पृथ्वी की सतह पर पानी समुद्र, नदियों, झीलों से लेकर बर्फ से ढंके क्षेत्रों के रूप में मौजूद है। पानी का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है जहाँ धरती का 97.33% पानी पाया जाता है। समुद्र के पानी में अनेक प्रकार के लवण एवं खनिज घुले होते हैं जिसकी वजह से वह खारा होता है। भार के अनुसार समुद्र जल में 3.5% लवण खनिज होते हैं। हमारी धरती की सतह का 70.8% भाग पानी से घिरा है। धरती के कुल पानी का 2.7% से भी कम हिस्सा सादा जल है जो हमारे उपयोग का है। सादे जल का अधिकांश हिस्सा ध्रुवीय प्रदेशों में बर्फ के रूप में जमा है। ध्रुवों में दक्षिण ध्रुव में पानी की मात्रा कहीं ज्यादा है। यहां करीब एक करोड़ पचास लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बर्फ से ढका है। यह क्षेत्र पूरे भारत के क्षेत्रफल से लगभग पांच गुना ज्यादा है। दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ राशि इतनी विशाल है कि यदि वह पिघल जाये तो धरती की सभी नदियों को अगले एक हजार साल तक पानी मिल सकता है। प्रत्येक वर्ष दक्षिणी ध्रुव और हिमनदों से लगभग 5000 हिमखंड टूट-टूटकर अलग हो जाते हैं जिनका कुल द्रव्यमान एक हजार अरब घनमीटर होता है। यदि ध्रुवों और हिमनदों पर जमी सारी बर्फ पिघल जाये तो समुद्र का जलस्तर 60 मीटर बढ़ जायेगा। एक आकलन के अनुसार समुद्र में 13 करोड़ 50 लाख घन किलोमीटर पानी मौजूद है। यदि धरती की सतह पूरी तरह समतल कर दी जाये तो सारी धरती पानी में डूब जायेगी और सतह पर मौजूद पानी की सतह की ऊंचाई 4000 मीटर होगी। यदि समुद्र में पानी में घुले खनिज और लवण को अलग करके पृथ्वी की सतह पर फैला दिया जाए तो 160 मीटर ऊंची परत बन जाएगी। धरती पर सबसे ऊंची जगह हिमालय का एवरेस्ट शिखर है। लेकिन सबसे गहरी जगह प्रशांत महासागर में स्थित मैरिआना ट्रेंच इतनी गहरी है कि उसमें एवरेस्ट भी पूरी तरह डूब जायेगा।
भू वैज्ञानिक पृथ्वी की आयु लगभग 4.6 खरब साल आंकते हैं। यदि इस पूरे काल को एक वर्ष के समतुल्य मानें तो धरती पर महासागर का जन्म मार्च में, पहले जीव का जन्म अगस्त महीने में और पहले मनुष्य का जन्म 31 दिसंबर को 22.30 बजे हुआ। इस भूवैज्ञानिक पैमाने पर आधुनिक मानव का जन्म 24.00 बजे (मध्यरात्रि) से मात्र 7 सेकेंड पहले हुआ।
धरती पर पानी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को जलविज्ञानी अथवा हाइड्रोलॉजिस्ट कहते हैं। वे पानी के विभिन्न रूपों एवं उनके मध्य आपसी संबंधों का अध्ययन करते हैं जिसे जलचक्र कहते हैं। धरती का जलचक्र वर्षा से शुरू होता है। जलचक्र सूर्य के विकिरण द्वारा नियंत्रित होता है। सौर विकिरण से सभी जल स्रोतों से पानी निरंतर वाष्पित होता रहता है। इन्हीं जलवाष्पों से बादल बनते हैं। वातावरण में ऊपर तापमान कम होता है। जिससे ये बादल द्रवजल में संघनित हो जाते हैं। पानी की बूंदें भार के कारण हवा में टिक नहीं पातीं और गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती पर गिरती हैं। इसे हम बरसात कहते हैं। बरसात का कुछ पानी जमींन में सोख लिया जाता है, जबकि कुछ पानी बहकर नदी-नालों द्वारा समुद्र में जा मिलता है। इस जलचक्र के कई उपचक्र भी होते हैं। वर्षा का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है क्योंकि वहीं से पानी वाष्पन द्वारा वातावरण में पहुंचता है। पानी अपनी यात्रा में तमाम रास्तों से गुजरते हुए अंततः महासागर में जा मिलता है। इसलिए समुद्र का पानी कमोबेश यथावत बना रहता है। कभी-कभी तापमान कम होने से बादलों में मौजूद पानी जम जाता है। और हिमपात के रूप में धरती पर गिरता है। जब कभी हिमकण आपस में जुड़कर बर्फ के गोलों का आकार ले लेते हैं और धरती पर गिरते हैं तब इसे ओलावृष्टि कहते हैं।
सारणी1
धरती पर पानी का वितरण
स्रोत | आयतन/103 कि.मी.3 | कुल मात्रा का प्रतिशत |
लवण जल
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महासागर | 1348000 | 97.33 |
खारे पानी की झीलें तथा अंतस्थली सागर | 105(अ) | 0.008 |
सादा जल
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ध्रुवीय बर्फ एवं हिमनद | 28200 | 2.04 |
भूमिगत जल | 8450 | 0.61 |
झीलें | 125(ब) | 0.009 |
मृदा आर्द्रता | 69 | 0.005 |
वातावरणी जलवाष्प | 13.5 | 0.001 |
कुल योग
| 1385000 | 100.00 |
इशेरीशिया कोलाई और स्तनधारी प्राणी की कोशिकाओं के प्रमुख अणु घटक
घटक
| ई. कोलाई जीवाणु | स्तनधारी कोशिका |
पानी | 70 | 70 |
प्रोटीन न्यूक्लिक अम्ल | 15 | 18 |
राइबोन्यूक्लिक अम्ल (आर.एन.ए.) | 6 | 1.1 |
डिआक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (डी.एन.ए.) | 1 | 0.25 |
कार्बोहाइड्रेट | 3 | 2 |
फास्पोलिपिड्स | 2 | 3 |
अन्य लिपिड्स | - | 2 |
अन्य चयापचयी पदार्थ | 2 | 3 |
अकार्बनिक आयन | 1 | 1 |
कोशिका का आपेक्षिक आयतन | 1 | 2000 |
संपूर्ण कोशिकाओं का आयतन | 2x10-12 सेमी3 | 4x10-9 सेमी3 |
प्रस्तुत आलेख 'जल जीवन का आधार' पुस्तक से लिया गया है। लेखक कृष्ण कुमार मिश्र ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1992 में रसायन विज्ञान में पीएच-डी. की उपाधि प्राप्त की है। संप्रति टाटा मौलिक अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) मुबंई, के होमी भाभा विज्ञान शिक्षण केंद्र में वह फैलो हैं। डॉ. मिश्र एक सक्रिय एवं सक्षम विज्ञान लेखक हैं। उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की दिशा में विज्ञान के अनेक विषयों पर, विशेषकर हिंदी भाषा में व्यापक तौर पर लिखा है।