है और बाकी छोड़ देता है। इसी तरह धान की कटाई और गेहूँ की बुआई के बीच का अन्तराल बहुत कम हो गया है, ऐसे में किसान जल्दबाजी में पराली जलाता है। उसे कई विकल्प देने होंगे।
जरूरी है कि किसानों की आधी पराली की बिक्री हो जाए और आधी वह खेत में मिला दे। पराली से किसान कुछ धन हासिल कर सके। इसके लिए तकनीक तैयार है। पराली से क्लीन एनर्जी पैदा कर सकते हैं और उसका उपयोग भी किसानों की फसलों के भंडारण में किया जा सकता है। पराली के ब्रिकेट बनाने होंगे, उससे गैस पैदा की जाएगी और उससे बिजली बनेगी। उस बिजली से कोल्ड स्टोरेज चलेंगे। अभी बिजली की कमी की वजह से गाँवों में बहुत कम कोल्ड स्टोरेज हैं। लखनऊ में ऐसा कोल्ड स्टोरेज चलाया जा रहा है। यह कारोबार के लिहाज से भी फायदेमंद हैं।
इसके अलाबा पंजाब और हरियाणा प्रावधान करें कि पॉवर स्टेशन 10 प्रतिशत तक पराली के ब्रिकेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही बायोमास गैसीफायर और कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए कमर्शियल लोन दें।
खेती ऐसा व्यवसाय है जिसमें पैसा लगता ही चला जाता है, जबकि किसान की जेब में ज्यादा पैसा होता नहीं। ऐसे में उसे इस मशीन को चलाने पर भी खर्च करना होता है और उसे लगता है कि तुरन्त उसके पास पैसा नहीं आ रहा।
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