लेख

संग्रामपुर में अब पानी बचाने के लिये संग्राम

मनीष वैद्य

1990 से पहले तक जहाँ 30 से 38 डिग्री तक रहने वाला पारा अब बढ़कर 49 डिग्री को छूने लगा है यानी दस डिग्री का जबरदस्त उछाल। बारिश लगातार कम होती जा रही है। कभी 60 दिनों तक होने वाली बारिश अब 35 से 40 दिन भी नहीं होती, यानी करीब आधी। नब्बे के दशक में 971 मिमी बारिश होती थी जो अब घटकर 679 मिमी तक आ गई है। बारिश की कमी का सीधा असर इलाके के मौसम तथा जलस्रोतों पर पड़ा है। कभी मार्च तक भरे रहने वाली नदी-नाले, तालाब और कुएँ-कुण्डियाँ अब दिसम्बर तक भी साथ नहीं निभाते हैं।

'पानी को बनाया नहीं जा सकता, सिर्फ बचाया जा सकता है। यही एक रास्ता है। पानी को सहेजने का काम सरकारी अमले को नहीं करना है, जनता को करना है। नलकूप छोड़ो, कुएँ का इस्तेमाल करो। कुएँ धरती का पानी बढ़ाते हैं और नलकूप उस भण्डार को खत्म करते हैं। खेतकुंड से खेती में फायदा होगा। केले और कपास की फसल में ज्यादा पानी लगता है। कम पानी में होने वाली फसलें लें। बाँस, सहजन और आँवला लगाएँ। मधुमक्खी पालन और मटका रेशम से अपनी आमदनी बढ़ाएँ। जनता खुद सजग होकर पानी बचाने का काम करे, वह कब तक हाथ फैलाए खड़े रहेंगे।'
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